कर्जमाफी का सच - किसानों को मिला धोखा

March 27 2019

देश में चुनावी आचार संहिता के लागू होते ही मप्र के किसानों के मोबाइल पर संदेश आना प्रारंभ हो गये थे, कि आचार संहिता लागू होने से आप का ऋण माफ नहीं किया जा सका है। चुनाव बाद शीघ्र स्वीकृत किया जायेगा। वचन पत्र में सरकार के गठन के दस दिन में कर्जा माफी की वचनबद्धता थी। जिसे सत्तर दिन की सत्ता के बाद चुनाव आचार संहिता की विवशता से विलंबित दिखाया जा रहा है। लेकिन इस खेल में राज्य सरकार की विश्वसनीयता पर प्रश्न चिन्ह के साथ राज्य के किसानों का वोट बैंक के रूप में होते उपयोग की असलियत सामने आती दिखी है। आजादी के सात दशक बाद भी देश के राजनैतिक दल किसानों को सिर्फ मूर्ख बनाकर हंसी-ठिठौली ही करते रहे हैं। आचार संहिता की घोषणा के कुछ क्षणों में प्रदेश भर के किसानों को एक साथ मोबाइल पर प्राप्त संदेश गवाह है कि यह तैयारी पूर्ववत थी।

बैंक वसूलेगा समय पर ऋण

विगत दो माह में तमाम तरह की प्रक्रिया एवं तीन अलग-अलग श्रेणियों के आवेदन जमा कराने के बाद राज्य का किसान अब उस स्थिति में खड़ा है जो अब न घर का है, और न घाट का! राज्य सरकार के चुनावी वायदे से बैंक के सामने इठलाता राज्य का किसान अब बैंकों से असमंजस की इस स्थिति से उभरने के उपाय पूछने लगा। विधानसभा चुनाव से पूर्व राज्य की कांग्रेस नीत सरकार ने अपनी वचनबद्धता के रूप में किसानों के 2 लाख तक के कर्ज सरकार के गठन के दस दिनो में माफ करने का वचन दिया था। सरकार के गठन के बाद राज्य सरकार ने प्रदेश भर के किसानों से तीन अलग-अलग रंगों में आवेदन शीघ्रता में स्वीकार किये थे। प्रथम चरण की कर्ज माफी प्रमाण पत्र वितरण के लिये राज्य की 383 तहसीलों पर सरकारी कार्यक्रम आयोजित किये गये। 

इन कार्यक्रमों के लिये राज्य के सरकारी खजाने से लगभग 38 करोड़ की राशि खर्च करने के बाद अब किसानों के मोबाइल में वह संदेश है, जिसमें चुनाव आचार संहिता लगने से किसानों को कर्ज माफी के लिये आचार संहिता हटने तक इंतजार करने को कहा जा रहा है। 

प्रदेश अन्नदाता से इससे बड़ा क्रूरतम मजाक अब और क्या होगा? जबकि राष्ट्रीयकृत बैंकों के लिये कर्ज अदा करने की अंतिम तिथि 31 मार्च निर्धारित है। समय सीमा में कर्ज अदा न कर पाने की स्थिति में ब्याज वृद्धि के साथ बैंक अधिभार भी अध्यारोपित करने वाली है। राज्य सरकार ने सहकारी बैंकों को कर्ज अदायगी की समय सीमा बढ़ाकर 15 जून अवश्य की है। लेकिन पिछला कर्ज न मिलने की स्थिति में यह सभी बैंकें नये किसान केसीसी लोन जारी नहीं कर पायेगी। वहीं अगली कर्ज प्रक्रिया में अत्याधिक विलंब से प्रारंभ हो सकेगी। जो कि किसान एवं बैंक दोनों के लिये ही अत्याधिक परेशानी का कारण होगा। राज्य के किसानों के सम्मुख दूसरी सबसे बड़ी असमंजस की स्थिति यह भी है कि सहकारी समितियों पर गेहूं, चना, मसूर का समर्थन मूल्य पर फसल का विक्रय करने पर उक्त समितियां अपने पूर्व नियमानुसार किसानों का कर्ज काटकर ही शेष का भुगतान करेगी। इस हालात में किसानों की कर्ज माफी कैसे हो पायेगी यह एक बड़ा सवाल है। 

2 लाख तक के कर्जदार किसानों को जो प्रमाण पत्र दिये गये हैं उनमें रुपये 49999/- तक की कर्जमाफी का जिक्रहै। जिसके तहत किसानों के 500 से लेकर 38000 हजार तक सहकारी बैंक की माफी दिखाई गई है। प्रशासन इसे कर्ज माफी का प्रथम चरण में किसानों को खाद एवं बीज की ऋण माफी तक सीमित बताकर किसानों को अगले चरण का इंतजार के लिये आश्वस्त किये हुये थे। लेकिन मोबाइल संदेश से उत्पन्न हालात अराजकता उत्पन्न करने वाले हैं। 

राज्य सरकार को पूर्व से विदित था कि समय रहते देश में कभी भी आचार संहिता लागू की जा सकती है। लेकिन बावजूद इसके राज्य सरकार इन हालातों का इंतजार करती रही है। आचार सहिंता लागू होते ही कुछ ही क्षणों में प्रदेश भर में एक साथ प्रसारित माफीनुमा संदेशों से प्रतीत होता है कि सरकार की यह तैयारी पूर्ववत ही थी। लेकिन राज्य के प्रत्येक किसान को उसका माफी योग्य कुल कर्जा दिखाने में सरकार ने चतुरता बरती है। जो कि घोषणा के क्रियान्वन में स्पष्टता के बजाय संदिग्ध बनाती है। वितरित किये गये प्रमाण पत्रों में यदि सरकार किसान के माफी योग्य कर्ज की वास्तविक कुल रकम बता देती तो राज्य का किसान शेष राशि का इंतजाम करके अपनी कर्ज अदायगी से निश्चिंत हो सकता था। उसे बैंकों के रिकवरी नोटिसों का जवाब देने में भी संतुष्टि होती। लेकिन राज्य सरकार ने प्रदेश के अन्नदाता को सौगात देने के बजाय भ्रम की मझधार में लाकर खड़ा कर दिया है।

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स्रोत: Krishak Jagat