भारत ने पूरी दुनिया के चावल बाजारों में दबदबा कैसे कायम किया है?

June 11 2022

भारत भले ही दुनिया में दूसरा सबसे बड़ा गेहूं पैदा करने वाला देश है लेकिन गेहूं के व्यापार में भारत का उतना दबदबा नहीं है जितना चावल का है। चावल के इंटरनेशनल बाजार में भारत की भूमिका ज्यादा गहरी है। सरकार द्वारा गेहूं के निर्यात पर प्रतिबंध लगाने के बाद चावल के व्यापारियों ने भारत से चावल की खरीद के लिए खरीदारी तेज कर दी है।
 निर्यात पर नहीं लगेगा प्रतिबंध
हालांकि अधिकारियों का कहना है कि दुनिया का सबसे बड़ा चावल निर्यातक देश भारत निर्यात पर अंकुश लगाने की कोई योजना नहीं बना रहा है। इसके पीछे की वजह स्थानीय बाजारों में कीमतों का कम होना और गोदामों में पर्याप्त आपूर्ति का होना है। यह आयात पर निर्भर देशों के लिए, जो पहले से ही बढ़ती खाद्य दिक्कतों से जूझ रहे हैं, उनके लिए राहत की बात है। हालांकि भारत में चावल की खेती का सीजन आने में अभी वक्त है, ऐसे में अच्छी फसल की संभावना में कोई भी बदलाव इस प्रधान अनाज के निर्यात पर अपना रुख बदल सकता है।
 मानसून पर निर्भर है चावल की खेती
भारत में मानसून की बारिश चावल के फसल के पैदावार को निर्धारित करती है। इस साल अगर भरपूर बारिश होती है तो भारत को वैश्विक चावल बाजार में अपनी स्थित मजबूत रखने में मदद मिलेगी। हालांकि हल्की मानसून की बारिश फसल को प्रभावित करेगी और पैदावार में कटौती करेगी। इससे स्टॉक में ठीक-ठाक गिरावट आ सकती है। ऐसे में देश के 1.4 अरब लोगों के लिए पर्याप्त आपूर्ति सुनिश्चित करने के लिए निर्यात प्रतिबंधों को लागू करना होगा।
 भारत दूसरा सबसे बड़ा चावल निर्यातक
भारत का चावल निर्यात 2021 में रिकॉर्ड 21.5 मिलियन टन को छू गया, जो दुनिया के अगले चार सबसे बड़े अनाज निर्यातकों: थाईलैंड, वियतनाम, पाकिस्तान और संयुक्त राज्य अमेरिका के संयुक्त शिपमेंट से भी अधिक है। चीन के बाद दुनिया के सबसे बड़े चावल उपभोक्ता भारत की वैश्विक चावल व्यापार में 40 प्रतिशत से अधिक की बाजार हिस्सेदारी है। उच्च घरेलू स्टॉक और कम स्थानीय कीमतों के कारण भारत ने पिछले दो वर्षों में भारी छूट पर चावल का निर्यात किया है। इससे एशिया और अफ्रीका के कई गरीब देशों में कई लोगों को गेहूं की बढ़ती कीमतों से जूझने में मदद मिली है।
 150 से अधिक देशों चावल देता है भारत
भारत 150 से अधिक देशों को चावल का निर्यात करता है और इसके शिपमेंट में किसी भी तरह की कमी खाद्य मुद्रास्फीति को बढ़ावा दे सकती है। भारत द्वारा निर्यात किया गया अनाज 3 अरब से अधिक लोगों का पेट भरता है। लगभग डेढ़ दशक पहले 2007 में जब भारत ने निर्यात पर प्रतिबंध लगा दिया था तो वैश्विक कीमतें शिखर पर पहुंच गईं थीं। भारत से निर्यात को प्रतिबंधित करने का कोई भी कदम चावल आयात करने वाले लगभग हर देश को प्रभावित करेगा।
 सस्ता चावल बेच रहा भारत
अगर भारत में चावल की कीमतों में वृद्धि होती है तो बाकी प्रतिद्वंदी आपूर्तिकर्ताओं जैसे थाईलैंड और वियतनाम भी चावल की कीमतों में वृद्धि कर देंगे। ये देश पहले ही कम कीमत पर निर्यात हो रही भारतीय चावलों से प्रतिद्वंदिता का सामना कर रहे हैं। ये देश भारत की तुलना में 30 फीसदी अधिक कीमत पर चावल बेच रहे हैं। गौरतलब है कि चीन, नेपाल, बांग्लादेश और फिलीपींस जैसे एशियाई देशों को चावल निर्यात करने के अलावा, भारत टोगो, बेनिन, सेनेगल और कैमरून जैसे देशों को भी इसकी आपूर्ति करता है।
 इस फसल वर्ष रिकॉर्ड चावल उत्पादन
भारत में मानसून महीने में उपजाए गए ग्रीष्मकालीन चावल का हिस्सा कुल उत्पादन का 85 प्रतिशत से अधिक है। यह इस फसल वर्ष में जून 2022 तक रिकॉर्ड 129.66 मिलियन टन हो गया है। जून में जब भारत में मानसून दस्तक देता है, लाखों किसान ग्रीष्मकालीन चावल की बुवाई शुरू करते हैं। मानसून में हुए बारिश का हिस्सा भारत की वार्षिक वर्षा का लगभग 70% है। इतनी मात्रा में हुई बारिश, पानी पर निर्भर चावल के लिए महत्वपूर्ण है।
 मानसून शुरू हुई मगर कम बारिश
भारतीय किसान देश के आधे खेत में सिंचाई के अभाव में पानी भरने के लिए मानसूनी बारिश पर निर्भर हैं। भारत में 2022 में औसत वर्षा होने का अनुमान है। लेकिन 1 जून से जब से चार महीने का मानसून सीजन शुरू हुआ है, बारिश औसत से 41 फीसदी कम हुई है। हालांकि जून के मध्य तक बारिश होने की उम्मीद है जिसके बाद ही चावल की बुवाई को बढ़ावा मिलेगा। भारत में बीते तीन साल में औसत या औसत से अधिक बारिश, नई आधुनिक कृषि पद्धतियों की मदद से चावल के उत्पादन में वृद्धि हुई है।
 न्यूनतम स्तर पर चावल की कीमत
वर्तमान में भारत में चावल का पर्याप्त भंडार है, और स्थानीय कीमतें राज्य द्वारा निर्धारित कीमतों से कम हैं, जिस पर सरकार किसानों से धान चावल खरीदती है। चावल के निर्यात की कीमतें भी पांच साल से अधिक के निचले स्तर के करीब कारोबार कर रही हैं। गेहूं के विपरीत, भारत ने फरवरी में यूक्रेन पर रूस के आक्रमण के बाद चावल के निर्यात में वृद्धि नहीं देखी, क्योंकि ब्लैक सी क्षेत्र चावल का प्रमुख उत्पादक या उपभोक्ता नहीं है।
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स्रोत : One india