बंजर जमीन पर खिलेंगी गेंहू-सरसों जैसी फसलें, ऐसे मिलेगा डबल मुनाफा

December 04 2021

अब बंजर ज़मीन पर फसलों को उगाया जा सकत है। जी हां, कृषि क्षेत्र हमेशा ही अपने नए-नए प्रयोगों से सबको चौंका रहा है। ऐसे में इससे जुड़े लोगों के लिए एक और अच्छी खबर है कि अब फसलें बंजर भूमि में भी फलफूल सकेगी।

बता दें कि चंद्रशेखर आजाद कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय में गेहूं, सरसों और अलसी की नई किस्में तैयार की गई हैं। ये फसल को बीमारियों से बचाते हैं और बंजर भूमि के लिए उपयुक्त होते हैं। साथ ही राज्य के पर्यावरण के लिए पूरी तरह से अनुकूलित होते हैं।

कम समय में मिलेगी अच्छी उपज

विश्वविद्यालय के कुलपति डॉ. डीआर सिंह के नेतृत्व में वैज्ञानिकों ने इन विशेष किस्मों को विकसित करने में सफलता हासिल की है। ये किस्में गेहूं की K-17 11, सरसों की KMRL 15-6 (आजाद गौरव) और अलसी की LCK-1516 (आजाद प्रज्ञा) हैं। इससे किसानों को कम समय और कम लागत में अच्छी उपज मिल सकेगी।

उन्होंने बताया कि राज्य बीज विमोचन समिति, लखनऊ ने इस विशेष प्रकार के बीजों को पूरे राज्य में खेती के लिए मान्यता दी है। इस उपलब्धि पर विश्वविद्यालय के निदेशक अनुसंधान डॉ. एचजी प्रकाश, संयुक्त निदेशक अनुसंधान डॉ. एसके विश्वास और सहायक निदेशक अनुसंधान डॉ. मनोज मिश्रा ने प्रसन्नता व्यक्त की है।

गेहूं की किस्म K-17 11

ये किस्म सूद प्रभावित क्षेत्रों के लिए काफी अनुकूल मानी जाती है। इसे विकसित करने वाले वैज्ञानिक डॉ. सोमबीर सिंह और उनकी टीम ने बताया कि राज्य के प्रभावित क्षेत्रों में इसका उत्पादन 38 से 40 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है। फसल 125 से 129 दिनों में तैयार हो जाती है। इसमें 13 से 14 प्रतिशत प्रोटीन पाया जाता है।

सरसों केएमआरएल 15-6

इसे विकसित करने वाले वैज्ञानिक डॉ. महक सिंह व उनकी टीम ने बताया कि प्रदेश के सभी क्षेत्रों में अत्यधिक विलंब होने की स्थिति में 20 नवंबर से 30 नवंबर तक बुवाई की जा सकती है। यह किस्म 120 से 125 दिनों में पक जाती है। पौधे की ऊंचाई 185 से 195 सेमी है और इसकी उत्पादन क्षमता 22 से 25 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है। इसमें तेल की मात्रा 39 से 40 प्रतिशत के बीच होती है और दाना मोटा होता है।

अलसी की किस्म LCK-1516

इस किस्म को विकसित करने वाली वैज्ञानिक डॉ. नलिनी तिवारी और उनकी टीम ने बताया कि इसे राज्य के सिंचित क्षेत्रों के लिए विकसित किया गया है। इसकी उपज 20 से 28 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है। यह किस्म 128 दिनों में पक जाती है। साथ ही तेल की मात्रा 35 प्रतिशत है, जो अन्य प्रजातियों की तुलना में 11.22 प्रतिशत अधिक है।

हर किसी को मुनाफे की चाह होती है। इसके चलते दिन-ब-दिन कृषि क्षेत्र में कई ऐसे विकास किये जा रहे हैं, जिससे किसानों को नुकसान ना झेलना पड़े और जितनी वो मेहनत करते है वो मुनाफे के साथ वसूल हो हो जाये। इसके साथ ही किसानों को मदद करने के लिए सरकार भी तरह-तरह की योजना लाती रहती है।

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स्रोत: Krishi Jagran