किसानों की किस्मत बदलने को तैयार राजगिरा-वन

April 26 2019

इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय ने शाही अनाज यानी राजगिरा की उन्न्त वैरायटी तैयार कर पहली बार मैदानी इलाके में इसकी फसल ली है। प्रयोग सफल रहा है। देशभर में रामदाना अथवा व्रत में प्रमुख रूप से उपयोग होने वाली फसल के रूप में भी इसकी पहचान है। विश्वविद्यालय ने इसके बीज को प्रमाणन के लिए केंद्रीय बीज उपसमिति को भेजा है। वहां से हरी झंडी मिलते ही छत्तीसगढ़ के किसान धान की फसल कटने के बाद व बारिश के पूर्व इसकी फसल लेकर अच्छी खासी आमदनी कर सकेंगे।

इसमें गेहूं, चावल व अन्य अनाज की अपेक्षा प्रोटीन, कैल्शियम, वसा व आयरन की मात्रा अधिक होने के कारण बाजार में इसकी कीमत भी काफी है। राजगिरा की फसल वर्तमान में छत्तीसगढ़ के पहाड़ी व ठंडे क्षेत्र अंबिकापुर व सरगुजा में ही ली जाती है। यह यहां की परंपरागत खेती है।

इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों ने इसकी उन्न्त वैरायटी तैयार कर विश्वविद्यालय परिसर में करीब आधे एकड़ में बतौर प्रयोग फसल ली है। विश्वविद्यालय के अनुवांशिकी एवं पादप प्रजनन विभागाध्यक्ष डॉ. एके सरावगी ने बताया कि इसे छत्तीसगढ़ राजगिरा वन" नाम दिया गया है।

राज्य बीज उपसमिति से अनुमोदन के बाद यह फसल ली है। केंद्रीय बीज उपसमिति को अनुमोदन के लिए भेजा गया है। वहां से हरी झंडी मिलते ही छत्तीसगढ़ के एकफसली किसानों के लिए यह किसी सौगात से कम नहीं होगी।

पोषक तत्वों से भरपूर 

विश्वविद्यालय के अनुवांशिकी एवं पादप प्रजनन के प्रमुख वैज्ञानिक डॉ. आरके यादव ने बताया कि राजगिरा में दूध के मुकाबले दोगुना कैल्शियम होता है। यही वजह है कि सदियों से इसका उपयोग उपवास मेंे होता रहा है। राजगिरा के पत्तों (चौलाई भाजी) में ऑक्जैलिक अम्ल व नाइट्रेट की मात्रा कम होती है, जिससे यह सुपाच्य व ताकतवर होती है। इसे सब्जी बनाकर खाया जा सकता है। मवेशियों के लिए यह दुग्धवर्द्धक चारा का काम भी करेगा।

धान के बाद ले सकते हैं फसल 

धान की कटाई के बाद किसान फसल ले सकते हैं। यह 110 से 120 दिन में पककर तैयार हो जाती है। पकने पर फसल पीली पड़ जाती है। समय पर कटाई नहीं करने पर दानों के झड़ने का खतरा रहता है। फसल को सुखाते समय ध्यान रखना होता है कि दानों के साथ मिट्टी न मिले। डॉ. सरावगी के अनुसार इसकी उपज 18 से 20 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक होगी।

किसानों की आय में होगी बढ़ोतरी 

डॉ. यादव ने बताया कि ऐसे किसान जो केवल धान की फसल लेते हैं, उनके लिए यह किसी सौगात से कम नहीं होगी। राजगिरा का आटा 50 रुपये प्रतिकिलो तक बिकता है। लड्डू दो सौ से लेकर ढाई सौ रुपये किलो तक बिकता है। यानी इसकी फसल लेने से किसानों की आमदनी बढ़ जाएगी।

कई प्रकार से होता है उपयोग 

राजगिरा के दानों का लड्डू बनाया जाता है। व्रतधारियों में इसकी खूब मांग रहती है। इसके आटे को गेहूं के आटे में मिलाकर बनाई रोटी संपूर्ण भोजन होती है। हलवा भी बनाया जाता है। रामदाना को भिगोकर कई प्रकार के खाद्य पदार्थ बनाए जाते हैं।

- छत्तीसगढ़ राजगिरा वन के बीज को अनुमोदन के लिए केंद्रीय बीज उपसमिति को भेजा गया है। इसकी स्वीकृति राज्य के लिए बड़ी उपलब्धि होगी। इससे किसानों की तरक्की का रास्ता खुलेगा। - डॉ. एके सरावगी, विभागाध्यक्ष, अनुवांशिकी एवं पादप प्रजनन विभाग, इंदिरा गांधी कृषि विवि

 

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स्रोत: नई दुनिया