कृषि विज्ञानियों ने सरगुजा के मेझरी" को बचाया

December 05 2020

शुगर फ्री चावल के लिए मशहूर मोटे अनाज कोदो, कुटकी और रागी के साथ सरगुजा के मेझरी को भी कृषि विज्ञानियों ने बचा लिया है। विलुप्त हो रही मेझरी का रकबा बढ़ाने के लिए कृषि विज्ञानी प्रयास कर रहे हैं। इस बार मैनपाट में लगभग 500 हेक्टेयर में किसानों ने मेझरी की फसल लगाई है। इसका चावल बाजार में 200 रुपये किलो में बिकता है।

पठारी क्षेत्र मैनपाट में धान की फसल नहीं ली जाती थी। इस कारण लोगों ने वर्षों पूर्व मोटे अनाज को चुना। इस मोटे अनाज का चावल काफी बारिक होता है। ग्रामीण क्षेत्र में इसे बगैर साग-सब्जी के भी आदिवासी खाते हैं।

हालांकि इसके संरक्षण का प्रयास नहीं किया गया। लिहाजा रकबा धीरे-धीरे घटता गया और किसानों ने दूसरी फसल लेनी शुरू कर दी। जब विज्ञानियों ने समझाया कि मेझरी का चावल धान के चावल से भी महंगा बिकता है, तब किसानों ने इसका रकबा बढ़ाना शुरू किया।

चार-पांच वर्ष पूर्व महज 100 हेक्टेयर में लगने वाला मेझरी का रकबा अब 500 हेक्टेयर तक पहुंच गया है। साथ ही इस बार इसके बीज का भी संरक्षण किया जाएगा।

इंदिरा गांधी विवि के कुलपति भी कर रहे प्रोत्साहित

इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय रायपुर के कुलपति डा. एसके पाटिल भी मैनपाट में रागी, कोदो, कुटकी के साथ मेझरी को बढ़ावा दे रहे हैं। उन्होंने कृषि विज्ञान केंद्र मैनपाट के कृषि विज्ञानियों को मेझरी को बचाने का हर संभव प्रयास करने के लिए कहा है।

10 क्विंटल तक उत्पादन

कृषि विज्ञान केंद्र मैनपाट के प्रभारी कृषि विज्ञानी डा. संदीप शर्मा ने बताया कि वैज्ञानिक तरीके से खेती कर मेझरी का उत्पादन प्रति एकड़ तीन क्विंटल से बढ़ाकर 10 क्विंटल किया जा सकता है।

उन्होंने बताया कि मेझरी की बालियां सुनहरे रंग की और काफी मजबूत होती हैं। यह लगाने के 90 दिनों के भीतर पककर तैयार हो जाती हैं।

मेझरी के एक दाने में 65 फीसद फाइबर होता है जो पाचन शक्ति व रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाता है। यह शुगर लेबल को स्थिर बनाए रखता है। इसके अलावा 100 ग्राम मेझरी में 28 मिली ग्राम आयरन होता है जो शरीर में हीमोग्लोबिन बढ़ाने में भी सहायक है।

 

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स्रोत: Nai Dunia