केंद्र सरकार और किसानों के लिए बुरी खबर, गेहूं का प्रति हेक्टेयर उत्पादन घटा, अब कैसे होगी किसानों की आय दोगुनी!

March 08 2021

न्यूनतम समर्थन मूल्य बढ़ाने और कृषि कानूनों की वापसी की मांग को लेकर किसान पिछले सौ दिनों से आंदोलन पर हैं, लेकिन इसी बीच किसानों और केंद्र सरकार के लिए एक बुरी खबर सामने आई है कि देश में गेहूं के प्रति हेक्टयर उत्पादन में कमी आ गई है। यह पिछले वर्ष की तुलना में 3.17 फीसदी घटकर 3421 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर रह गई है। इससे किसानों की प्रति क्विंटल गेहूं उत्पादन पर लागत और अधिक बढ़ जाएगी और उनका कृषि घाटा अधिक बढ़ जाएगा। यह स्थिति केंद्र सरकार पर भी दबाव डालने वाली होगी क्योंकि उसे न्यूनतम समर्थन मूल्य के रूप में ज्यादा पैसा चुकाना पड़ सकता है। इससे किसानों की आय बढ़ाकर दोगुनी करने की केंद्र सरकार की योजना पर भी गहरी चोट पड़ सकती है।

कितना है उत्पादन

केंद्रीय कृषि मंत्रालय के आंकड़ों के अनुसार वर्ष 2015-16 में देश में गेहूं का उत्पादन 3034 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर था। इसके अगले वर्ष यानी 2016-17 में इसमें 5.47 फीसदी की वृद्धि हुई और यह बढ़कर 3200 किलोग्राम प्रति हेक्टयर पहुंच गया। वर्ष 2017-18 में उत्पादन बढ़कर 3368 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर और 2018-19 में 3533 किलोग्राम प्रति हेक्टयर हो गया। लेकिन वर्ष 2019-20 में गेहूं के प्रति हेक्टेयर उत्पादन में आश्चर्यजनक तरीके से कमी दर्ज की गई। यह उत्पादन 3421 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर हो गया। यह इसके पिछले वर्ष की तुलना में 3.17 फीसदी कम है।

क्या हो सकते हैं कारण

कृषि विशेषज्ञों के अनुसार गेहूं ठंडी जलवायु की फसल है। अगर तापमान इसके अनुकूल रहता है तो गेहूं का उत्पादन अच्छा रहता है, लेकिन अगर वातावरण का तापमान किसी भी कारण से ज्यादा हो जाए तो गेहूं के उत्पादन में कमी आ सकती है। लेकिन यह लंबे समय तक तापमान ऊंचा बने रहने के बाद ही संभव है। उर्वरकों की मात्रा लगातार ज्यादा इस्तेमाल करने से भी लंबी अवधि में उत्पादन में कटौती आ सकती है। 

धरती के लगातार गर्म होने, कार्बन उत्सर्जन गैसों के बढ़ने और प्रदूषण के बढ़ने के असर के कारण भी पर्यावरण में तापमान बढ़ रहा है। इसका असर भी गेहूं उत्पादन में कमी के रूप में सामने आ सकता है। लेकिन भारत में गेहूं का प्रति हेक्टेयर उत्पादन अभी भी विश्व औसत से काफी कम है, इसलिए अभी यह नहीं कहा जा सकता कि भारत गेहूं के उत्पादन के अपने सर्वोच्च स्तर पर पहुंच गया है।

कितना है वैश्विक उत्पादन स्तर

प्रति हेक्टेयर गेहूं उत्पादन के मामले में न्यूजीलैंड सबसे ऊपर है, जो प्रति हेक्टेयर लगभग 10 मिट्रिक टन का उत्पादन करता है। चीन और सउदी अरब जैसे देश 6 मिट्रिक टन और जापान पांच मिट्रिक टन का उत्पादन करते हैं। भारत इस श्रेणी में 33वें नंबर पर आता है जो लगभग तीन मिट्रिक टन या उससे कुछ ऊपर उत्पादन करता है। पाकिस्तान भी प्रति हेक्टेयर हमारे आसपास ही गेहूं का उत्पादन करता है। ठंडे देशों की जलवायु गेहूं उत्पादन को सबसे ज्यादा लुभाती है, यही कारण है कि पश्चिमी देश इस क्षेणी में सबसे ऊपर हैं।

स्थिति भयावह, आय बढ़ाने को लागत घटाए सरकार

किसान नेता किरण कुमार ने अमर उजाला से कहा कि कृषि उपज में कमी आने से किसानों पर भारी दबाव बढ़ेगा। एक तरफ तो उनकी आय घटेगी तो दूसरी ओर डीजल, बीज और उर्वरकों के दाम रोजाना तेजी से बढ़ रहे हैं। सरकार फसलों की कीमत साल में एक बार तय करती है जबकि किसानों की खेती में उपयोग होने वाले डीजल की कीमतें रोज बढ़ रही हैं। किसानों को सही उपाय न मिल पाने का ही नतीजा है कि वह रोज आत्महत्या को मजबूर हो रहा है। 

किसान नेता ने कहा कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर किसी भी देश में कृषि लाभकारी व्यवसाय नहीं है। उन देशों की सरकारें भारी सब्सिडी देकर किसानों के हितों की रक्षा करती हैं। हर मामले में पश्चिमी देशों का अंधानुकरण करने वाली सरकार को इस मामले में भी उनका अनुसरण करना चाहिए। उन्होंने कहा कि किसानों को नष्ट होने से बचाने के लिए सरकार को तत्काल एमएसपी को कानूनी अधिकार बनाना चाहिए। इससे अलावा बिजली, डीजल पर सब्सिडी कम कर किसानों का लागत मूल्य घटाना चाहिए।

एमएसपी से बचाकर ही बढ़ सकती है किसानों की आय

न्यूनतम समर्थन मूल्य के कटु आलोचक कृषि अर्थशास्त्री विजय सरदाना ने अमर उजाला से कहा कि न्यूनतम समर्थन मूल्य देने की हमारी नीति गलत है, जिसके कारण किसान और खेती दोनों का भारी नुकसान हो रहा है। उन्होंने कहा कि न्यूनतम समर्थन मूल्य होने के कारण किसान खेतों में अनावश्यक रूप से ज्यादा मात्रा में खाद और कीटनाशकों का उपयोग करते हैं। 

इससे गेहूं की गुणवत्ता खराब हो जाती है और इसका उपयोग करने वालों को बीमारियों का सामना करना पड़ता है। इसके साथ ही कृषि योग्य भूमि की उर्वरता नष्ट हो जाती है और भूमि में प्रति हेक्टेयर उत्पादकता कम होने लगती है। पंजाब और हरियाणा जैसे राज्य जहां गेहूं-धान का ज्यादा उत्पादन हो रहा है, वहां इसका साफ नकारात्मक असर देखा जा रहा है। 

विजय सरदाना ने कहा कि अगर किसानों की आय बढ़ानी है और कृषि योग्य भूमि की उत्पादकता को बनाए रखना है, तो हमें जैविक तरीके से खेती की तरफ लौटना होगा। भूमि में कंपोस्ट और हरी खादों का उपयोग बढ़ाना होगा। साथ ही बिना कारण केवल गेहूं-धान के उत्पादन की जगह किसानों को ऐसी फसलों के उत्पादन की तरफ मुड़ना होगा जो उन्हें ज्यादा मूल्य देती हैं। उन्होंने कहा कि उन्हीं किसानों को न्यूनतम समर्थन मूल्य की सुविधा दी जानी चाहिए, जो तय उर्वरकों की सीमित मात्रा और प्राकृतिक तरीकों से खेती करते हैं। इससे किसानों की लंबी अवधि में आय भी बढ़ाई जा सकेगी और पर्यावरण को भी बचाया जा सकेगा।

खाद्यान्न उत्पादन में एक रिकॉर्ड भी

गेहूं के प्रति हेक्टेयर उत्पादन में कमी आने के बाद भी कुल उत्पादन के मामले में देश ने एक रिकॉर्ड भी बनाया है। कृषि मंत्रालय के अनुसार इस वर्ष देश में कुल खाद्यान्न उत्पादन 303 मिलियन टन हुआ है जो एक रिकॉर्ड है। इसमें गेहूं का हिस्सा 109.24 मिलियन टन और धान का हिस्सा 120.32 मिलियन टन रहा है। केंद्र सरकार ने बताया है कि गेहूं और धान दोनों ही फसलों के उत्पादन के मामले में यह एक नया रिकॉर्ड है।

 

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स्रोत: Amar Ujala