झारखंड में दिखने लगा है नीली क्रांति का असर

August 17 2023

मछलीपालन के क्षेत्र में झारखंड धीरे-धीरे तरक्की कर रहा है। नीली क्राति के से जुड़कर झारखंड के युवाओं को रोजगार के नए अवसर प्राप्त हो रहे हैं। झारखंड में मत्स्य उत्पादन का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि जहां कुछ साल पहले तक यह राज्य मछली के लिए दूसरे राज्यों पर निर्भर था अब यह दूसरे राज्यों को मछली के साथ साथ उसका बीज भी निर्यात कर रहा है। इस तरह से कहा जा सकता है कि मत्स्य उत्पादन के क्षेत्र में झारखंड आत्मनिर्भर हो रहा है। राज्य के मछली उत्पादन के आंकड़ों में जबरदस्त उछाल आया है। सरकारी आंकड़ों के मुताबिक दो दशक पहले झारखंड में मछली उत्पादन 14000 मीट्रिक टन था वहीं पिछले साल जारी आकड़ों के मुताबिक झारखंड में दो लाख 80 हजार मीट्रिक टन मछली का उत्पादन होता है। इतना ही नहीं अब झाऱखंड मत्स्य बीज उत्पादन के क्षेत्र में भी आगे बढ़ रहा है। मत्स्य विभाग के निदेशक डॉ एच.एन द्विवेदी बताते हैं कि झारखंड को मछली बीज उत्पादन के क्षेत्र में आत्मनिर्भर बनाने के लिए राज्य भर के अलग-अलग जिलों के 75000 प्रगतिशील युवा मत्स्य किसानों को जीरा उत्पादन का प्रशिक्षण दिया गया है। उनका प्रशिक्षण पूरा हो गया है और जल्द ही सभी प्रशिक्षित जीरा उत्पादक किसान अपने-अपने जिला में मत्स्य बीज उत्पादन का काम करेंगे और दूसरे किसानों को मछली बीज बेचेंगे साथ ही उससे अपने तालाब में भी मछली पालन कर सकेंगे। विभाग का लक्ष्य है कि इसके जरिए राज्य में 1200 करोड़ मत्स्य बीज का उत्पादन होगा।

90 फीसदी अनुदान पर मिला है स्पॉन

मत्स्य निदेशक बताते हैं कि मत्स्य बीज उत्पादन के क्षेत्र में झारखंड को आत्मनिर्भर बनाने के लिए सरकारी योजनाओं का लाभ भी किसानों को दिया जा रहा है। उन्हें योजनाओं से जोड़ा जा रहा है मत्स्य बीज किसानों को प्रशिक्षण देने के बाद उन्हें 90 फीसदी अनुदान पर स्पॉन दिए जा रहे हैं। इसके अलावा उन्हें दो हजार रुपये का चारा और मत्स्य पालन में इस्तेमाल करने वाला बड़ा जाल दिया जाता है।

तकनीक के इस्तेमाल से हुआ फायदा

झारखंड में मत्स्य उत्पादन के बढ़ने के पीछे नई तकनीक की भी सराहनीय भूमिका है। अब पढ़े लिखे युवा इस क्षेत्र में भी आ रहे हैं और आधुनिक तकनीक का इस्तेमाल कर मछली पालन कर रहे हैं। इससे उत्पादन और कमाई दोनो बढ़ी है। किसानों को प्रधानमंत्री मत्स्य संपदा योजना और राज्य सरकार द्वारा संचालित योजनाओं का लाभ मिल रहा है। साथ ही अब वो बॉयोफ्लॉक और केज कल्चर तकनीक का इस्तेमाल कर रहे हैं, केज कल्चर तकनीक के इस्तेमाल से झारखंड के बड़े जलाशयों में मत्स्य उत्पादन बढ़ा है। अब राज्य के खाली पड़े खदानों में भी मछली पालन करने की योजना पर काम हो रहा है।

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स्रोत: कृषक जगत