मौसम विज्ञान केंद्र के आंकड़ों व भविष्यवाणी का विश्लेषण कर कृषि वैज्ञानिक आगामी फसल को लेकर कई स्तर पर प्लान ए, बी, सी.. आदि तैयार करते हैं। सामान्य हालात पर कौन-सी व किस प्रजाति की फसल ली जाए। यदि सूखे की हालत रहेगी तो क्या ठीक रहेगा और अंत में सूखा पड़ने पर ऐन मौके पर कौन सी फसल ली जाए यह तय किया जाता है।
जिले समेत पूरे देश में कृषि वैज्ञानिकों की भूमिका कृषि के क्षेत्र में अब काफी बढ़ गया है। बांध व नहर, ट्यूबवेल जैसे आधुनिक संसाधन के बाद भी हमारी खेती बारिश पर ही निर्भर है। वहीं नई तकनीकी व उपकरणों के आविष्कार उनके उपयोग से मौसम आधारित खेती भी उन्नत हो गई है। मौसम विज्ञान केंद्र की ओर से मौसम की भविष्यवाणी की जाती है। तब कृषि वैज्ञानिक स्थानीय केंद्र से लेकर प्रांतीय और राष्ट्रीय स्तर पर उनका विश्लेषण करते हैं। इसी आधार पर आगामी फसल की दिशा तय की जाती है। कृषि विज्ञान केंद्र बिलासपुर के विशेषज्ञ विनोद निर्मलकर ने बताया कि मौसम के आधार पर हम अगली फसल का पूर्वानुमान लगाते हैं। उसके हिसाब से प्लान तय करते हैं। आमतौर पर बिलासपुर संभाग में 15 जून से बारिश शुरू हो जाती है। भविष्यवाणी के मुताबिक ऐसी ही स्थिति रहने पर सामान्य खेती की सलाह किसानों को दी जाती है। इसके तहत किसान लेट क्रॉप फसल भी ले सकते हैं। वहीं, जब शुरुआत से ही कम बारिश या सूखा जैसी स्थिति दिखती है तो दूसरी तरह की किस्म का उपयोग करने की सलाह किसानों को देते हैं। इसमें अर्ली क्रॉप की फसलें शामिल हैं। वहीं जब शुरुआत में अच्छी बारिश होने के बाद 20 जुलाई या उसके बाद बारिश नहीं होने पर व फसल के नष्ट होने की स्थिति में मूंग आदि वैकल्पिक फसलों की सलाह दी जाती है।
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स्रोत: नई दुनिया