लेमन ग्रास के बड़े एक्सपोर्ट्स की लिस्ट में शामिल हुआ भारत, पढ़ें इसकी खेती के फायदे

May 31 2022

लेमन ग्रास की खेती के क्षेत्र में भारत ने एक नयी उपलब्धि हासिल की है. कल तक जो देश लेमन ग्रास का आयात करता था आज वही भारत लेमन ग्रास के सबसे बड़े आयातकों में से एक हो गया है. भारत की इस उपलब्धि में अरोमा मिशन का काफी योगदान रहा है.
भारत लेमन ग्रास की खेती (Lemon Grass Farming) के क्षेत्र में काफी आगे बढ़ गया है. यही कारण है कि कुछ साल पहले तक जो देश लेमन ग्रास (Lemon Grass) के सबसे बड़े आयातकों में से एक था आज वहीं देश भारत दुनिया के सबसे बड़े निर्यातकों की सूची में शामिल हो गया है. लेमन ग्रास की खेती के क्षेत्र में भारत द्वारा इस उपलब्धि को हासिल करने में अरोमा मिशन (Aroma Mission) परियोजना का बड़ा योगदान रहा है. अरोमा मिशन का रहा है. अररोमा मिशन का नेृतत्व सीएसआईआर-सीमैप (CSIR-CIMAP) लखनऊ द्वारा किया जा रहा है. गौरलतब है कि झारखंड में भी बड़े पैमाने पर किसान लेमन ग्रास की खेती करते हैं. खास कर खूंटी और लातेहार जिले में लेमन ग्रास की खेती के जरिए ग्रामीण महिलाए बेहतर कमाई कर रही है.
सीआईएसआर-सीआईएमएपी के निदेशक डॉ प्रबोध कुमार त्रिवेदी ने अरोमा मिशन को धन्यवाद देते हुए कहा कि भातर में हर साल लगभग 1000 टन लेमनग्रास का उत्पादन होता है. और इसमें से 300-400 टन निर्यात किया जाता है. गौरतलब है कि अरोमा मिशन पीएम मोदी के आत्मनिर्भर भारत के साथ तालमेल बिठाकर काम करता है. वैज्ञानिक और औद्योगिक अनुसंधान परिषद (सीएसआईआर) ने देश के आवश्यक तेल-आधारित सुगंध उद्योग की स्थापना, बढ़ावा देने और स्थिति में महत्वपूर्ण योगदान दिया है. इससे उद्योगों के साथ-साथ, किसानों और अगली पीढ़ी के व्यवसायों को लाभ हुआ, इसके अलावा, समय के साथ लेमनग्रास के निर्यात को भी बढ़ावा मिला.
2028 तक 81 मिलियन डॉलर का होगा लेमनग्रास का बाजार
कोरोना काल के दौरान ही दुनियाभर में लेमनग्रास की मांग तेजी से बढ़ी. इसका इस्तेमाल सेनेटाइजर बनाने के लिए होता है. सीएसआईआर-सीआईएमएपी, लखनऊ के अनुसार, लेमनग्रास का वैश्विक बाजार 2020 में 38.02 मिलियन अमरीकी डालर था, जो 2021 में 41.98 मिलियन अमरीकी डालर से बढ़कर 2028 तक 81.43 मिलियन हो जाने की उम्मीद है.
लेमनग्रास की खेती करना पसंद करते हैं किसान
भारत में लेमनग्रास की खेती को अधिकांश किसान इसलिए पसंद कर रहे हैं क्योंकि यह कम बारिश में भी हो जाता है. इसकी खेती में बहुत अधिक सिंचाई भी आवश्यकता नहीं पड़ती है, साथ ही बहुत अधिक देख-रेख की जरूरत भी नहीं होती है क्योंकि इसे जानवर भी नहीं खाते हैं. इसकी खेती के लिए बहुत अधिक उपजाऊ जमीन की जरूरत भी नहीं पड़ती है. किसान इसकी खेती खाली पड़े जगहों पर कर सकते हैं. विदर्भ, बुंदेलखंड, मराठवाड़ा, केरल, महाराष्ट्र, यूपी, आंध्र प्रदेश, कर्नाटक, ओडिशा, झारखंड और कई उत्तर-पूर्वी राज्यों सहित पश्चिमी घाटों में बड़े पैमाने पर इसकी खेती की जाती है.

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स्रोत : Tv 9