NDRI ने किया भारत की पहली क्लोन देसी गिर मादा बछड़ा गंगा का उत्पादन

April 01 2023

दूध उत्पादन बढ़ाने के लिए सरकार के दबाव के बीच राष्ट्रीय डेयरी अनुसंधान संस्थान (एनडीआरआई) करनाल ने देसी नस्ल गिर की देश की पहली क्लोन मादा बछड़ा का उत्पादन किया है जो अधिक उत्पादन कर सकता है। प्रतिदिन 15 लीटर से अधिक दूध उत्‍पादित करता है। एनडीआरआई ने कहा कि राष्ट्रीय डेयरी अनुसंधान संस्थान करनाल की एक परियोजना के तहत गिर और साहीवाल जैसी स्वदेशी गाय की नस्लों के क्लोनिंग पर काम करने के लिए भारत की पहली क्लोन गिर मादा बछड़ा गंगा का जन्म हुआ।

स्वदेशी मवेशियों की नस्लें दूध उत्पादन में निभाती हैं महत्‍वपूर्ण भूमिका

जिसका वजन 32 किलोग्राम था और यह अच्छी तरह से बढ़ रही है। गिर, साहीवाल, थारपारकर और रेड-सिंधी जैसी स्वदेशी मवेशियों की नस्लें दूध उत्पादन और भारतीय डेयरी उद्योग के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। जीबी पंत कृषि विवि के कुलाधिपति डॉ. मनमोहन सिंह चौहान ने कहा कि हमने गिर नस्ल की गाय से बछड़े का क्लोन बनाया है जो प्रति दिन 15 लीटर दूध दे रही थी। प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी के दूध की पैदावार बढ़ाने के निर्देश के अनुसार हमने क्लोनिंग तकनीक का उपयोग करके उच्च उपज वाली गायों का क्लोन बनाना शुरू कर दिया है।

देसी नस्लों की क्लोनिंग पर काम किया था शुरू

वह एनडीआरआई के प्रमुख थे जब इसने 2021 में एनडीआरआई में गिर, लाल सिंधी और साहीवाल नस्लों जैसी उच्च उपज वाली देसी नस्लों की क्लोनिंग पर काम शुरू किया था। यह कार्यक्रम उत्तराखंड पशुधन विकास बोर्ड (यूएलडीबी) देहरादून के सहयोग से राष्ट्रीय डेयरी अनुसंधान संस्थान (एनडीआरआई) करनाल द्वारा शुरू किया गया था।

एनडीआरआई के प्रमुख डॉ. धीर ऐबघ ने कहा कि गिर के मवेशी बहुत कठोर होते हैं और विभिन्न उष्णकटिबंधीय रोगों के प्रतिरोध और तनाव की स्थितियों के प्रति उनकी सहनशीलता के लिए जाने जाते हैं। उन्होंने कहा कि गिर मवेशी भी बहुत लोकप्रिय हैं और जेबू गायों के विकास के लिए ब्राजील, संयुक्त राज्य अमेरिका, मैक्सिको और वेनेजुएला को निर्यात किए गए हैं।

स्वदेशी विधि विकसित करने के लिए 2 साल से अधिक समय से काम कर रही है टीम क्‍लोन

डॉ नरेश सेलोकर, मनोज कुमार सिंह, अजय असवाल, एसएस लथवाल, सुभाष कुमार, रंजीत वर्मा, कार्तिकेय पटेल और एमएस चौहान सहित वैज्ञानिकों की एक टीम क्लोन मवेशियों के उत्पादन के लिए एक स्वदेशी विधि विकसित करने के लिए 2 साल से अधिक समय से काम कर रही है। गिर को क्लोन करने के लिए अल्ट्रासाउंड-निर्देशित सुइयों का उपयोग करके जीवित जानवरों से ओसाइट्स को अलग किया जाता है, और फिर नियंत्रण स्थितियों में 24 घंटे के लिए परिपक्व किया जाता है।

संभ्रांत गायों की दैहिक कोशिकाओं का उपयोग दाता जीनोम के रूप में किया जाता है। जो ओपीयू-व्युत्पन्न एनुक्लाइड ओसाइट्स के साथ जुड़े होते हैं। रासायनिक सक्रियण और इन-विट्रो कल्चर के बाद विकसित ब्लास्टोसिस्ट को गिर बछड़े को देने के लिए प्राप्तकर्ता माताओं में स्थानांतरित किया जाता है।

इस खबर को अपनी खेती के स्टाफ द्वारा सम्पादित नहीं किया गया है एवं यह खबर अलग-अलग फीड में से प्रकाशित की गयी है।
स्रोत: जागरण