परिस्थितिया विपरीत होने के बावजूद होल्सटीन फ्रीसिएन गायों से सालाना कमा रहे हैं लाखों रुपए

August 04 2021

क्षेत्र में शुष्क एवं अति शुष्क जलवायु होने के वजह से तापमान बहुत अधिक रहता है। बारिश बहुत कम व  अनिश्चित एवं भूमिगत जल का अभाव होने के कारण जानवरों के लिए हरे चारे की पूर्ति नहीं हो पाती है। ठंडी जलवायु में रहने एवं बेहतर प्रबंधन और उचित देखभाल वाले जानवरों को इस क्षेत्र में पालना बहुत कठिन एवं चुनोतिपूर्ण कार्य है। इन सब के बावजूद आगे बढने का जोश, जूनून एवं प्रबल इस्छाशक्ति ही ऐसे कार्य को सम्भव बना सकती है। हम बात कर रहे है प्रगतिशील पशुपालक प्रेम सिंह निवासी रामदेवरा तहसील पोकरण जिला जैसलमेर की। जिन्होंने सबसे पहले क्षेत्र के वातावरण अनुकूल देशी गायों से डेरी व्यवसाय शुरू किया था। लेकिन इन गायों की दूध क्षमता 5 से 7 लीटर प्रतिदिन होने एवं दूध का बाजार भाव बहुत ही कम 40 रूपये प्रति लिटर के हिसाब से होने की वजह से डेरी पर लागत अधिक आ रही थी । वर्तमान में इस बढ़ी हुई महंगाई को ध्यान में रखते हुये प्रेम सिंह ने देशी गायों के स्थान पर होल्सटीन फ्रीसिएन गायों को पालने का कठोर निर्णय लिया एवं इसमें सफल भी हुये। आज इनके पास लगभग 26 गाये होल्सटीन फ्रीसिएन प्रजाति एवं 6 गाये राठी नस्ल की है। जिनसे 240 लिटर प्रतिदिन दूध का उत्पादन हो रहा है। इन्होने बताया कि होल्सटीन फ्रीसिएन गाय एक दिन में 28 से 30 लिटर तक दूध देती है।

ऐसे होती है नस्ल

होल्सटीन फ्रीसिएन गाय को हम एचऍफ़  नाम से भी जानते हैं, यह सबसे अधिक दूध देने वाली गाय है। बड़ा शरीर, काले व सफ़ेद रंग की त्वचा इसकी प्रमुख पहचान है। इसकी खुराक अच्छी होने के साथ ही दूध भी ज्यादा देती है। एचएफ एक संवेदनशील गाय होती है, इसकी शुद्ध नस्ल अधिक तापमान सहन नहीं कर सकती। व्यावसायिक डेरी फार्मों में इस गाय की सबसे अधिक मांग होने के साथ साथ देश में इसकी मिक्स्ड-ब्रीड बडी संख्या में पाली जाती है।

तापमान प्रबंधन में मददगार है पारम्परिक आवास

प्रेम सिंह ने उन्नत नस्ल होल्सटीन फ्रीसिएन की गाये हरियाणा एवं राज्य के गंगानगर जिले से साठ हजार से अस्सी हजार में खरीदकर लाये थे। इन गायों के आवास हेतु पारम्परिक छान एवं छपर बना रखे है जो गर्मियों में अधिक तापमान सहन करने में काफी मदद करते है। साथ ही इन पर लागत भी बहुत कम आती है। फर्श भी कच्चे रखते है ताकि गायों को बैठने में आराम मिलता है । इस आवास को प्रबंधन करने में कम से कम पानी की आवश्यकता होती है।

इस तरह करते है आहार प्रबंधन

आहार में इन गायों को दलहन चुरा, ग्वार चुरा, कपास की खल एवं जों और बाजरा ऋतू के हिसाब से मिलाकर खिलाते है। सूखे चारे में कम गुणवत्ता वाला मूंगफली एवं गेहू का भूसा डालते है। सालभर ठंडा वातावरण, हरा एवं उच्च गुणवत्ता युक्त सुखा चारा चाहने वाली गाय की इस प्रजाति को भीषण गर्मी में पालकर अच्छा उत्पादन लेना उनकी मेहनत, लगन एवं परिश्रम का परिणाम ही है।

कर रहे अच्छा मुनाफा अर्जित

जहा एक ओर लॉक डाउन के बाद लोगो को रोजगार नहीं मिल रहा है वही दूसरी तरफ प्रेम सिंह आज इस डेरी से 15 लाख रूपये सालाना कमा रहे है। सात ही घर के सभी सदस्यों को रोजगार मिला हुआ है। केंद्र के पशुपालन वैज्ञानिक डॉ राम निवास ढाका ने बताया कि प्रगतिशील पशुपालक पोकरण स्तिथ कृषि विज्ञानं केंद्र द्वारा आयोजित होने वाले सस्थागत, असंस्थागत प्रशिक्षणो एवं अन्य प्रसार गतिविधियों में समय समय पर भाग लेकर आधुनिक डेरी पालन के बारे में जानकारी और कृषि वैज्ञानिको के परामर्श से वैज्ञानिक एवं उन्नत तरीके अपना कर अच्छा मुनाफा अर्जित कर रहे है। अतिरिक्त आय एवं बिना किसी अतिरिक्त लागत के सात में देशी मुर्गीपालन भी कर रहे है जो पशुओ में लगने वाले परजीवियों जैसे जू, चिचड़ इत्यादि का समूल खात्मा करके पशु को उत्तम स्वास्थ्य प्रदान करके दूध उत्पादन बढ़ाने में सहयोग करती है। साथ ही पशुशाला की साफ़ सफाई में भी योगदान देती है। डेरी फार्म को सतत एवं गायों को समय से प्रजनन करवाने के लिए एचएफ नस्ल के सांड को रखकर बछड़ी भी तैयार करते है।

देशी एवं विदेशी गायों के दूध की कीमत बाजार में समान होने की वजह से विदेशी गायों की डेरी ज्यादा फायेदेमंद साबित हो रही है । देशी गाय के दूध की ब्रांडिंग का आज भी ग्रामीण क्षेत्रो में अभाव होने के कारण पशुपालको को पूरा फायदा नहीं मिल पाता है। पशुपालक ने बताया कि गायों का गोबर चार हजार रूपये प्रति ट्रेक्टर ट्रोली अर्थात 15 क्विंटल के हिसाब से बिक रहा है। कोरोना जैसे महामारी एवं होल्सटीन फ्रीसिएन गायों के नस्ल के प्रतिकूल वातावरण रहने के बावजूद इनसे अच्छा मुनाफा लेकर प्रगतिशील पशुपालक क्षेत्र के बहुत सारे युवाओ को व्यसायिक डेरी पालन के प्रति आकर्षित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे है।

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स्रोत: Krishak Jagat