अर्थव्यवस्था की रीढ़ साबित हुए कृषि क्षेत्र को बड़े प्रोत्साहन की तैयारी

September 07 2020

सार

प्रदेश सरकार की कृषक उत्पादक संगठन नीति तैयार, जल्द कैबिनेट में लाने की तैयारी

किसानों को कृषक उद्यमी बनाने का लक्ष्य, बड़े पैमाने पर स्थानीय स्तर पर मिलेगा रोजगार

छह लाख किसानों को सीधे लाभ, पट्टाधारक, कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग को भी जोड़ने का प्रस्ताव

विस्तार

कोरोना महामारी के दौरान अर्थव्यवस्था के लिए रीढ़ साबित हुए कृषि क्षेत्र को सरकार बड़ा प्रोत्साहन देने की तैयारी में है। इसके लिए यूपी कृषि उत्पादक संगठन नीति-2020 लाने जा रही है। इससे संबंधित कैबिनेट प्रस्ताव पर विभिन्न विभागों से राय ली जा रही है। इसके तहत किसानों को समूह में खेती के लिए प्रेरित करने के साथ ही उन्हें उद्यमी के रूप में आगे बढ़ाने और स्थानीय स्तर पर बड़े पैमाने पर रोजगार सृजन की योजना है।

गौरतलब है कि केंद्र सरकार ने किसानों को समूह में खेती करने के लिए 10 हजार किसान उत्पादक संगठन (एफपीओ) गठित करने का एलान किया था। इसी तरह प्रदेश के किसानों को इस योजना का लाभ देने के लिए 2000 एफपीओ बनाने की योजना है। प्रत्येक संगठन में 300 किसान जोड़े जाएंगे। 

इससे करीब छह लाख किसान लाभान्वित होंगे। इस नीति में इन समूहों को कई सुविधाएं व आर्थिक सहयोग देने का प्रस्ताव है। इसके अलावा वे केंद्र से दी जाने वाली सुविधा भी प्राप्त कर सकेंगे। वहीं, मंडी अधिनियम में सुधार, भूमि पट्टा अधिनियम, निर्यात प्रोत्साहन नीति व कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग नीति के अंतर्गत अनुदान व सुविधाओं से भी एफपीओ को जोड़ने की पहल होगी।

नई नीति के तहत एफपीओ को रबी, खरीफ व जायद के लिए 5 लाख रुपये का रिवाल्विंग फंड देने का प्रस्ताव है। इस फंड की राशि पर लिए जाने वाले ब्याज पर चार प्रतिशत वार्षिक दर से ब्याज अनुदान देने की योजना है।

एफपीओ नीति की अहम बातें-

किसानों से जुड़े सभी विभाग और यूपी एग्रो, बीज विकास निगम, इफको, कृभको, मंडी परिषद, कृषि विश्वविद्यालय व कृषि विज्ञान केंद्र इसके दायरे में होंगे।

ये संस्थाएं एफपीओ को कृषि निवेश, आधुनिक तकनीक, कृषि उत्पादों के संवर्धन, विक्रय, कंपनी से जुड़े मामलों व टैक्स प्रबंधन आदि में सहयोग करेंगे।

कृषि से जुड़े राज्य व केंद्र सरकार की समस्त योजनाओं का लाभ एफपीओ को मिलेगा।

समूहों का प्रशिक्षण, कृषि उत्पादों के चयन, व्यावसायिक कार्ययोजना बनाने में मदद करेगा।

एफपीओ को ई-नाम, एमसीएक्स व एनसीडीएक्स से जोड़कर कृषि उत्पाद बेचने की सुविधा दी जाएगी।

राज्य स्तर पर परियोजना प्रबंधन इकाई (पीएमयू) होगी। इनमें विभिन्न सेक्टर के विशेषज्ञ व सहयोगी रखे जाएंगे।

पीएमयू सभी तरह के डाटाबेस का प्रबंधन करेगा। वित्तीय सहायता, इक्विटी ग्रांट, बिजनेस डवलपमेंट सपोर्ट आदि के लिए संस्तुति देगा।

पीएमयू का राज्य, मंडल व जिला स्तरीय संगठन प्रस्तावित है। कृषि विभाग एफपीओ नीति के लिए नोडल एजेंसी होगा।

पंजीकरण और प्रबंधन के लिए भी मदद

40 हजार रुपये तक पंजीकरण, कार्यालय के किराए के लिए प्रतिवर्ष 48 हजार रुपये, बिजली व टेलीफोन शुल्क के रूप में 12 हजार रुपये प्रतिवर्ष, फर्नीचर व साज-सज्जा पर अधिकतम 20 हजार रुपये, सफाई, स्टेशनरी आदि पर 12 हजार रुपये प्रतिवर्ष खर्च किया जा सकेगा। इन तीन वर्षों में एफपीओ को सशक्त बनकर चौथे वर्ष से अपने व्यावसायिक क्रियाकलापों से वित्तीय सहायता का प्रबंधन करना होगा। प्रति एफपीओ अधिकतम 15 लाख का इक्विटी अनुदान भी स्वीकृत होगा।

इसलिए पड़ रही एफपीओ नीति की जरूरत

प्रदेश में वर्तमान में 447 एफपीओ पंजीकृत हैं। इनमें नाबार्ड के 273, लघु कृषक  व्यवसायिक संघ के 34, भूमि सुधार निगम के 120 और राज्य जैव ऊर्जा बोर्ड के 134 एफपीओ हैं। करीब 50 प्रतिशत एफपीओ अपने संसाधनों से सदस्यों को सुविधाएं उपलब्ध करा रहे हैं। कई एफपीओ प्रारंभिक स्तर पर हैं, जिनकी सक्रियता बढ़ाने के लिए संसाधन मुहैया कराने का प्रस्ताव है।

सीईओ, अकाउंटेंट रख सकेंगे एफपीओ

केंद्र सरकार प्रति एफपीओ तीन वर्ष के लिए 18 लाख रुपये तक मदद देगी। इसके अंतर्गत समूह के सीईओ/प्रबंधक को 25 हजार रुपये प्रतिमाह और अकाउंटेंट को 10 हजार रुपये प्रतिमाह वेतन दे सकेगी। एफपीओ का सीईओ कृषि, कृषि विपणन, कृषि व्यवसाय प्रबंधन या बीबीए या समकक्ष स्नातक होना चाहिए। इंटरमीडिएट के साथ इन क्षेत्रों में डिप्लोमाधारकों को भी रखा जा सकेगा। लेखाकार को अनिवार्य विषय के रूप में गणित, वाणिज्य व अकाउंटेंसी के साथ इंटरमीडिएट उत्तीर्ण होना चाहिए। अगर एफपीओ का कोई सदस्य इस मानक को पूरा करता है, तो उसे यह मौका देने की योजना है।

 

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स्रोत: Amar Ujala