महात्मा गांधी ने कस्तूरबा की स्मृति में जिस ट्रस्ट की शुरुआत की थी उसकी शाखा शहर में भी छांव दे रहा है। बेहतर समाज, उन्नत विकास और आत्मनिर्भरता के प्रयास को कस्तूरबा गांधी राष्ट्रीय स्मारक ट्रस्ट इंदौर कस्तूरबा ग्राम के कृषि विज्ञान केंद्र की योजनाओं से उड़ान मिल रही है। यहां परंपरा, तकनीक और नवाचार को अपनाकर 250 एकड़ कृषि क्षेत्र में खेती की जा रही है। यहां होने वाली खेती आज समाज में न केवल आत्मनिर्भरता का उदाहरण प्रस्तुत कर रही है बल्कि किस तरह कम लागत में बेहतर फसल प्राप्त हो उस पर ध्यान दिया जा रहा है। कृषि प्रधान देश को और भी समृद्ध बनाने के लिए यहां ‘वेल्युएडिशन आफ क्राप्स’ की अवधारणा को अपनाया जा रहा है ताकि उससे उदाहरण प्रस्तुत कर किसानों को जागरूक किया जा सके।
ट्रस्ट के अध्यक्ष डा. करूणाकर त्रिवेदी बताते हैं कि यहां स्थापित कृषि विज्ञान केंद्र के जरिए अब इस बात पर ध्यान दिया जा रहा है कि किसान को अधिक से अधिक लाभ हो सके। इसके लिए उन्हें यह सौदाहरण यह समझाने का प्रयास किया जा रहा है कि एक ही फसल पर निर्भर रहने के बजाए फल, सब्जी, फूल, पशु पालन आदि को अपनाकर अधिक लाभ लिया जा सकता है।
60 वर्षों से जारी है यहा प्रयास
कृषि विज्ञान केंद्र के उद्यान विशेषज्ञ डा. डीके मिश्रा के अनुसार यहां जैव उर्वरकता को बढ़ावा, रसायनिक उर्वरक पर निर्भरता में कमी, प्याज भंडारण से किसानों को अधिक मुनाफा, परंपरागत खेती के साथ कृषि में विविधता और आधुनिक व उन्नत किस्म के गेहूं के बीज तैयार कर उसे किसानों को उपलब्ध कराने पर कार्य हो रहा है। करीब 60 वर्षों से कृषि के जरिए आत्मनिर्भरता का पाठ यहां पढ़ाया जा रहा है। जैव उर्वरकता के जरिए रसायनिक उर्वरकता पर निर्भरता को कम करने का प्रयास तो किया ही जा रहा है इसके अलावा यह भी देखा गया कि इस तरह से कृषक खर्च में 25 प्रतिशत तक की कमी कर सकता है।
शिक्षा से लेकर आश्रय तक की योजना
शहर में ट्रस्ट की स्थापना के साथ ही कृषि का सिलसिला भी शुरू हो गया था। सरदार वल्लभ भाई पटेल द्वारा जिस केंद्र का शिलान्यास किया गया था कस्तूरबा का वह ग्राम खादी के अलावा नारी शिक्षा, तकनीकी कौशल, पीड़िताओं को आश्रय, गौशाला आदि के जरिए भी समाज के हित में कदम बढ़ाया जा रहा है।
इस खबर को अपनी खेती के स्टाफ द्वारा सम्पादित नहीं किया गया है एवं यह खबर अलग-अलग फीड में से प्रकाशित की गयी है।
स्रोत: Nai Dunia