कोरोना और लॉकडाउन की वजह से सभी लोगों का जनजीवन अस्त-व्यस्त हो गया है. इसके असर से कृषि क्षेत्र भी प्रभावित हुआ है. हालांकि, इस स्थिति में केंद्र सरकार कृषि क्षेत्र के लिए लिए कई कृषि वैज्ञानिकों से अध्ययन करा रही है. इस अध्ययन द्वारा पता लगाया गया है कि लॉकडाउन के चलते किसानों ने धान की खेती में कीटनाशकों का बहुत कम उपयोग किया है. अगर प्रति एकड़ खेत की बात करें, तो इसमें लगभग 2 से 3 हजार रुपए की कम लागत लगी है. इसके साथ ही लाख और मखाना की खेती अप्रभावित रही है.
आपको बता दें कि जब किसान किसी फसल की खेती करता है, तो उसको कीट और रोगों से बचाने के लिए कई प्रकार के कीटनाशक स्प्रे करने लगता है. किसान इसके दुष्प्रभाव का बिना अनुमान लगाए महंगे से मंहगे कीटनाशक खरीदकर छिड़क देता है. मगर इस वक्त देशभर में लॉकडाउन की स्थिति बनी है. इस वजह से बाजार भी बंद रहा है. ऐसे में किसानों को फसल में छिड़कने के लिए रसायन खाद और कीटनाशक दवा भी नहीं मिल पा रही है. इसका अच्छा परिणाम देखने को मिला है कि इस सीजन किसान धान समेत अन्य फसलों में कीटनाशक दवा ही नहीं डाल पाया है. इससे किसान को नुकसान कम और फायदा अधिक हुआ है. बता दें कि कीटनाशक दवा का छिड़काव न करके भी फसल एकदम सुरक्षित रही है. इसके साथ ही किसानों का कीटनाशक दवाओं में होने वाला खर्च भी बच गया. वैसे किसान एक फसल में लगभग 3 से 6 बार कीटनाशक दवा का छिड़काव करते हैं, लेकिन इस बार किसान फसल में 2 से 3 बार ही कीटनाशक दवा डाल पाए हैं.
कीटनाशक का उपयोग न करने से लाभ
कृषि वैज्ञानिकों का कहना है कि लॉकडाउन की वजह से किसानों ने कीटनाशक का उपयोग कम किया है. इसके साथ ही उन्हें मजदूर भी नहीं मिल पाए हैं, लेकिन इसके बावजूद किसानों की फसल बेहतर उगी है. इतना ही नहीं, इस बार खेती में किसानों की लागत भी कम से कम लगी है. इसके अलावा किसानों ने कृषि वैज्ञानिकों से संपर्क भी ज्यादा बढ़ाया है. खास बात है कि इस सबका असर लाख और मखाना की खेती पर नहीं पड़ा है. कोरोना औऱ लॉकडाउन जैसी विपरीत परिस्थतियों में भी दोनों फसलों की खेती सफलतापूर्वक हुई है.
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स्रोत: कृषि जागरण