जंगली जानवरों के आतंक से जूझ रहे पहाड़ के किसानों की खेती को बीमा सुरक्षा का कवच मिल सकता है। केंद्र सरकार ने वन्यजीवों से खेती को होने वाली हानि को बीमा कवर देने के लिए राज्यों से सुझाव मांगे हैं। इन राज्यों को भौगोलिक हालात के अनुसार, नीति तैयार करने के लिए भी कहा गया है। कृषि विभाग के एक अधिकारी ने इसकी पुष्टि की। उन्होंने कहा कि उत्तराखंड में इसे लेकर मंथन शुरू हो गया है। आबादी क्षेत्र में वन्यजीवों के बढ़ते हस्तक्षेप को देखते हुए केंद्र सरकार इस पर विचार कर रही है। यह भी देखा जा रहा है कि किसानों को बीमा सुरक्षा का लाभ किस फॉर्मूले के तहत दिया जाए? पहला फॉर्मूला यह है कि किसान के वर्तमान बीमा में ही वन्यजीव से नुकसान को शामिल किया जाए। दूसरे फॉर्मूले के तहत वर्तमान फसल बीमा में वन्यजीव पहलू को ऐच्छिक रूप में जोड़ने पर भी विचार चल रहा है। इससे किसान सुविधा के मुताबिक, बीमा सुरक्षा का लाभ ले सकते हैं।
महंगा भी हो सकता है प्रीमियम
कृषि अधिकारी के अनुसार, वन्यजीवों से बीमा सुरक्षा साधारण बीमा से कुछ महंगा भी हो सकता है। जानवर छोटे-छोटे पैच में फसलों को नुकसान पहुंचाते हैं। ऐसे में फसल की क्षति का आकलन करना काफी मुश्किल हो सकता है।
इसलिए है जरूरत
वर्तमान में फसल बीमा योजनाओं में प्राकृतिक रूप से आग लगना, बिजली गिरना, तूफान, ओला, चक्रवात, बाढ़, जलभराव, भूस्खलन, सूखा, शुष्क अवधि, कृमि रोग, लंबे सूखे से होने वाले नुकसान का बीमा कवर है। राज्य में प्राकृतिक आपदा और वन्यजीव कृषि के लिए चुनौती बने हैं। मगर बीमा योजनाओं में यह पहलू न होने से किसान फसल बीमा योजनाओं से दूर हैं। पहाड़ में सुअर, बंदर का आतंक ज्यादा है और मैदान में हाथी-नीलगाय से भी खेती को नुकसान है। राज्य का डेढ़ लाख हेक्टेयर क्षेत्र वन्यजीवों के लिहाज से संवेदनशील भी है।
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स्रोत: लाइव हिंदुस्तान