काले गेहूं की खेती किसानों के लिए लाभकारी

November 12 2020

कोरोना से जूझ रहे दुनियाभर के लोग इस समय खुद को स्वस्थ रखने के लिए खानपान पर विशेष ध्यान दे रहे हैं। ऐसे में कृषि वैज्ञानिक ऐसा अनाज उगाने के लिए प्रोत्साहित कर रहे हैं, जो शरीर की प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाए और किसानों की आमदनी में इजाफा करे। कृषि वैज्ञानिकों ने किसानों को काला गेहूं पैदा करने के लिए जागरूक करना शुरू किया है। इस प्रजाति के गेहूं में प्रोटीन और एंटी ऑक्सीडेंट ज्यादा होते हैं।

सरदार वल्लभ भाई पटेल कृषि विश्वविद्यालय के कृषि वैज्ञानिक डॉ. आरएस सेंगर ने बताया कि काले गेहूं की प्रजाति (नाबी एमजी) में आयरन, जिंक और एंटी ऑक्सीडेंट सामान्य गेहूं की प्रजातियों से ज्यादा हैं। इसका बीज छह से नौ हजार रुपये प्रति क्विंटल है। 

सामान्य तौर पर नवंबर में इसकी बुवाई होती है। दिसंबर में इसकी बुवाई करने पर गेहूं की पैदावार तीन से चार क्विंटल प्रति हेक्टेयर और जनवरी में बुवाई करने पर चार से पांच क्विंटल प्रति हेक्टेयर की कमी आती है। इस प्रजाति का सामान्य उत्पादन 10 से 12 क्विंटल प्रति बीघा है।

पंजाब के मोहाली में की गई खोज

डॉ. सेंगर के अनुसार, काले गेहूं में सामान्य गेहूं के मुकाबले इसमें एंटी ग्लूकोज तत्व ज्यादा होते हैं। ये शुगर के मरीजों के लिए फायदेमंद होता है। ब्लड सर्कुलेशन सामान्य रखता है। ट्राइग्लिसराइड तत्वों की मौजूदगी के कारण इसके इस्तेमाल से दिल की बीमारियों का खतरा कम होता है। मैग्नीशियम उच्च मात्रा में पाए जाने से शरीर में कोलेस्ट्राल का स्तर सामान्य बना रहता है।

काले गेहूं की खोज पंजाब के मोहाली स्थित नेशनल एग्री फूड बॉयोटेकनोलॉजी इंस्टीट्यूट ने की है। विशेषज्ञों का दावा है कि काले गेहूं के नियमित सेवन से शरीर को सही मात्रा में फाइबर प्राप्त होता है, जिससे पेट के रोगों में लाभ मिलता है। इसमें मौजूद फास्फोरस तत्व शरीर में नए ऊतक बनाने के साथ उनके रखरखाव में अहम भूमिका निभाते हैं।

प्रति 100 ग्राम में पोषक तत्व

कैलोरी 343, पानी 10 प्रतिशत, प्रोटीन 13.3 ग्राम, कार्बन 71.5 ग्राम, शर्करा 0 ग्राम, फाइबर 10 ग्राम और वसा 3.4 ग्राम

पश्चिमी यूपी के किसानों को कर रहे जागरूक

डॉ. सेंगर ने बताया कि मुजफ्फरनगर, हापुड़ के अलावा मेरठ, गाजियाबाद और बागपत में काले गेहूं की खेती की जा रही है। इसको बढ़ावा देने लिए किसानों को कृषि विज्ञान केंद्रों के माध्यम से जागरूक किया जा रहा है। पश्चिमी यूपी में अगले वर्ष तक काफी बीज उपलब्ध हो जाएगा।

 

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स्रोत: Amar Ujala