हिमाचल प्रदेश में अत्यधिक कीटनाशकों के छिड़काव से बगीचों से मित्रकीट लुप्त होने लगे हैं। बगीचों में प्राकृतिक तौर पर ये मित्र कीट वूली एफिड और माइट का सफाया करते हैं। बागवान अगर फलदार पेड़ों पर मित्र कीट देख लें तो उन्हें दुश्मन कीट समझकर कीटनाशकों का इस्तेमाल कर मार देते हैं। प्रदेश में दशकों पहले बागवान बगीचों में छिड़काव नहीं करते थे तो मित्रकीट ही दुश्मन कीटों का सफाया करते थे। सेब बगीचों में लेडी बर्ड बीटल मित्र कीटों में से एक कीट है, जो दुश्मन कीटों का सफाया करता रहा है।
यह कीट कुछ साल पहले तक भारी संख्या में दिखता था, लेकिन इनकी संख्या तेजी से घटी है। लेस विंग हरे रंग का मित्र कीट रोशनी की ओर आकर्षित होता है। इसके पंखों पर धारियां बनी होती हैं। सिरफिड मक्खी हेलीकाप्टर की तरह दिखती है। यह वूली एफिड का खात्मा करने में मददगार होती है। यह अंडे देती हैं तो बच्चों का भोजन दुश्मन कीटों से प्राप्त करते हैं।
वास्प, ततैया, बौरीक्यूमन ओरियस आदि कई मित्र कीट हैं, जो बागवानों और किसानों के मित्र कीट हैं। बागवानी विशेषज्ञ कहते हैं कि 15 अप्रैल से जून अंत तक बगीचों में कीटनाशकों का फलदार पेड़ों पर छिड़काव घातक रहता है। इस अवधि में मित्र कीट दुश्मन कीटों का सफाया करते हैं। छिड़काव करने से मित्रकीट भी खत्म होते हैं। जमीन में छिड़काव किया जा सकता है।
बागवानी विशेषज्ञ डॉ. एसपी भारद्वाज ने कहा कि मित्रकीट माइट और वूली एफिड से बचाव करने के साथ दुश्मन कीटों को मारते हैं। अधिक दवाओं को छिड़काव करना मित्रकीटों के लिए भी खतरनाक है। दवाओं का छिड़काव 15 अप्रैल से जून अंत तक नहीं करना चाहिए।
इस खबर को अपनी खेती के स्टाफ द्वारा सम्पादित नहीं किया गया है एवं यह खबर अलग-अलग फीड में से प्रकाशित की गयी है।
स्रोत: Amar Ujala