देश में बढ़ रहा है पशुधन तो चारे में हो रही है कमी, मांग और आपूर्ति के बीच इस अंतर को लेकर चिंतित वैज्ञानिक

August 27 2022

देश में इस बार समय से पहले गर्मी पड़नी शुरू हो गई थी. इस वजह से गेहूं की फसल प्रभावित हुई थी. नतीजतन गेहूं के उत्पादन में गिरावट दर्ज की थी. इसका असर मौजूदा समय में देश की अर्थव्यवस्था पर दिखाई दे रहा है. वहीं गेहूं की फसल खराब होने से देश में चारा संकट भी गहरा गया था. नतीजतन चारे के दाम नई ऊचांईयों पर पहुंच गए थे. बेशक गेहूं की फसल खराब होने की वजह से अस्थाई स्तर पर चारा संकट गहराया हुआ है. लेकिन, भविष्य के हालतों में देश के अंदर स्थाई चारा संकट गहरा सकता है. असल में देश के अंदर पशुधन में बढ़ोतरी हो रही है. लेकिन, दूसरी तरफ चारे के उत्पादन में कमी हो रही है. मांग और आपूर्ति के बीच इस अंतर को लेकर वैज्ञानिक चिंतित हैं.
11 फीसदी हरे तो 23 फीसदी सूखे चारे की कमी

चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय के चारा अनुभाग और भारतीय चरागाह एवं चारा अनुसंधान संस्थान, झांसी ने मिलकर शुक्रवार को हरियाणा राज्य में चारा उत्पादन बढ़ाने हेतु चारा संसाधन विकास योजना के तहत एक कार्यशाला का आयोजन किया गया. इस कार्यशाला में विवि के कुलपति प्रो. बीआर काम्बोज ने बतौर मुख्य अतिथि शिरकत की. इस दौरान उन्होंने किपशुओं की उत्पादकता को बढ़ाने के लिए गुणवत्ताशील चारे की उपलब्धता सुनिश्चित करना बहुत आवश्यक है.उन्होंने एक अनुमान का हवाला देते हुए कहा कि वर्तमान समय में देश में करीब 11 प्रतिशत हरे चारे और करीब 23 प्रतिशत सूखे चारे के साथ-साथ लगभग 29 प्रतिशत दाने की कमी है.
उन्होंने कहा कि पशुधन की जनसंख्या में 1.23 प्रतिशत की दर से हो रही वृद्धि के चलते मांग और आपूर्ति के बीच यह अंतर आने वाले समय में और बढ़ सकता है, जिसके लिए जरूरी कदम उठाना बहुत आवश्यक है. इस कार्यशाला में हकृवि, लुवास व एनडीआरआई, करनाल के वैज्ञानिकों, कृषि एवं किसान कल्याण विभाग के अधिकारियों, पशुचिकित्सा विभाग के पशु चिकित्सकों व रिजनल फोडर स्टेशन के अधिकारियों सहित कुल 140 प्रतिभागियों ने भाग लिया.
दुग्ध उत्पादन में आ सकती है कमी
चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो बीआर कांबोज ने कार्यशाला में अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा कि ग्रामीण क्षेत्र की अर्थव्यवस्था खेती के साथ-साथ पशुपालन पर निर्भर करती है. गुणवत्तापूर्ण हरा चारा ना मिलने के कारण पशुओं की दुग्ध उत्पादन क्षमता में कमी आ जाती है. इसके लिए पशुपालकों को चारा फसलों की उन्नत प्रौद्योगिकियों के बारे में समय-समय पर जागरूक करने व उनको उच्च गुणवत्ता वाली चारा फसलों के बीज की उपलब्धता भी सुनिश्चित करनी जरूरी है.
उन्होंने धान व गेंहू के बचे फसल अवशेषों को चारे के रूप में पशुओं को खिलाए जाने हेतु जरूरी उपचार की तकनीक को किसानों के बीच प्रचारित करने पर बल दिया और कहा कि इससे फसल अवशेषों को जलाने की समस्या से भी निपटा जा सकेगा.
विवि ने विकसित की है चारे की 51 किस्म
कार्यशाला में विवि केअनुसंधान निदेशक डॉ. जीत राम शर्मा ने बताया कि विश्वविद्यालय के चारा अनुभाग ने चारे वाली फसलों की उन्नत किस्मों के विकास में बहुत उम्दा कार्य किया है. इस अनुभाग ने अब तक चारा फसलों की 51 किस्में विकसित की हैं. चारा अनुभाग द्वारा विकसित किस्मों में ज्वार, लोबिया, जई, बरसीम व रिजका की किस्में मुख्य तौर पर अधिक हरा चारा देने वाली हैं. साथ ही नई किस्में ज्यादा प्रोटीन मात्रा व पाचनशीलता युक्त हैं, जो पशुओं के लिए ज्यादा लाभदायक हैं.
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स्रोत:tv 9