जब कभी लीची के जायके की बात होती है तो जेहन में मुजफ्फरपुर का नाम आता है। इलाके में इसका इतिहास लगभग दो सौ साल पुराना है। एईएस पिछले 16-17 सालों से सामने आ रहा है। शिशु रोग विशेषज्ञ व मुजफ्फरपुर एसकेएमसीएच के एसोसिएट प्रोफेसर डॉ. जेपी मंडल का कहना है कि लीची से इस बीमारी का कोई संबंध नहीं है। यह बीमारी लीची में फल आने से दो-तीन माह पहले व फसल समाप्त होने के दो माह तक सामने आती है। ऐसे में लीची को दोष देना कहां तक उचित है।
किसान बता रहे मैंगो लॉबी की साजिश
जिले के प्रमुख लीची उत्पादक किसान भोलानाथ झा का आरोप हैं कि यह सब मैंगो लॉबी की साजिश है। दूसरे प्रदेशों के बाजार में आम 10 से 15 रुपये किलो बिकता है। वहीं, लीची 200 से 250 रुपये किलो के भाव पर बिकती है। इसके जूस दुनिया भर में बिकते हैं। कहीं से कोई शिकायत नहीं आई। लीची की खेती व व्यवसाय को हतोत्साहित करने के लिए एक साजिश के तहत इस तरह का भ्रामक प्रचार किया जा रहा है।
देहाती क्षेत्र से ज्यादा शहरी क्षेत्र के लोग लीची खाते हैं, लेकिन बीमार सभी देहाती क्षेत्र के हैं। वह कहते हैं कि लीची चीन, थाइलैंड व अमेरिका सहित कई अन्य देशों में उत्पादित होता है। अगर इससे एईएस होता तो वहां भी यह बीमारी सामने आती। मुजफ्फरपुर की लीची देश के विभिन्न भागों में बेची जाती है। वहां खाने वाले बच्चे भी तो बीमार होते।
लीची अनुसंधान केंद्र की जांच में भी सही पाई गई लीची
राष्ट्रीय लीची अनुसंधान केंद्र के निदेशक डॉ. विशालनाथ कहते हैं कि जांच में लीची पूरी तरह सही पाई गई। इसमें बीमारी का कोई तत्व नहीं मिला है। यहां की लीची काफी बेहतर व स्वास्थ्यवर्द्धक है। इसे बदनाम नहीं किया जाना चाहिए।
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स्रोत: नई दुनिया