सतावर की खेती ने बढ़ाई किसानों की कमाई, देश-विदेश में है भारी मांग

July 05 2022

उत्तर प्रदेश के हरदोई जिले में काफी किसानों ने भारतीय आयुर्वेद चिकित्सा पद्धतियों में इस्तेमाल होने वाली सतावर की खेती (Shatavari farming) शुरू कर दी है. इसकी खेती किसानों की आर्थिक सेहत सुधारने का काम कर रही है. सतावर औषधीय पौधा है, जो मानव शरीर के कई विकारों को जड़ से खत्म करने के लिए जाना जाता है. इन दिनों में लोगों की हड्डियों और मांशपेशियों में दर्द होना आम बात हो गई है. जिसके समाधान के लिए इसका इस्तेमाल होता है. इसका इस्तेमाल इंसान के साथ-साथ पशुओं में भी किया जाता है. फिलहाल, इसकी खेती से किसान अपनी आय बढ़ाने की कोशिश में जुटे हुए हैं. सतावर की खेती करने से एक किसान की आमदनी (Farmer Income) दस गुना तक बढ़ गई है.
जिला उद्यान अधिकारी सुरेश कुमार ने बताया कि सतावर की लता 30 से 35 फुट तक पहुंच जाती है. ग्रीष्म ऋतु से वर्षा ऋतु आने तक इसकी शाखाएं बड़ी तेजी से आगे बढ़ती हैं. इसमें पुष्पगुच्छ आने लगते हैं. पौधे की जड़ों में मूली जैसे मूल निकलते हैं. इसे सफेद मूसली कहा जाता है. आयुर्वेद की डॉक्टर आशा रावत ने बताया कि इसका इस्तेमाल दूध बढ़ाने, चर्म रोग के उपचार, शारीरिक दर्द और शक्तिवर्धक के रूप में किया जाता है.
सतावर की खेती से कितनी हो रही कमाई?
हरदोई के किसान पुष्पेंद्र कुमार ने बताया कि पिछले काफी समय से वह सतावर की खेती कर रहे हैं. उन्हें प्रति हेक्टेयर सात से आठ लाख रुपये तक का मुनाफा हो रहा है. जबकि धान और गेहूं जैसी पारंपरिक फसलों में इतनी कमाई नहीं थी. उद्यान विभाग की तरफ से उन्हें सब्सिडी (Subsidy) दी जा रही है. जिला उद्यान अधिकारी सुरेश कुमार ने बताया कि जिले में पांच तहसील क्षेत्रों में सतावर की खेती हो रही है. किसानों को औषधीय पौधों की खेती के लिए समय-समय पर ट्रेनिंग दी जा रही है. इस फसल को आवारा पशु भी नुकसान नहीं पहुंचाते हैं.
किसानों को नहीं खोजना पड़ता बाजार
बागवानी और कृषि अधिकारियों के मुताबिक उत्तर प्रदेश के लखनऊ, शाहजहांपुर, उन्नाव, कन्नौज और हरदोई के किसान इस खेती कर रहे हैं. सतावर की खेती भारत के अलावा बांग्लादेश, नेपाल, ऑस्ट्रेलिया समेत कई देशों में की जा रही है. यह लगभग हर तरीके की मिट्टी में उगने वाली औषधीय फसल है. साथ ही 10 डिग्री से लेकर 50 डिग्री तक के तापमान में यह फसल उग सकती है. करीब 1 बीघा में 40 क्विंटल सूखी सतावर का उत्पादन (Production) मिल जाता है. किसान को इसके लिए बाजार ढूंढना नहीं पड़ता. इसे खरीदने वाले स्वयं किसान के पास चल कर आते हैं.
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स्रोत :TV9