मंडीदीप के लुलका गांव में आदिवासी मक्‍का और धान की जगह उगा रहे कोदो

August 26 2021

काले चावल के शौकीन पूरे देश में बढ़ रहे हैं। यही कारण है कि विलुप्तप्राय होती इस कोदो (काला चावल) की खेती की ओर आदिवासियों का रुझान वापस लौट रहा है। मुख्‍यत: इस प्रजाति के अन्‍न की खेती आदिवासी ही करते आए हैं और इस बार भी क्षेत्र में आदिवासियों ने ही एक बार फिर से कोदो की खेती कर इसे जीवित रखने का बीड़ा उठाया है। विकासखंड में पहली बार लुलका ग्राम में जैविक किसान मित्रों के साथ 50 किसानों द्वारा 70 से 75 एकड़ में जेके 137 वैरायटी का कोदो बोया गया है। इस किस्म की फसल उत्पादन कर आदिवासी आर्थिक रूप से संपन्न तो होंगे ही जरूरतमंदों को भी पौष्टिकता से भरा यह अनाज आसानी से उपलब्ध हो सकेगा।

ज्ञात हो कि ब्लॉक के किसान खरीफ सीजन में केबल धान, सोयाबीन, मक्का और अरहर की ही खेती करते हैं, परंतु इस बार लुलका गांव के आदिवासी किसानों ने अपनी पारंपरिक खेती कोदो में दिलचस्पी दिखाई है। इस काम में कृषि विभाग की आत्मा परियोजना ने इन किसानों की बड़ी सहायता की है। कृषि विकास के वरिष्ठ खंड विकास अधिकारी डीएस भदौरिया ने बताया कि महिला स्व सहायता समूह द्वारा लगभग 70 - 75 एकड़ में 50 किसानों के यहां कोदो फसल की बुवाई की गई है। कोदो का बीज आसपास के क्षेत्रों में ना मिलने से उसे समिति द्वारा डिंडोरी बीज निगम क्षेत्र से 3 क्विंटल प्रमाणित बीज खरीदा गया एवं उसको 50 किसानों में वितरित कर बुवाई करवाई गई। जेके 137 किस्म का यह बीज 4 किलोग्राम प्रति एकड़ के मान से बोया गया है। इस महिला स्व सहायता समूह के यहां पूर्व से कृषि विभाग द्वारा वर्मी कंपोस्ट बनाए गए हैं जहां समूह की महिलाओं द्वारा वर्मी कंपोस्ट एवं जैविक कीटनाशक दवाई भी तैयार की जा रही है।

भदौरिया ने बताया कि कोदो की फसल में कीटनाशकों का उपयोग ना कर जैविक विधि से खेती की जाएगी। समूह की मेहनत एवं लगन को देखते हुए नाबार्ड द्वारा आर्थिक सहयोग प्रदान किया जा रहा है। महिला कृषक आशा उईके एवं शीला धुर्वे ने बताया कि कोदो पौष्टिक गुणों से तो भरा है ही, इसके अलावा इसके भाव भी बाजार में अच्छे मिलते हैं। आशा बताती है कि शुगर जैसी बीमारी में भी यह काफी फायदेमंद होता है। इसीलिए हमने इस बार विलुप्त होती प्रजाति की इस फसल को उगाने का मन बनाया ताकि हमारे परिवार को तो पौष्‍टिक आहार मिल सके, साथ ही साथ अन्य लोगों को भी इसका लाभ मिल सके।

मधुमेह के रोगियों के लिए फायदेमंद

कोदो मधुमेह के रोगियों के लिए बड़ा लाभकारी माना जाता है। यह काला चावल फायटोकेमिकल कोलेस्ट्रॉल के स्तर को नियंत्रित करता है। मोटापा कम करने में भी मददगार है।

इतना गुणकारी है कोदो

कोदो भारत का एक प्राचीन अन्न है, जिसे ऋषि अन्न माना जाता था। इसके दाने में 8.3 प्रतिशत प्रोटीन, 1.4 प्रतिशत वसा तथा 65.9 प्रतिशत कार्बोहाइड्रेट पाया जाता है। कोदो-कुटकी मधुमेह नियंत्रण, गुर्दो और मूत्राशय के लिए लाभकारी है। यह रासायनिक उर्वरक और कीटनाशक के प्रभावों से भी मुक्त है।

भाव में भारी अंतर

वरिष्ठ कृषि विकास अधिकारी डी एस भदौरिया बताते हैं कि धान और कोदो के भाव में भारी अंतर है। धान का भाव जहां 2800 से तीन हजार रुपये प्रति क्विंटल है, वहीं कोदो का रेट 10 हजार रुपये प्रति क्‍विंटल तक है। उन्होंने बताया कि इसी तरह उत्पादन में भी बड़ा अंतर है। जहां धान की पैदावार 40 क्विंटल प्रति हेक्टेयर से अधिक है। वहीं कोदो का उत्पादन 20 से 25 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है।

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स्रोत: Nai Dunia