राजस्व रिकार्ड से नदारद 500 करोड़ का कारोबार करने वाली जबलपुर की मटर

November 26 2020

राष्ट्रीय कृषि आयोग में एक याचिका दायर की गई है। इसके जरिये जबलपुर के हरे मटर की अनदेखी को कठघरे में रखा गया है। साथ ही खाद्यान्न की श्रेणी निर्धारित न किए जाने पर भी सवाल खड़ा किया गया है। नागरिक उपभोक्ता मार्गदर्शक मंच, जबलपुर के प्रांताध्यक्ष डॉ.पीजी नाजपांडे, रजत भार्गव, अनिल पचौरी व डॉ.एमए खान याचिकाकर्ता हैं। उन्होंने अवगत कराया कि जबलपुर का नाम देश में रोशन करने वाले मटर की जमकर अनदेखी हो रही है। आलम यह है कि मटर फसल अनाज, दलहन, तिलहन, सब्जी आदि किसी भी श्रेणी में नहीं रखी गई है। इसलिए राजस्व रिकॉर्ड में धान, मक्का, सोयाबीन, मूंग, उड़द, गेहूं, चना, दलहन तो दर्ज हैं, लेकिन मटर नदारद है। खेती 90 हजार हेक्टेयर, दर्ज 15 हेक्टेयर : याचिका में यह भी कहा गया है कि जबलपुर के 90 हेक्टेयर में मटर बोया जाता है। लेकिन कृषि विभाग के रिकॉर्ड में महज 15 हेक्टेयर बोनी क्षेत्र दर्ज है। जबकि शहपुरा, सहजपुर, पाटन, बरगी, मझौली, पनागर व सिहोरा में मटर की खेती अच्छी होती है। 500 करोड़ से अधिक का सालाना कारोबार : याचिका में कहा गया है कि प्रतिवर्ष जबलपुर में 500 करोड़ से अधिक का हरे मटर का कारोबार होता है। भारत में सर्वाधिक मटर उत्पादन व निर्यात में जबलपुर का नाम दर्ज है। इसके बावजूद जबलपुर में मटर फुड प्रोसेसिंग, फुड प्रोडक्ट्स का धंधा ठीक से नहीं पनपा। इसलिए किसान अपनी फसर को भाग्य भरोसे छोड़ने विवश होते हैं। जबलपुर की शान मटर को अब उपेक्षा नहीं सहने देंगे। यही संकल्प है।

 

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स्रोत: Nai Dunia