खेत में रोका बारिश का पानी, फसल के अवशेष से बनाई खाद

October 08 2021

खेती में सिंचाई की जरूरत और बढ़ती लागत किसानों के लिए सबसे बड़ी समस्या है लेकिन जरा सी जागरूकता से किसान इस समस्या को दूर कर सकते हैं। इसका उदाहरण मध्य प्रदेश के विदिशा जिले के ग्राम चक्क पाटनी के किसान विनोद शाह हैं, जिन्होंने बारिश का पानी रोककर धान की पौध रोप दी और गेहूं की फसल के अवशेष से तैयार जैविक खाद का उपयोग कर सोयाबीन की फसल को कीट प्रकोप से बचा लिया। इस एक पंथ, दो काज से उनके खेत में धान और सोयाबीन दोनों फसलें लहलहा रही हैं।

चिंता से हुए मुक्त

खरीफ सीजन में इस बार किसान कहीं अतिवृष्टि से तो कहीं कीट प्रकोप से फसल बरबाद होने के कारण परेशान हैं लेकिन विनोद शाह इन परेशानियों से मुक्त हैं। बताते हैं कि सोयाबीन के पौधे साढ़े तीन फीट ऊंचे हो गए हैं। फलियों में दाने का भराव भी अच्छा है। जिसका फायदा अधिक पैदावार के रूप में होगा। धान की फसल के लिए सबसे अधिक पानी की जरूरत होती है। यही वजह है कि किसान बिना निजी जल स्रोत के धान की फसल नहीं लगाते। विनोद शाह के खेत में पानी का स्रोत नहीं था। शाह ने जून माह में एक खेत में 60 गुना 60 फीट के क्षेत्र में करीब पांच फीट गहरी खुदाई कराई और बारिश का पानी इसमें संजो लिया। इसी से वह धान की फसल के साथ अन्य फसल की सिंचाई भी पंप लगाकर करते रहे। जब-जब बारिश होती, उनका यह तालाब लबालब भर जाता। विनोद शाह ने पहली बार धान की फसल लगाई है। जिसकी पूरी सिंचाई तालाब के पानी से ही हुई है।

अवशेष की खाद से बढ़ती है जमीन की उर्वरा शक्ति

गंजबासौदा स्थित कृषि महाविद्यालय के वैज्ञानिक डॉ. योगेश पटेल का कहना है कि गेहूं की फसल लेने के बाद पौधों के अवशेष को खेत में ही मिला देने से यह जैविक खाद का काम करता है। इससे आगामी फसल को पूरे 16 तरह के पोषक तत्व मिलते है, जिसकी वजह से न केवल फसल की पैदावार अच्छी होती है बल्कि जमीन की उर्वराशक्ति भी बढ़ती है। उनके मुताबिक इस खाद का उपयोग करने से पौधों की रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है। जिसकी वजह से फसल पर बीमारियों का प्रकोप नहीं फैलता। डॉ. पटेल का कहना है कि अधिकांश किसान गेहूं की फसल लेने के बाद पौधों के अवशेष में आग लगा देते हैं, जिससे जमीन में पाए जाने वाले सूक्ष्मजीवी नष्ट हो जाते हैं। इससे जमीन बंजर होने का खतरा बढ़ जाता है।

अवशेष की खाद से लहलहाई फसल

शाह ने धान और सोयाबीन की फसल में रसायनिक खाद का उपयोग नहीं किया। वह बताते हैं कि रबी के सीजन में गेहूं की फसल लेने के बाद किसान अवशेष को आग लगा देते हैं। आग से खेत की उर्वराशक्ति कम होती है। इस बार अवशेष जलाने की बजाय खेत में प्लाऊ के जरिये गहरी जुताई कर उसे जमीन में ही नष्ट कर दिया। बारिश में यही अवशेष धीरे-धीरे डी-कम्पोज होकर खड़ी फसल को नाइट्रोजन एवं कार्बन देता है, जिससे फसल बगैर रसायनिक उर्वरक के बढ़त लेती रहती है। अवशेष की खाद के प्रयोग से सोयाबीन की फसल में पीला मोजेक बीमारी नहीं लगी।

अन्य किसान भी हो रहे प्रेरित

नवाचार कर किसान विनोद शाह ने खेती करने में होने वाले खर्च में भी बचत की है। वह कहते हैं कि इस तकनीक से खेती करने के कारण रसायनिक खाद और फसल की सिंचाई पर होने वाला खर्च उन्हें वहन नहीं करना पड़ा। उनके इस प्रयोग को देखकर क्षेत्र के अन्य किसान भी इस तरह की खेती करने के लिए प्रेरित हो रहे हैं। उनके पड़ोसी किसान राजेश पाठक भी खेती की यही तकनीक अपना रहे हैं।

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स्रोत: Krishak Jagat