जामुन खाने के शौकीन हैं, लेकिन इस सोच से पौधा नहीं लगाना चाहते कि पेड़ तैयार होने व फल आने में 15 वर्ष लगेंगे तो इस ख्याल को मन से निकाल दीजिए। क्योंकि कृषि महाविद्यालय एवं अनुसंधान केंद्र कांकेर ने अनुसंधान से जामुन के छह किस्म के जीनोटाइप पौधे तैयार किए हैं, जिनमें मात्र तीन वर्ष में फल आने लगेंगे।
अनुसंधान में बेहतर परिणाम
चयनित पेड़ों का पासपोर्ट डाटा जीपीएस की सहायता से एकत्र किया गया। इसमें पेड़ की ऊंचाई, घेरा, फूल आने का समय, फूलों-फलों की संख्या, फलों के पकने का समय, फलों की लंबाई, चौड़ाई, वजन, गुदा का वजन, गुठली का वजन एवं रासायनिक विश्लेषण के तहत कुल घुलनशील अम्लता, विटामिन सी, शर्करा का अनुसंधान किया गया। डॉ. नाग ने बताया कि 60 जीनोटाइप में से छह के परिणाम बेहतर आए।
अनुमोदन के बाद होगी खेती
महाविद्यालय में इस वर्ष कलीकाकयन एवं उपरोपण उद्यानिकी तकनीक से जामुन के पौधे तैयार किए जा रहे हैं। इसका सभी कृषि अनुसंधान केंद्रों में परीक्षण किया जाएगा। इसके बाद किस्म अनुशंसित समिति के माध्यम से अनुमोदन किया जाएगा। इसके बाद ही किसानों को उपलब्ध कराया जाएगा और खेती हो सकेगी। अनुसंधान कार्य निदेशक अनुसंधान सेवाएं, फल विज्ञान विभाग के विभागाध्यक्ष एवं कृषि महाविद्यालय एवं अनुसंधान केंद्र कांकेर के अधिष्ठाता के मार्गदर्शन में मुख्य अन्वेषक एवं सह-अन्वेषक के माध्यम किया जा रहा है।
गोमा प्रिया किस्म से बेहतर
सेंट्रल इंस्टीट्यूट फार एरीड हॉर्टिकल्चर बीकानेर (राजस्थान) ने 2009 में जामुन की गोमा प्रिया किस्म विकसित की। इसमें फल का वजन 19.86 ग्राम, विलय ठोस 16.80 ग्राम, अम्लता 0.38 फीसद, कुल शुगर 12.01 फीसद और 43.50 किलो फल प्रति वृक्ष पाया गया है।
क्या है जीनोटाइप पौधे
किसी पौधे का जीनोटाइप उस पौधे का अनुवांशिक मेकअप है, यानी भीतरी संरचना है। यह किसी एकल लक्षण या लक्षणों के समूह या लक्षणों के संदर्भ में किसी भी पौधे या पौधों के समूह का अनुवांशिक श्रृंगार/संविधान में बदलाव है। यह सभी जीनों या किसी विशिष्ट जीन से संबंधित हो सकता है।
6 जीनोटाइप में पाए गए गुणधर्म
-फल का वजन 10 से 18 ग्राम
-बीज का वजन 0.6 से 3 ग्राम
-फल गुदा का वजन 9 से 15 ग्राम
-फलों में कलर भूरा से काला
-विलय ठोस 15 से 19
-ब्रीक्स अम्ल 0-1 से 0-22 फीसद
-विटामिन सी 10 से 18 फीसद
-कुल शर्करा 20 से 26 ग्राम
-फल प्रति वृक्ष 50 से 60 किलोग्राम
जीनोटाइप जामुन के पौधे से मात्र तीन वर्ष में ही फल आने लगेंगे। अभी तक ऐसा नहीं हुआ था। यह प्रदेश के किसानों के लिए बेहतर उपलब्धि है। -डॉ. जीवन लाल नाग, कृषि वैज्ञानिक, कृषि महाविद्यालय एवं अनुसंधान केंद्र कांकेर
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स्रोत: नई दुनिया