जंगलों में मिलने वाले 30 फीसदी मशरूम ही खाने योग्य, जानें सबसे जहरीली प्रजाति

September 29 2021

मशरूम खाने के शौकीन बहुत से लोग होते हैं, लेकिन यही मशरूम आपकी जान के लिए खतरा भी बन सकती है। हिमाचल प्रदेश में तीन हजार से अधिक जंगली मशरूम पाई जाती हैं। इनमें सिर्फ 30 फीसदी मशरूम खाने योग्य हैं। इसका खुलासा खुंब अनुसंधान निदेशालय चंबाघाट की लैब जांच में हुआ है। डीएमआर की ओर से हर वर्ष जंगली मशरूम की खोज की जाती है। इस वर्ष भी करीब 500 प्रजातियों की मशरूम की खोज की गई है। इनमें अमानिटा प्रजाति की मशरूम सबसे अधिक जहरीली पाई गई है। इसका सेवन करने के 24 घंटे में व्यक्ति की मौत हो सकती है। अन्य जहरीले मशरूमों से पेट दर्द, दस्त, उल्टी, पेट में ऐंठन और बार-बार दस्त की समस्या होती है।

किंग बोलीट, पाइन मशरूम, गुच्छी मशरूम, सीप मशरूम, सल्फर शेल्फ मशरूम इत्यादि सबसे ज्यादा खाए जाने वाली जंगली मशरूम हैं। जंगली मशरूम का सबसे अधिक सेवन जिला कुल्लू, मंडी, चंबा, किन्नौर और सिरमौर में होता है। जानकारी के अनुसार विश्वभर में मशरूम की 14 हजार से अधिक प्रजातियां हैं। अगर खाने लायक मशरूम की बात करें तो लगभग तीन हजार प्रजातियां ही खाने लायक होती हैं। अभी तक के मामलों में लगभग 30 प्रतिशत ऐसी प्रजातियां हैं, जो जहरीली होती हैं। उधर, खुंब निदेशालय के निदेशक डॉ. वीपी शर्मा ने बताया कि ज्यादातर जहरीली मशरूम जंगलों में पाई जाती हैं। जंगली मशरूम को खाने से बचें। मुख्यतया छतरी जैसी मशरूम जहरीली होती है। उसका सेवन न करें। डीएमआर की ओर से हर वर्ष जंगली मशरूम एकत्रित कर उसे पर शोध भी किया जाता है। अभी तक 30 प्रतिशत मशरूम खाने योग्य हैं।

बता दें खुंब अनुसंधान निदेशालय मशरूम के सभी पहलुओं पर मिशन के रूप में नवीनतम अन्वेषण करने, मशरूम जर्मप्लाज्म व सूचना भंडारण व अतिप्रतिष्ठित विद्योपार्जन केंद्र के रूप में काम कर रहा है। इस निदेशालय को देश के क्षेत्रीय महत्व की समस्याओं के समाधान के साथ-साथ पूरे देश में फैली खुंब अनुसंधान इकाइयों के कार्यक्रमों के समन्वयन का भी जिम्मा सौंपा गया है ताकि देश में खुंब उत्पादन व उत्पादकता दोनों में शीघ्र वृद्धि हो सके। निदेशालय प्रौद्योगिकी के विकास के लिए सभी खाद्य मशरूम की उत्पादकता बढ़ाने के लिए बुनियादी उपयोग, रणनीतिक और व्यवहारिक अनुसंधान का संचालन करना, खाद्य मशरूम पर एक राष्ट्रीय वैज्ञानिक जानकारी का भंडार के रूप में काम कर रहा है। साथ ही वैज्ञानिक नेतृत्व प्रदान और मशरूम उत्पादन के क्षेत्र में विशिष्ठ समस्याओं को सुलझाने के लिए राज्य कृषि विश्वविद्यालयों के साथ अनुसंधान का समन्वयन करना करना भी इसका मकसद है।

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स्रोत: Amar Ujala