गेहूं की इस किस्म की खेती कर किसान प्राप्त कर सकते हैं बम्पर उत्पादन

October 11 2021

खरीफ फसलों की कटाई के साथ ही किसान रबी फसलों की तैयारी शुरू कर देते हैं। गेहूं की फसल रबी की प्रमुख फसलों में से एक है, इसलिए इसकी खेती करने वक़्त किसान कुछ बातों का ख़ास ध्यान रखते हैं। जिससे उसकी उपज और उत्पादन दोनों ही अच्छी होती है।

भारत ने पिछले चार दशकों में गेहूं उत्पादन में उपलब्धि हासिल की है। जहां गेहूं का उत्पादन साल 1964-65 में सिर्फ 12.26 मिलियन टन था, वो आज बढ़कर 100 मिलियन टन से ज्यादा होकर एक ऐतिहासिक उत्पादन शिखर पर पहुंच गया है।

भारत की बढ़ती जनसँख्या को देखते हुए फ़ूड सिक्योरिटी का होना अतयंत आवश्यक है। ऐसे में बढ़ती मांग और खपत को देखते हुए भारत साकार ने सभी अनुसंधान केंद्र से नई किस्मों को विकसित करने हेतु लगातार संपर्क में रहती आई है।

एक अनुमान के मुताबिक वर्ष 2025 तक भारत की आबादी लगभग 1.4 बिलियन होगी और इसके लिए वर्ष 2025 तक गेहूं की अनुमानित मांग लगभग 117 मिलियन टन होगी। इस लक्ष्य को हासिल करने के लिए कई नई तकनीक के साथ-साथ नई किस्में भी विकसित की जा रही है।

नई किस्मों का विकास तथा उनका उच्च उर्वरता की दशा में परीक्षण से अधिकतम उत्पादन क्षमता प्राप्त की जा सकती है। भूगोलीय स्तर पर भारत चार भागों में बटा हुआ है। इस परिस्थति में हर क्षेत्र के अनुकूल किस्मों को तैयार किया जाता है। साथ ही यह भी ध्यान रखा जाता है कि किस्मों की उपज के समय किसी तरह की कोई परेशानी ना आ सके। गेहूं की इस ऐसी ही उम्दा किस्म फिर से हमारे बीच है।

एमपी (जेडब्ल्यू) 1358

जेएनकेवीवी- जोनल कृषि अनुसंधान स्टेशन,पोवारखेड़ा, होशंगाबाद-1358 (म.प्र.) द्वारा विकसित किस्म एमपी (जेडब्ल्यू) 1358 किसानों के बीच काफी प्रचलित है। इसके बुवाई का सही समय अक्टूबर 25 से लेकर 5 नवंबर तक का होता है। आपको बता दें बढ़ती खपत और खाद्य सुरक्षा को मद्देनजर सरकार फसलों की अधीन उत्पादन और उच्च श्रेणी के लिए लगातार सभी संस्थाओं पर जोड़ दाल रही है। ऐसे में विकसित किया गया ये किस्म काफी सराहनीय है।

किस्म की उपज

वहीं इसकी उपज प्रति हेक्टेयर 30.9 क्विंटल है। फसल की उपज को देखकर किसानों के बीच इस किस्म को लेकर उत्साह और भी अधिक बढ़ गयी है। फसलों के उपज पर ही किसानों की आय निर्भर होती है।

फसल की सिंचाई कब और कितनी बार करें

इसकी सिंचाई पानी के उपलब्धता पर निर्भर करता है। पानी की उपलब्धता के आधार पर एक या दो सिंचाई करें। यदि एक सिंचाई उपलब्ध हो तो 40-45 दिन पर खेत की सिंचाई करें और यदि अतिरिक्त सिंचाई उपलब्ध हो, तो शीर्ष (60-65 दिन) पर दूसरी बार सिंचाई करें। इतना फसल के लिए उपयुक्त है।

इन बातों का रखें ध्यान

इस किस्म की बुवाई करते वक़्त कुछ ख़ास बातों का विशेष ध्यान रखना होगा जैसे- प्रतिबंधित सिंचित, समय पर बुवाई और प्रायद्वीपीय क्षेत्र (महाराष्ट्र, कर्नाटक, गोवा के मैदान और तमिलनाडु की पलनी पहाड़ियाँ)

किस्म की विशेषताएं

इस किस्म में जिंक की मात्रा 36.3ppm, आयरन 40.6ppm और प्रोटीन 12.1% के साथ बायोफोर्टिफाइड भी मौजूद होता है। जो किसी भी मनुष्य के शरीर के लिए बेहद लाभदायक है वहीं इस पौधे की ऊंचाई 83 cm तक होती है.

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स्रोत: Krishi Jagran