चने की फसल में खरपतवार प्रबंधन

December 14 2021

हमारे देश में दलहनी फसलों का विशेष महत्व है तथा सामान्यतया भारतीय खाने का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। भारत में दलहनी फसलों की खेती लगभग 283.4 लाख हे. भाग में की जाती है। दालों का क्षेत्रफल राज्यवार तालिका में दर्शाया गया है।

चने की फसल अपनी प्रारंभिक अवस्था में बहुत ही धीरे-धीरे वृद्धि करती है। इसके अलावा कतारों के बीच की भी जगह ज्यादा होने से खाली जगह पौधो की छाया कम होती है, जिससे खरपतवार इन फसलों से तीव्र प्रतिस्पर्धा करके भूमि में निहित पानी एवं पौषक तत्वों के अधिकांश भाग का शोषण करती है, फलस्वरूप फसल की विकास गति इतनी धीमी और संकुचित हो जाती है कि अंत में पैदावार कम हो जाती है।

कम ऊंचाई और जल्दी पकने वाली किस्सों में खरपतवार की समस्या और ज्यादा हो गयी हैं। खरपतवारों की रोकथाम से न केवल चने की पैदावार बढ़ाई जा सकती है बल्कि उसमे निहित प्रोटीन की मात्रा में भी वृद्धि की जा सकती है।

चने की फसल में कई तरह के खरपतवार होते हंै जिनमे हिरनखुरी, गाजरी, प्याजी, जंगली जई, मोथा, बथुआ, सेंजी, जंगली गाजर आदि प्रमुख हैं।

चने की फसल में विभिन्न खरपतवारों के कारण पैदावार में 40 से 50 प्रतिशत तक कमी आती है। पैदावार में कमी के साथ फसलों की गुणवत्ता पर भी बुरा प्रभाव पड़ता है।

चने की फसल में खरपतवारनाशी रसायनों का प्रयोग करके भी खरपतवारों को नियंत्रित किया जा सकता है इस विधि को अपनाने से श्रम शक्ति भी कम लगती है तथा मुख्य फसल को भी हानि नहीं पहुँचती है।

इस खबर को अपनी खेती के स्टाफ द्वारा सम्पादित नहीं किया गया है एवं यह खबर अलग-अलग फीड में से प्रकाशित की गयी है।

स्रोत: Krishak Jagat