भारत हींग का दुनिया में सबसे अधिक खपत करने वाला देश है। देश में सालाना हींग की खपत करीब 1500 टन है जिसकी कीमत 940 करोड़ रुपये से ज्यादा है।भारत अफगानिस्तान से 90, उज्बेकिस्तान से आठ और ईरान से दो फीसदी हींग का हर साल आयात करता है। दो वर्षों की रिसर्च के बाद आईएचबीटी ने लाहौल घाटी को हींग उत्पादन के लिए माकूल पाया है। इसके अलावा उत्तराखंड के पहाड़ी इलाके लद्दाख, हिमाचल का किन्नौर, मंडी जिला में जनझेली का पहाड़ी क्षेत्र भी हींग के लिए उपयुक्त माना गया है। लाहौल स्पीति के बाद अब इन इलाकों में भी हींग के पौधे रोपे गए हैं। गौरतलब है कि हींग की खेती के लिए 20 से 30 डिग्री तापमान होना जरूरी है. अंतरराष्ट्रीय बाजार में हींग की कीमत 35 से 40 हजार रुपये प्रति किलो है। एक पौधे से करीब आधा किलो हींग मिलता है. इसमें चार से पांच साल का समय लगता है। हिमालयी क्षेत्रों में हींग उत्पादन होने के बाद किसानों को इसकी अच्छी कीमत मिलेगी।
2020 में लगाए हींग के 100 पौधे
लाहौल में हींग की खेती करने वाले एक अन्य किसान तेनजिंग नोर्वु ने बताया कि 2020 में उन्हें भी हींग के करीब 100 पौधे दिए गए थे। शुरुआत में उन्होंने अक्टूबर के महीने में इन पौधों को समतल जगह पर लगाया था। समतल जगह पर पानी टिकने से कई पौधे सड़ गए। दूसरे वर्ष उन्होंने नए पौधों को ढलानदार जगह पर लगाया. तब जाकर इसमें उन्हें कामयाबी मिली है। गौरतलब है कि प्रदेश में पांच जिला में ऐसे स्थानों को चुना गया है जहां अब हींग की खेती का परिक्षण किया जा रहा है जिसमें सबसे ज्यादा कामयाबी लाहौल में देखने को मिल रही है, जो यहां के किसानों के लिए अच्छे संकेत है। यदि भविष्य में किसान और वैज्ञानिक इन क्षेत्रों में बड़ी मात्रा में हींग की खेती को कामयाब करने में सफल होते है तो अन्य नकदी फसलों के मुकाबले हींग की खेती कहीं ज्यादा फायदेमंद साबित हो सकती है।
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स्रोत: किसान तक