धान की फसल छोड़ने के बदले किसानों ने मांगा 20 हजार रुपये एकड़, सिर्फ 7 हजार देने को राजी है सरकार

May 09 2020

हरियाणा सरकार ने जल संकट (Water Crisis) से निपटने के लिए एक नायाब स्कीम शुरू की है. लेकिन किसानों में इसे लेकर असंतोष है. सरकार ने इस साल 1,00,000 हैक्टेयर में धान न पैदा करने का फैसला किया है. इसके लिए उसने किसानों को प्रति एकड़ 7000 रुपये की प्रोत्साहन राशि देने का प्रस्ताव पास किया है. किसान संगठनों (farmers organizations) का कहना है कि इतनी कम रकम तर्कसंगत नहीं है. इतने पैसे से कोई भी किसान अच्छी खासी धान की फसल क्यों छोड़ेगा. कम से कम 20 हजार रुपये एकड़ तो मिलना ही चाहिए. इसकी आर्थिक वजहें भी हैं. उन वजहों को नहीं समझा गया तो किसान इसके लिए राजी नहीं होगा.

हरियाणा और उसका ‘धान गणित’ 

राष्ट्रीय किसान महासंघ के संस्थापक सदस्य विनोद आनंद इसका गणित बताते हैं. वो कहते हैं कि हरियाणा में प्रति एकड़ औसतन 26 क्विंटल धान पैदा होता है. जबकि इसी राज्य में इसका न्यूनतम समर्थन मूल्य 1835 रुपये प्रति क्विंटल है. मतलब ये है कि एक एकड़ में 47,710 रुपये का धान होता है. फिर भला 7 हजार रुपये एकड़ के प्रोत्साहन पर कोई अपनी धान की खेती क्यों छोड़ेगा. इसके लिए कम से कम आधी रकम तो सरकार मुहैया करवाए.

आनंद कहते हैं कि वाजिब पैसा मिलेगा तो योजना सफल होगी वरना ये कागजों में रह जाएगी. अच्छा पैसा मिलेगा तो बहुत सारे किसान धान की फसल (paddy crop) के बदले दूसरी फसलों पर आ जाएंगे और इसे जल संकट का सामना कर रहे दूसरे राज्य भी कॉपी कर सकते हैं. लेकिन 7 हजार पर तो कौन राजी होगा, वो भी हरियाणा में. सवाल ये भी है कि क्या जल संकट के लिए धान ही जिम्मेदार हैं या उसके और भी कारण हैं? किसान इनकी फसल न उगाएं तो आखिर क्या करे?

उधर, भारतीय किसान यूनियन के प्रदेशाध्यक्ष गुरनाम सिंह ने कहा है कि इस योजना को सरकार सफल करना चाहती है तो वो पहले भाजपा और जन नायक जनता पार्टी (JJP) के कार्यकर्ताओं से इसे लागू करवाए. दूसरी ओर, फतेहाबाद (हरियाणा) के किसान इसके विरोध में उतर गए हैं. किसानों का कहना है कि धान लगाना उनका शौक नहीं बल्कि मजबूरी है. इसकी फसल से उन्हें अच्छी आय होती है जिससे वह अपना कर्जा उतार सकते हैं. अगर धान नहीं लगाएंगे तो वे अपने परिवार का पेट भी नहीं भर सकेंगे.

सरकार की मजबूरी क्या है?

यूनाइटेड नेशंस के खाद्य एवं कृषि संगठन (Food and Agriculture Organization) के मुताबिक भारत में 90 परसेंट पानी का इस्तेमाल कृषि क्षेत्र में होता है. भारत में पानी की ज्यादातर खपत चावल और गन्ने जैसी फसलों में होती है. यह प्रदेश टॉप टेन धान उत्पादकों में शामिल है और जल संकट के लिहाज से करीब आधा हरियाणा डार्क जोन में हैं. कृषि वैज्ञानिकों के मुताबिक एक किलोग्राम चावल पैदा करने में 5000 लीटर तक पानी की जरूरत होती है.

ऐसे में सरकार को लगता है कि किसानों को राजी करने से यह समस्या हल हो सकती है. साथ ही हर साल नवंबर-दिसंबर में पराली जलने की समस्या भी काफी कम हो जाएगी.  बता दें कि नीति आयोग (NITI Aayog) ने भी गन्ना और धान की फसल पर चिंता जाहिर करते हुए पिछले साल कहा था कि इनकी खेती के जरिए पानी की बर्बादी हो रही है.

कितना है भूजल स्तर

मुख्यमंत्री मनोहरलाल खट्टर ने बताया कि प्रदेश का कुछ हिस्सा पानी के लिहाज से डार्क जोन हो चुका है. जिसमें 36 ब्लॉक ऐसे हैं, जहां पिछले 12 वर्षों में भू-जल स्तर (ground water level) में गिरावट दोगनी हुई है. जहां पहले पानी की गहराई 20 मीटर थी, वो आज 40 मीटर हो गई है. जहां पानी की गहराई 40 मीटर से ज्यादा हो गई है ऐसे 19 ब्लॉक हैं. लेकिन इनमें से 11 ब्लॉक ऐसे हैं जिसमें धान की फसल नहीं होती.

जबकि 8 ब्लॉकों रतिया, सीवान, गुहला, पीपली, शाहबाद, बबैन, ईस्माइलाबाद व सिरसा में वाटर लेवल 40 मीटर से ज्यादा है. इनमें धान की बिजाई होती है. इनमें यह स्कीम लागू की गई है. खट्टर के मुताबिक जहां भूमि जल स्तर 35 मीटर से ज्यादा है और जमीन पंचायत के अधीन है उन गांव पंचायतों को पंचायती जमीन पर धान लगाने की अनुमति नहीं होगी. प्रोत्साहन राशि ग्राम पंचायत को दी जाएगी.

क्या है स्कीम

-इस स्कीम का नाम ‘मेरा पानी-मेरी विरासत’ है. यहां यह पहले स्पष्ट कर देना जरूरी है कि यह स्कीम सिर्फ गैर बासमती धान के लिए है. बासमती से कई बड़ी कंपनियों का हित जुड़ा हुआ है इसलिए सरकार ने बासमती पर इसे लागू नहीं किया.

-धान के स्थान पर कम पानी से तैयार होने वाली फसलें जैसे मक्का, अरहर, उड़द, ग्वार, कपास, बाजरा, तिल व ग्रीष्म मूंग की बुआई करने की सलाह दी गई है. सरकार मक्का व दालों की खरीद न्यूनतम समर्थन मूल्य पर करेगी.

धान के कटोरा में भी लगी थी रोक

नवंबर 2019 में रमन सिंह की अगुवाई वाली छत्तीसगढ़ की बीजेपी सरकार ने भी हरियाणा की तरह ग्रीष्मकालीन धान लगाने पर रोक लगा दी थी. धान का कटोरा कहे जाने वाले छत्तीसगढ़ में धान की दो फसल होती है. वहां भी सरकार ने पानी की कमी का हवाला देते इस पर रोक लगाई थी. इसके लिए बाकायदा गांवों में मुनादी करवाई गई थी. बोला गया था कि अगर किसी ने धान की फसल लगाई तो उसकी बिजली काट दी जाएगी. बाद में बीजेपी को इस फैसले का राजनीतिक नुकसान झेलना पड़ा.


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स्रोत: न्यूज़ 18 हिंदी