सरसों का हब बन सकता बुंदेलखंड, उन्नत किस्मों से डेढ़ गुना बढ़ी पैदावार

January 19 2021

राजस्थान में सरसों की उन्नत किस्म गिरिराज अब बुंदेलखंड में भी सरसों की खेती को नई दिशा देने का काम कर रही है। भरतपुर के राई एवं सरसों अनुसंधान निदेशालय की तरफ से रानी लक्ष्मीबाई केंद्रीय कृषि विश्वविद्यालय को उपलब्ध कराए गए गिरिराज समेत चार उन्नत किस्मों के बीज जब किसानों को दिए गए, तो लोकल बीजों के मुकाबले डेढ़ गुना तक पैदावार ज्यादा हुई है। इस बार विश्वविद्यालय ने दोगुने किसानों को इन उन्नत किस्मों के बीज उपलब्ध कराए हैं। ताकि, बुंदेलखंड सरसों का हब बन सके। 

देश में 50 फीसदी सरसों का तेल राजस्थान उपलब्ध कराता है। पानी की कमी और अनियमित बारिश के कारण बुंदेलखंड की परिस्थिति राजस्थान के समान है। ऐसे में कृषि विश्वविद्यालय ने वर्ष 2019 में 50 किसानों के लिए भरतपुर के राई एवं सरसों अनुसंधान निदेशालय से सरसों की उन्नत किस्म के बीच मंगवाए गए थे। इसके सकारात्मक परिणाम सामने आए।

पिछले साल बुवाई के बाद 18 से 20 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक यानी 35 से 40 फीसदी ज्यादा सरसों की पैदावर हुई। इसकी रिपोर्ट निदेशालय को भेजी गई। परिणाम से गदगद निदेशालय ने पिछले साल भी बुंदेलखंड के टीकमगढ़, निवाड़ी, ओरछा, झांसी के बड़ागांव, बबीना ब्लॉक के 50 किसानों के लिए सरसों की उन्नत प्रजाति गिरिराज आदि के बीज कृषि विश्वविद्यालय को दिए हैं। 

विश्वविद्यालय ने डेढ़ किलो बीज प्रति एकड़ और 40 किलो खाद प्रति एकड़ की दर से इन्हें बांटा। इसके बाद 22 क्विंटल या इससे ज्यादा उपज भी प्रति हेक्टेयर सामने आई है। यानी कि सरसों के लोकल बीज के मुकाबले डेढ़ गुनी उपज सामने आई है। फसल की बुवाई से कटाई तक सारे कार्य कृषि विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों, शिक्षकों की देखरेख में हुए। अब फिर दतिया के नौनेर में 36, पलींदा में 14, चंदवारी में 15, निवाड़ी के उबौरा, तरीचर कलां, बिनवारा और देवेंद्रपुरा में 36-36 किसानों को गिरिराज समेत उन्नज बीज किसानों को बांटे हैं। 

कम लागत, कम मेहनत और ज्यादा मुनाफा 

बुंदेलखंड में गेहूं की बुवाई अधिक होती है। जबकि, गेहूं की फसल को चार या उससे अधिक बार पानी देना पड़ता है। वहीं, सरसों की फसल को 30 दिन में सिर्फ एक बार पानी की जरूरत होती है। इसकी फसल एक या दो बार पानी देने पर लहलहा उठती है। कृषि विश्वविद्यालय के अधिकारियों का कहना है कि ऐसे में यदि किसान गेहूं की जगह सरसों की बुवाई करेंगे, तो कम लागत, कम मेहनत में ज्यादा मुनाफा कमा सकते हैं। 

नई किस्म में फली और दाने अधिक 

अभी बुंदेलखंड के किसान सरसों की सालों पुरानी लोकल किस्म के बीज की बुवाई करते हैं। यह शुद्ध नहीं होते हैं, ऐसे में कीट भी फसल में लग जाते हैं। वहीं, सरसों की नई किस्म शुद्ध होने से फसल में फली ज्यादा आती है और इसके दाने भी भारी होते हैं। फसल में रोग नहीं लगता है और तेल ज्यादा निकलता है। 

गिरिराज समेत उन्नत किस्मों की वजह से सरसों की उपज डेढ़ गुनी तक बढ़ गई है। पिछले साल की तुलना में इस बार दोगुने किसानों को उन्नत किस्मों के बीज दिए हैं। यह किसानों की आय दोगुनी करने की दिशा में ही बड़ा अहम कदम है। 

- डॉ. अरविंद कुमार, कुलपति, रानी लक्ष्मीबाई केंद्रीय कृषि विश्वविद्यालय।

 

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स्रोत: Amar Ujala