भारत की अगुवाई में दुनिया साल 2023 को ‘इंटरनेशनल ईयर ऑफ मिलेट्स’ के रूप में मनाएगी. इससे पता चलता है कि ये अनाज अब कितने लोकप्रिय हैं. मोटे अनाजों की चर्चा का मुख्य कारण यह है कि वे लसमुक्त (Gluten free) होते हैं और वजन घटाने में मदद करते हैं. भारत, मोटे अनाजों के टॉप उत्पादकों और निर्यातकों में से एक है. यहां बाजारा, ज्वार और रागी के साथ-साथ ‘छोटे’ मिलेट जैसे फॉक्सटेल मिलेट, बार्नयार्ड मिलेट, कोदो, प्रोसो मिलेट और लिटिल बाजरा की पैदावार होती है.
भारत के शुष्क भूमि के किसान मोटे अनाजों की दो किस्मों को उगाते हैं, जिनमें कुट्टू और चौलाई शामिल हैं. रेशेदार तत्व और जरूरी खनिजों से भरपूर होने के अलावा, मोटे अनाज को उगाने के लिए ज्यादा पानी की जरूरत नहीं होती.
मोटे अनाज, भोजन के शुरुआती स्रोतों में से एक थे. प्रसिद्ध पोषण विशेषज्ञ, डॉ. वरुण कात्याल कहते हैं कि लगभग 7,000 सालों से अफ्रीका और एशिया में मोटे अनाज करोड़ों लोगों के लिए एक पारंपरिक खाद्य स्रोत रहे हैं. इनके प्रमाण सिंधु घाटी सभ्यता में भी पाए जाते हैं. मोटे अनाजों को अब पूरी दुनिया में उगाया जाता है. कात्याल कहते हैं कि कई चीजों में से एक, जो मोटे अनाजों को खास बनाती है, वह है इनका पोषक होना. क्लिनिकल न्यूट्रिशनिस्ट, लेखिका और उद्यमी ईशी खोसला कहती हैं कि मोटे अनाज पोषक तत्वों से भरपूर होते हैं, इनमें फाइबर की मात्रा ज्यादा होती है और ये लस मुक्त (gluten free) होते हैं. साथ ही ये आसानी से पचते हैं
ये पचाने में भी होते हैं आसान
मोटा अनाज आसानी से पच जाता है, इसलिए कात्याल इन्हें बच्चों के लिए एक अच्छे भोजन विकल्प के रूप में लेने की सलाह देते हैं. वह कहते हैं कि मोटे अनाजों में मौजूद कैल्शियम और मैग्नीशियम हड्डियों और शारीरिक विकास को बढ़ावा देने में मदद करते हैं. इनमें मौजूद फाइबर और एंटीऑक्सीडेंट वजन घटाने में मदद कर सकते हैं. इसके साथ ही ये डायबिटीज को काबू में रखने में भी कारगर होते हैं और दिल को भी स्वस्थ रख सकते हैं. मोटे अनाजों में कैलोरी कम होती है और ये ओवरईटिंग से बचाते हैं.
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स्रोत:tv 9