इंदौर संभाग की आधा दर्जन कृषि उपज मंडियों में वेतन के लाले

February 17 2021

प्रदेश की कई मंडियों में न किसानों की उपज आ रही है, न ही खरीदार। यह प्रदेश में मंडी टैक्स कम करने या व्यापारियों को मंडी प्रांगण के बाहर भी कृषि उपज खरीदने की छूट का असर रहा कि कुछ मंडियां कंगाली की कगार पर पहुंच गई हैं। लिहाजा प्रदेश सहित इंदौर संभाग की कई कृषि उपज मंडियों में कर्मचारियों को वेतन के लाले पड़ रहे हैं। इंदौर संभाग की बड़वानी, झाबुआ, आलीराजपुर, सेगांव, पेटलावद, बलवाड़ी, कसरावद ऐसी ही कुछ मंडियां हैं।

 

इन मंडियों में कर्मचारियों को महीनों से वेतन नहीं मिल पाया है। किसी मंडी में दो महीने से, किसी में तीन तो किसी में चार महीने से यह आलम है। हालात यह हैं कि बड़वानी, सेगांव और आलीराजपुर मंडियों ने तो अपने कर्मचारियों को वेतन बांटने के लिए मध्यप्रदेश मंडी बोर्ड से कर्ज मांगा है। इन मंडियों ने कर्ज के प्रस्ताव बोर्ड को भेजे हैं। राज्य शासन ने व्यापारियों के लगातार दबाव के बाद मंडी टैक्स 1.50 रुपये प्रति क्विंटल से घटाकर 50 पैसे किया था। यह कुछ महीने ही रहा और अब इसे वापस 1.50 रुपये कर दिया गया है, लेकिन इस झटके को कई छोटी मंडियां सहन नहीं कर पाईं। बी और सी श्रेणी की कुछ मंडियां तो खत्म होने की कगार पर पहुंच गई हैं।

कहीं 70 तो कहीं 80 प्रतिशत की गिरावट

इंदौर संभाग में कुल 34 कृषि उपज मंडियां हैं। इनमें 90 फीसद मंडियां पिछले साल की तुलना में घाटे में हैं। किसी मंडी में 70 तो किसी में 80 फीसद तक कम टैक्स मिला है। मंडी बोर्ड के आंकड़े बताते हैं कि पिछले साल के मुकाबले अब तक गंधवानी और थांदला में 79, जोबट में 68, कसरावद में 63, सेंधवा में 65 फीसद टैक्स का घाटा है। इंदौर मंडी में 41 फीसद, महू मंडी में 42 फीसद, बड़वानी मंडी में 61 फीसद, खेतिया मंडी में 60 फीसद की गिरावट है। खंडवा में 52 तो पंधाना मंडी में 50 प्रतिशत, धार जिले की धामनोद और कुक्षी मंडियों में भी क्रमश: 43 और 57 प्रतिशत की गिरावट है।

पूरे संभाग में पिछले साल 34 मंडियों से 181 करोड़ रूपये का टैक्स सरकार को मिला था, लेकिन इस बार अब तक केवल 110 करोड़ रूपये टैक्स ही मिल पाया है। केवल जनवरी महीने की बात करें तो पिछले साल इस एक महीने में ही 24.84 करोड़ का टैक्स मिला था, लेकिन इस साल सिर्फ 8.70 करोड़ रूपये मिले हैं।

संभाग की कुछ कृषि उपज मंडियों में कर्मचारियों के वेतन का संकट है। मंडी समितियों को अपनी आय में से ही कर्मचारियों को वेतन देना है। जिन मंडियों में अधिक समस्या है, उन्होंने वेतन के लिए मंडी बोर्ड से अनुदान मांगा है।

 

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स्रोत: Nai Dunia