त्रिपुरा सरकार द्वारा रेशम कीट उत्पादकों के लिए एक अहम फैसला लिया गया है। दरअसल, राज्य सरकार रेशम कीट उत्पादकों को समर्थन के लिए शहतूत की पौधशालाएं खोल रही है। बताया जा रहा है कि कोरोना महामारी के दौरान जिन लोगों ने आजीविका गंवा दी है। इसके अलावा किसानों के समर्थन के लिए ये नर्सरियां स्थापित की जा रही हैं। खास बात यह है कि इन नर्सरियों को लगाने के लिए किसानों को मजदूरी पर रखा गया है।
शहतूत के छोटे पौधों का वितरण
किसानों के लिए शहतूत के छोटे पौधों का वितरण किया जाएगा। इस तरह की पौधशाएं विभाग द्वारा राज्यभर में स्थापित की जा रही हैं। बता दें कि सिपहिजाला में 4 संकुलों - विश्रामगंज, ताकडजाला, कथालिया और नलचार में पौधशालाएं खोली जा रही हैं।
क्या है कच्चा रेशम
कच्चा रेशम एक धागा होता है, जो कि विशेष कीटों द्वारा काते गए कोकुनों से प्राप्त होता है। रेशम के कीटों का पालन कच्चा रेशम बनाने के लिए किया जाता है। इसे सेरीकल्चर या रेशम कीट पालन कहा जाता है। अगर रेशम उत्पादक को बड़ी मात्रा में रेशम उत्पादन करना है, तो उन्हें जीवों का पालन करना होता है। यह अब एक उद्योग का रूप ले चुका है।
रेशम का उपयोग
यह प्राकृतिक प्रोटीन से बना एक तरह का रेशा होता है, जिसकी मदद से कुछ विशेष प्रकार के कपड़े बनाए जाते हैं। बता दें कि प्रोटीन वाले रेशों में मुख्य रूप से फिब्रोइन होता है। इसके साथ ही रेशे कीड़ों के लार्वा द्वारा बनते हैं। अगर सबसे बेहतरीन रेशम की बात करें, तो यह रेशम शहतूत है। यह अर्जुन के पत्तों पर पलने वाले कीड़ों के लार्वा द्वारा बनाया जाता है।
जानकारी के लिए बता दें कि भारत रेशम उत्पादन के मामले में चीन के बाद दूसरे स्थान पर आता है। इसके साथ ही भारत को विश्व में रेशम का सबसे बड़ा उपभोक्ता भी माना जाता है। बता दें कि यहां प्रमुखता शहतूत रेशम का उत्पादन किया जाता है। ये कर्नाटक, आंध्रप्रदेश, तमिलनाडु, जम्मू व कश्मीर तथा पश्चिम बंगाल में होता है। इसके अलावा गैर-शहतूत रेशम का उत्पादन उत्तर प्रदेश, झारखंड, छत्तीसगढ़, उड़ीसा और पूर्वोत्तर के राज्यों में किया जाता है।
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स्रोत: Krishi Jagran