आलू की फसल को वायरस से बचाने के लिए फसल चक्र अपनाना जरूरी हो गया है, तभी जाकर किसान मिट्टी से निमोटोड वायरस से निपट सकेंगे। केंद्रीय आलू अनुसंधान संस्थान (सीपीआरआई) शिमला के वैज्ञानिकों ने किसानों को सुझाव दिया है कि खेतों में सालों तक लगातार आलू ही बीजना घातक हो सकता है। इस वायरस से आलू की पैदावार करीब 25 से 30 फीसदी तक घट सकती है। यह उत्पादन तेजी से घटता जाता है।
हिमाचल सहित देश के अन्य राज्यों में निमोटोड वायरस आलू उत्पादन पर भारी पड़ रहा है। यही नहीं, केंद्रीय आलू अनुसंधान संस्थान के कुफरी और फागू फार्म में हर साल आलू बीज पैदा किया जाता रहा है। लेकिन पिछले तीन साल से उत्पादन ठप हो चुका है। बताते हैं कि खेतों की मिट्टी से वायरस खत्म करने के लिए फिलहाल कोई दवा उपलब्ध नहीं है।
वायरस का सात साल तक रहता है असर
सीपीआरआई के वैज्ञानिक बताते हैं कि निमोटोड वायरस का सात साल तक मिट्टी पर असर रहता है। खेतों में लगातार आलू उत्पादन से वायरस फैलने की आशंका रहती है। यह आलू विदेशों खासकर यूरोप और अमेरिका में भी खाया जाता है। ऐसे आलू को खाने से कोई विपरीत असर नहीं पड़ता है।
सीपीआरआई के वैज्ञानिक सामाजिक संभाग अध्यक्ष डॉ. एनके पांडेय कहते हैं कि जो किसान लगातार आलू की पैदावार लेते हैं, उनके खेतों की मिट्टी में निमोटोड वायरस रहता है। किसानों को फसल चक्र अपनाना चाहिए। यानी एक साल आलू, दूसरे साल सरसों, तीसरे साल राजमाह आदि फसलें खेतों में उगाकर वायरस से बचा जा सकता है।
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स्रोत: Amar Ujala