बढ़ती लागत, घटता उत्पादन

July 17 2021

खेती परंपरागत तरीकों की जगह भले ही आधुनिक गई हो, मगर किसानों के लिए लाभकारी नहीं हो पायी है। हालांकि सरकार किसानों को कुछ यूनिट बिजली निशुल्क देने के अलावा बीज और खाद पर सब्सिडी देकर राहत देती है। इसके बावजूद डीजल की बढ़ती कीमत, ट्रैक्टर से जुताई व थ्रेसर से गहाई की बढ़ी लागत और श्रमिकों का बढ़ता मेहनताना फसल का लागत मूल्य बढ़ा रहा है।

परंपरागत खेती लगभग खत्म हो गई है। पहले हल के जरिए खेतों की जुताई की जाती थी। वहीं धान की गहाई के लिए बेलन का उपयोग किया जाता था। समय के साथ कृषि कार्य के तरीकों में भी बड़ा बदलाव आ गया है। परंपरागत खेती के बजाय आधुनिक खेती की ओर किसानों का रुझान तेजी से बढ़ा है। यही कारण है कि उन्नतशील किसानों की तर्ज पर लघु और मध्यम किसान भी कृषि यंत्रों के जरिए खेती करने लगे हैं। यहां एक तरफ जहां कोरोना काल में लंबे समय से आर्थिक गतिविधियां ठप रही है, वहीं दूसरी तरफ महंगाई सातवें आसमान पर पहुंचती जा रही है। निम्न और मध्यम वर्गीय परिवार की कमर टूटती जा रही है। हर वर्ग महंगाई को लेकर त्राहीमाम कर रहा है। खेती में भी लागत बढ़ती जा रही है। एक साल में सोयाबीन बीज के भाव दोगुना हो गए हैं, वहीं डीजल की कीमत बढऩे से खेतों का काम भी महंगा हो गया है। दूसरी तरफ राज्य एवं केन्द्र सरकार 2022 तक किसानों की आमदनी दोगुनी करनी की बात कर रही है कई योजनाएं भी चलाई जा रही है जो आमदनी बढ़ाने में मददगार साबित हो। परन्तु यह सभी प्रयास विफल होते नजर आ रहे है क्योंकि डीजल महंगा,खाद महंगी,बीज महंगा तो आय कैसे बढ़ेंगी? फिर चाहे खेती का रोडमेप बने या आत्मनिर्भर अभियान के तहत योजनाएं बनाकर किसानों को लाभ पहुंचाने का प्रयास हो।

पिछले वर्ष प्रदेश में 6500 रुपये क्विंटल में मिलने वाला सोयाबीन का बीज इस वर्ष निजी क्षेत्र में 9000 से 12000 रुपये क्विंटल में बिका। वहीं शासन ने सोयबीन बीज की दर 7500 रुपये क्विंटल तय की। किसानों को बीज व्यवसायियों के यहां घंटों इंतजार कर बीज लेना पड़ा वह भी महंगा और कम मात्रा में मिला। जब फसल बेचने का मौका आता है तो वह कम भाव में ली जाती है और बोनी के समय इसके भाव बढ़ जाते हैं। सरकार इस पर अंकुश नहीं लगा पा रही है। डीजल की कीमतों में बढ़ोतरी के कारण आधुनिक कृषि यंत्रों के जरिए खेती करना किसानों को अब महंगा पडऩे लगा है। डीजल की कीमत प्रति लीटर 100 रुपये के आस पास पहुंचने से किसानों की परेशानी और बढ़ गई है।

पिछले साल खरीफ के दौरान लगभग 1,800 रुपये प्रति एकड़ की दर से कटाई और गहाई के लिए हार्वेस्टर संचालक ने लिए थे। रबी में वे प्रति एकड़ 2,000 रुपये लिये। थ्रेसर से गहाई 800 रुपये प्रति घंटा से बढक़र 1,000 रुपये हो गई है। साथ ही पुरुष श्रमिकों का मेहनताना प्रतिदिन 250 रुपये से बढक़र 350 रुपये हो गया है। वहीं महिला श्रमिकों की मजदूरी 200 रुपये से 250 रुपये हो गई है। वहीं मूंग की कटाई 1000 रुपये से बढक़र 1500 रुपये प्रति एकड़ में हुई है। अर्थात् वर्ष 2020 के मुकाबले इस वर्ष खेती प्रति एकड़ महंगी हो गई है। औसतन लगभग 25 प्रतिशत की बढ़ौत्री हुई है इस रफ्तार से खेती की बढ़ती लागत चिंता का विषय है। फसलों के उत्पादन की लागत बढऩे से किसानों का लाभ कम हो जाएगा, क्योंकि इसके मुकाबले समर्थन मूल्य में बढ़ोतरी नहीं हुई है। कर्ज माफी समस्या का समाधान नहीं है, बल्कि उत्पादन लागत कम और समर्थन मूल्य में बढ़ोतरी करनी होगी। तभी किसान को फायदा होगा और उत्पादन बढ़ेगा।

डीजल के लगातार बढ़ते दामों ने किसान व आमजन का बजट बिगाड़ दिया है। पिछले मई और जून में 25-30 बार पेट्रोल-डीजल के दामों में बढ़ोतरी हुई है। इस बढ़ती महंगाई से सभी लोग परेशान हैं। कोरोनाकाल में लोगों के काम धंधे चौपट हो गए हैं। उसके बाद भी लोगों को महंगाई से राहत नहीं मिल रही है। वर्तमान में पेट्रोल के दाम 109 व डीजल के दाम 99 रुपये प्रति लीटर है। इसका सबसे ज्यादा असर किसान और उसकी खेती पर पड़ रहा है। किसान को खेत की सिंचाई व जुताई करने के लिए डीजल की आवश्यकता अधिक होती है। लगातार बढ़ती महंगाई एक बड़ी समस्या बन गई है जिससे वर्तमान में हर कोई परेशान है।

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स्रोत: Krishak Jagat