गेहूं अनुसन्धान केंद्र इंदौर द्वारा विकसित गेहूं की दो नई किस्में पूसा प्रभात और पूसा वकुला जारी

October 06 2021

भारतीय कृषि अनुसन्धान परिषद, नई दिल्ली द्वारा गेहूं अनुसन्धान केंद्र इंदौर द्वारा विकसित की गई गेहूं की दो नई प्रजातियों एचआई- 8823 (पूसा प्रभात) और एचआई -1636 (पूसा वकुला) को हाल ही में जारी किया गया है। दोनों किस्मों की अपनी-अपनी विशेषताएं हैं। यह दोनों किस्में अगले वर्ष किसानों को उपलब्ध होगी।

गेहूं की इन दो नई प्रजातियों के बारे में भाकृअप -गेहूं अनुसन्धान केंद्र इंदौर के वैज्ञानिक श्री एके सिंह ने कृषक जगत को बताया कि एचआई -8823 (पूसा प्रभात) मालवी गेहूं की अल्प सिंचित सिंचाई की नई प्रजाति है। अपने बौने कद की वजह से यह प्रजाति दो से तीन सिंचाई में पक जाती है। सर्दियों में मावठा पड़ने पर यह अतिरिक्त पानी का फायदा उठा लेती है और ज़मीन पर गिरने से बच जाती है। जल्दी बुवाई के लिए यह किस्म उपयुक्त है। इसमें पोषक तत्वों ज़िंक, आइरन, कॉपर, विटामिन ए और प्रोटीन की मात्रा पर्याप्त होने से यह पोषण की दृष्टि से महत्वपूर्ण है। यह किस्म सूखा और गर्मी के प्रति सहनशील है। पहले वाली गेहूं की प्रजातियों में सहन शक्ति कम होने से निर्धारित अवधि से पहले पक जाती थी, जिसके कारण बालियां छोटी रहने कारण उत्पादन आधा रह जाता था। लेकिन इस किस्म में यह शिकायत नहीं है, क्योंकि इसमें ऐसे आनुवंशिक गुण डाले गए हैं। इसकी परिपक्वता अवधि 105 से 138 दिन है। इसे दो सिंचाई के लम्बे अंतराल (सवा महीने) में पकाया जा सकता है। इस किस्म की बीज मात्रा सवा क्विंटल/हेक्टेयर है और यह 40-42 क्विंटल/हेक्टेयर का उत्पादन देती है। यह किस्म कई कीटों और रोगों के लिए प्रतिरोधी है। इसका दाना बड़ा और भूरा-पीला होता है। यह किस्म मप्र, छत्तीसगढ़,गुजरात,राजस्थान के कोटा,उदयपुर संभाग और उप्र के झाँसी संभाग के लिए जारी की गई है।

जबकि दूसरी किस्म एचआई -1636 (पूसा वकुला ) अधिक पानी वाली किस्म है जिसकी सर्दी आने पर ही बुआई करनी चाहिए। इसे जल्दी नहीं बोना चाहिए। इसकी बुआई 7 नवंबर से 25 नवंबर के बीच करनी चाहिए। इस किस्म में 4-5 सिंचाई लगती है। शरबती और चंदौसी की तरह यह चपाती के लिए बढ़िया किस्म है, जो पोषक तत्वों आइरन, कॉपर, ज़िंक, प्रोटीन से भरपूर है। इसे पुरानी प्रजाति लोकवन और सोना का नया विकल्प समझा जा सकता है। यह किस्म 118 दिन में पकती है। जिसकी बीज मात्रा 1 क्विंटल/हेक्टेयर है। छोटे कद की यह प्रजाति भी ज़मीन पर नहीं गिरती है। इसका उत्पादन 60 -65 क्विंटल /हेक्टेयर है। यह सभी चरण के अंकुर की प्रतिरोधी किस्म है, जो तना और पत्ती के 27 तरह के पाईथोटाइप रस्ट और गर्मी के तनाव के प्रति भी सहिष्णु है। इस किस्म की मप्र, छत्तीसगढ़, गुजरात, राजस्थान के कोटा, उदयपुर संभाग और उप्र के झाँसी संभाग के लिए सिफारिश की गई है।

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स्रोत: Krishak Jagat