इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय रायपुर की मदद से आदिवासी किसान मधुमक्खी पालन करके अपने जीवन में मिठास घोल रहे हैं। आदिवासी बहुल कोरिया में कृषि विज्ञान केंद्र के मार्गदर्शन में गठित किसान उत्पादक संगठन द्वारा किए जा रहे मधुमक्खी पालन और शहद उत्पादन व्यवसाय ने इन आदिवासी किसानों के जीवन में शहद की मिठास घोल दी है।
किसान उत्पादक संगठन के 17 सदस्यों द्वारा संचालित मधुमक्खी पालन कृषि कुटीर उद्योग के अंतर्गत मधुमक्खी पेटी व मधुमक्खी कालोनी के निर्माण के साथ ही करंज, वन तुलसी, सरसों, सौंफ आदि फसलों एवं जंगली वृक्षों के फूलों तथा परागकणों से शुद्ध और गुणवत्तायुक्त शहद तैयार किया जा रहा है। उनके द्वारा ट्रायफेड, खादी इंडिया, छत्तीसगढ़ हस्तशिल्प बोर्ड के विक्रय केंद्रों और ई-कामर्स साइट फ्लिपकार्ट के माध्यम से लगभग चार लाख रुपये मूल्य का शहद विक्रय किया जा चुका है।
लगभग तीन लाख रुपये मूल्य का शहद विक्रय के लिए उपलब्ध है। इसके साथ ही समूह द्वारा विभिन्ना संस्थाओं और संगठनों को मधुमक्खी पेटी एवं मधुमक्खी कालोनी की भी भी आपूर्ति की जा रही है। मधुमक्खी पेटी निर्माण, शहद उत्पादन और मधुमक्खी कालोनी तैयार करने से इस कृषक उत्पादक संगठन को वित्तीय वर्ष 2021-22 में सात से आठ लाख रुपये का शुद्ध लाभ प्राप्त होने की उम्मीद है, जिससे प्रत्येक किसान को 45 से 50 हजार रुपये की आमदनी होगी।
इतने किसानों का है समूह
इस संगठन में कुल 17 कृषक सदस्य हैं, जिनमें से अधिकतर आदिवासी हैं। इस कृषक संगठन ने कृषि विज्ञान कोरिया के मार्गदर्शन में पिछले वर्ष मधुमक्खी पालन एवं शहद उत्पादन का कार्य प्रारंभ किया। कृषि विज्ञान केंद्र द्वारा संगठन के सदस्यों को बिहार एवं झारखंड के प्रशिक्षकों से मधुमक्खी पालन तथा शहद उत्पादन का प्रशिक्षण दिलाया गया। इस संगठन द्वारा 10 फ्रेम वाली यूरोपीयन मधुमक्खी पेटी एवं सेलोव सुपर पेटी का निर्माण किया जा रहा है। यहां प्रतिदिन 10 से 15 मधुमक्खी पेटियों का निर्माण होता है। मधुमक्खी पेटी के विक्रय पर प्रति पेटी 400 रुपये का मुनाफा प्राप्त होता है।
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स्रोत: Nai Dunia