आम की 55 किस्मों के संग्रह ने अगलेचा बंधुओं को बनाया ख़ास

July 09 2021

रसीले आमों को देखकर प्रायः सभी का मन खाने का हो जाता है, ऐसे में देश -विदेश की विशिष्ट आमों की 55 किस्मों के फलदार पेड़ों को राजपुरा की अमराई में देखना किसी अचरज से कम नहीं है। 35 बीघा में यह संग्रह तैयार किया है, धार जिले के अमझेरा के पास स्थित गांव राजपुरा के दो भाइयों श्री रामेश्वर अगलेचा और श्री जगदीश अगलेचा ने। इन आमों ने अगलेचा बंधुओं को ख़ास बना दिया है। एक ख़ास बात यह भी है कि इनके सारे आम बगीचे से ही बिक जाते हैं।

कृषक जगत ने इन दोनों भाइयों से चर्चा की। बड़े भाई श्री रामेश्वर अगलेचा ने कहा कि दोनों भाइयों की (17+18) कुल 35 बीघा जमीन है, जिस पर पृथक-पृथक आम की खेती करते हैं। दोनों में आपस में खूब प्रेम है और आपसी प्रतिस्पर्धा भी नहीं है। वहीं  पूर्व दूर संचारकर्मी छोटे भाई श्री जगदीश अगलेचा ने विस्तार से बताया कि बचपन से ही प्रकृति से प्रेम रहा। पिताजी ने भी बरसों पहले अमरुद के पेड़ लगाए गए थे। तभी से फलदार पेड़ लगाने की इच्छा हुई। दोनों भाई मुख्यतः आम की खेती करते हैं। हमारे यहां आम के दो हज़ार पेड़ हैं। आम की विभिन्न 55 किस्मों को देश के विभिन्न राज्यों बिहार, उत्तर प्रदेश, गुजरात, हिमाचल प्रदेश, कर्नाटक,आंध्र प्रदेश, पश्चिम बंगाल आदि से एकत्रित कर 15 साल पहले लगाया गया था।

ये हैं 55 किस्में- विदेशी किस्मों में अफगानिस्तान का अमरापुरी,फ्लोरिडा का सेंसेशन और नेपाल का विराट भी है। इसके अलावा देसी आमों में पश्चिम बंगाल का हिमसागर और माल्दा, हिमाचल प्रदेश का चौसा, कर्नाटक का मल्लिका, आंध्र प्रदेश का तोतापरी, गुजरात का केसर, काला पहाड़ (पचमढ़ी मध्य प्रदेश) उत्तरा प्रदेश का लंगड़ा, दशहरी, गुलाब केसर, सफेदा मलीहाबादी, लखनवा, काला हाफुस, गोला हाफुस,रत्ना, आम्रपाली, कोकिला के अलावा गुलाब खस, राम केला, बॉम्बे ग्रीन, नीलम, सदाबहार, बादाम, सिनु, चारोली,मद्रास हाफुस, सिंधु सुम्भागी, जरदालु,मीठा गोला, गौरजित शुकुल, मलगोवा, सबजा, हल्दी घाटी, पायरी, पराग, देसी सफेदा, खट्टा गोला (मुरब्बा) देसी अचार, देसी चूसने वाला शामिल हैं। इसमें अफगानिस्तान का अमरापुरी आम विशेष है। 10 वर्ष पूर्व इसके 12 पौधे लगाए गए थे, जो अब फल देने लगे हैं। एक फ़ीट लम्बे इस आम का वजन ढाई किलो होता है। बेहद मीठे अमरापुरी के एक आम की कीमत 2100 रुपए है।

श्री जगदीश ने बताया कि हम पूर्णतः नैसर्गिक तरीके से जैविक खेती करते हैं। न तो कीटनाशकों का प्रयोग करते हैं और ना ही खेत में आग लगाते हैं। इसकी प्रेरणा हमारे गुरु पूज्य श्री जगतपाल जी साहेब, जलगांव (महाराष्ट्र) से मिली है। गुरु आज्ञा का पूर्णतः पालन किया जाता है। आम की फसल हर साल आती है। आम की किस्में विशिष्ट होने से सारे आम बगीचे से ही बिक जाते हैं। इससे परिवहन खर्च, मंडी में बिचौलियों का कमीशन और अन्य खर्च बच जाते हैं। श्री जगदीश इस आम्रकुंज में अब तक एक करोड़ का निवेश कर चुके हैं, जिसका अच्छा रिटर्न 3-4 साल बाद आना शुरू होगा। इस साल लॉक डाउन के कारण आम के दाम गिर गए। परम्परागत खेती में घर के उपयोग के लिए मक्का, गेहूं, चना आदि फसल लेते हैं। उन्होंने बताया कि गत दिनों धार कलेक्टर श्री आलोक कुमार सिंह ने भी उनके बगीचे का निरीक्षण किया था और आम की अमरापुरी किस्म को देखकर प्रशंसा के साथ आश्चर्य भी जताया था।

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स्रोत: Krishak Jagat