सर्वेश ने रामफल के पत्तों से बनाया जैविक पेस्टीसाइड, जानिए विशेषताएं

November 08 2021

क्या आप रामफल के बारे में जानते हैं या अपने कभी इसका नाम सुना है?शायद कभी सुना होगा. रामफल एक ऐसा फल है, जिसका पेड़ फलदार वृक्ष या झाड़ी की तरह होता है। इस फल को आमतौर पर कस्टर्ड सेब   ( Custard Apple ) के रूप में जाना जाता है। रामफल में पौधे में कई सारे पोषक तत्व होने के साथ-साथ औषधीय लाभ भी होते हैं।

रामफल का वैज्ञानिक नाम एनोना रेटिकुलाटा (Annona Reticulata) होता है जो की अलग-अलग देशों में अलग–अलग नाम से जाना जाता है। वहीं हमारे भारत में इस फल को रामफल के नाम से जाना जाता है। इसके पत्ते का उपयोग परजीवी कीड़े के इलाज के लिए किया जाता है एवं फोड़े, फोड़े और अल्सर पर इलाज के रूप में भी किया जाता है।

जैसा की बताया गया है कि रामफल से कई औषधीय लाभ होते हैं इसी बीच आज हम आपको एक ऐसे व्यक्ति के बारे बताने जा रहे हैं जिन्होंने रामफल की पत्तियों के रस से जैविक पेस्टीसाइड (organic pesticide) बनाने का फार्मूला तैयार किया है।

दरअसल, दिल्ली पब्लिक स्कूल रायपुर के एक विद्यार्थी सर्वेश प्रभु ने रामफल के पत्तियों के रस से एक नई शोध कर फसलों पर लगने वाले कीटों से रोकथाम करने के लिए पेस्टीसाइड तैयार किया है।  

सर्वेश प्रभु का क्या है कहना

सर्वेश परभू का कहना है कि रामफल की पत्तियों में एसिटोजेनिन नाम का केमिकल पाया जाता है जो फसलों पर लगने वाले कीटों को ख़त्म करने में काफी सहायक साबित हो सकता है। रामफल की पत्तियों का रस पूर्ण रूप से जैविक पेस्टीसाइड है। सर्वेश के मुताबिक यदि हम फसलों पर रामफल की पत्तियों से बनाया गया पेस्टीसाइड का छिडकाव करते हैं तो फसलों के लिए एक सुरक्षा कवच का काम करता है।

सर्वेश के मन में कैसे आया विचार

सर्वेश का कहना है कि कोरोना के वक्त सभी जगह तालाबंदी हो गयी थी उस समय वह अपनी नानी के घर थे। सर्वेश ने बताया की जब वह नानी के घर थे तब वे अक्सर खेतों में जाया करते थे जहाँ उन्होंने पाया कि खेतों में लगी फसलों में कई तरह के कीट लग रहे थे, जिनसे बचाव के लिए किसान अनेक तरह की रासायनिक कीटनाशक का इस्तेमाल कर रहे थे। उसके बाद से उन्होंने कई तरह के पौधों पर जैविक पेस्टीसाइड बनाने के लिए शोध किया, फिर उन्होंने रामफल पर भी शोध किया, जिसमें उन्होंने जैविक पेस्टीसाइड बनाने में सफलता हासिल की।

सर्वेश की इस शोध की अमेरिका तक में हुई सराहना

सर्वेश प्रभु की शोध की वजह से उन्हें गोल्ड मेडल भी मिला है। इसके साथ ही उन्हें 20 हजार डॉलर की स्कालरशिप पुरस्कार भी मिला है। सर्वेश की सफल प्रयोग की सराहना भारत ही नहीं, बल्कि अमेरिका सहित कई अन्य देशों में भी हो रही है।

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स्रोत: Krishi Jagran