कृषि वैज्ञानिकों को मिली बड़ी सफलता, मूंग की नई किस्म विकसित की, यह हैं खासियतें

September 10 2020

चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय के कृषि वैज्ञानिकों ने इस वर्ष मूंग की नई रोग प्रतिरोधी किस्म एमएच 1142 को विकसित की है। मूंग की इस किस्म को विश्वविद्यालय के आनुवंशिकी एवं पौध प्रजनन विभाग के दलहन अनुभाग ने विकसित किया है। इस किस्म को भारत सरकार के कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय के कृषि एवं सहयोग विभाग की फसल मानक, अधिसूचना एवं अनुमोदन केंद्रीय उप-समिति द्वारा नई दिल्ली में आयोजित 84वीं बैठक में अधिसूचित व जारी कर दिया गया है। 

विश्वविद्यालय के कुलपति प्रोफेसर समर सिंह ने कृषि वैज्ञानिकों इस उपलब्धि पर बधाई दी है। उन्होंने बताया कि इससे पहले भी विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों ने मूंग की आशा, मुस्कान, सत्या, बसंती, एमएच 421 व एमएच 318 किस्में विकसित की हैं। 

उत्तर भारत के लिए

खरीफ मौसम में बोई जाने वाली मूंग की एमएच 1142 किस्म को भारत के उत्तर-पश्चिम व उत्तर-पूर्व के मैदानी इलाकों में काश्त के लिए अनुमोदित किया गया है। इन क्षेत्रों में उत्तर प्रदेश, पंजाब, हरियाणा, दिल्ली, राजस्थान, उत्तराखंड, बिहार, झारखंड, पश्चिमी बंगाल व असम राज्य शामिल हैं।

यह है खासियत

विश्वविद्यालय के अनुसंधान निदेशक डॉ. एसके सहरावत ने बताया कि खरीफ में काश्त की जाने वाली मूंग की इस किस्म की खासियत यह है कि इसकी फसल एक साथ पककर तैयार होती है। इस किस्म की फलियां काले रंग की होती हैं और बीज मध्यम आकार के हरे व चमकीले होते हैं। इसका पौधा कम फैलावदार, सीधा एवं सीमित बढ़वार वाला है, जिससे इसकी कटाई आसान हो जाती है। यह किस्म विभिन्न राज्यों में 63 से 70 दिनों में पककर तैयार हो जाती है और इसकी औसत पैदावार भौगोलिक परिस्थितियों के अनुसार 12 से 20 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक आंकी गई है।

इन रोगों के प्रति होगी रोगरोधक क्षमता

इस किस्म की खास बात यह है कि इसमें पीला मौजेक, पत्ता झूरी, पत्ता मरोड़ जैसे विषाणु रोग तथा सफेद चुर्णी जैसे फफूंद रोगों की प्रतिरोधी है। इसके अतिरिक्त मूंग की इस किस्म में सफेद मक्खी व थ्रिप्स जैसे रस चूसक कीट एवं अन्य फली छेदक कीटों का प्रभाव भी पहले वाली किस्मों की तुलना में बहुत कम होगा। पादप एवं पौध प्रजनन विभाग के विभागाध्यक्ष डॉ. एके छाबड़ा ने बताया कि खरीफ के मौसम के लिए सिफारिश की गई इस किस्म का बीज अगले वर्ष किसानों के लिए उपलब्ध करवा दिया जाएगा।

इन वैज्ञानिकों की मेहनत लाई रंग

मूंग की एमएच-1142 किस्म विश्वविद्यालय के आनुवंशिकी एवं पौध प्रजनन विभाग के दलहन अनुभाग के कृषि वैज्ञानिक डॉ. राजेश यादव, डॉ. रविका, डॉ. नरेश कुमार, डॉ. पीके वर्मा और एके छाबड़ा की लगभग 13 साल की मेहनत का परिणाम है। इस उपलब्धि को प्राप्त करने में डॉ. एसके शर्मा, डॉ. एएस राठी, डॉ. तरूण वर्मा व डॉ. रोशन लाल का भी विशेष योगदान रहा।

 

इस खबर को अपनी खेती के स्टाफ द्वारा सम्पादित नहीं किया गया है एवं यह खबर अलग-अलग फीड में से प्रकाशित की गयी है।

स्रोत: Amar Ujala