किसानों के हित में होगा इस साल कम गन्ना बोना, किसान नेता पुष्पेंद्र सिंह ने दी सलाह

April 30 2020

लॉकडाउन के कारण चीनी की मांग बहुत कम हो गई है. मांग और उत्पादन के समीकरण बदल गए हैं. इसलिए इस साल अधिक गन्ना और चीनी उत्पादन देश हित में नहीं होगा. अभी से गन्ना किसानों के सामने भुगतान का संकट खड़ा हो गया है. अगले पेराई सत्र में यह भीषण रूप ले लेगा. अधिक गन्ना बोया गया तो उसे खेतों में ही नष्ट करने की नौबत आ सकती है. अभी गन्ने की बुआई तेजी से चल रही है. ऐसे में इस साल गन्ने का रकबा कम कर के चलना किसानों के हित में होगा. किसान शक्ति संघ के अध्यक्ष चौधरी पुष्पेन्द्र सिंह ने गन्ने की खेती पर निर्भर रहने वाले किसानों के लिए यह अलर्ट किया है.

ग्रामीण अर्थव्यवस्था के जानकार सिंह ने कहा कि लॉकडाउन में चीनी की मांग बहुत घट गई है. इसलिए किसान इस बार गन्ने की कम बुआई करें. लॉकडाउन के कारण पूरी दुनिया में यह हो रहा है. चीनी की 75 प्रतिशत खपत संस्थानों, भोजनालयों, होटलों, कार्यालयों में या व्यावसायिक उत्पादों- मिठाइयों, चॉकलेट, आइसक्रीम, पेय पदार्थों आदि में होती है. तमाम संस्थाओं, दुकानों की बंदी और शादी, समारोह भी स्थगित होने के कारण चीनी की खपत तेजी से गिरी है.

इस चेतावनी को चीनी स्टॉक के आंकड़े से समझिए 

-पुष्पेंद्र सिंह के मुताबिक  पेराई सत्र 2019-20 में चीनी का प्रारंभिक स्टॉक 143 लाख टन था और उत्पादन 270 लाख टन. कोरोना संकट से पहले तक हमारी घरेलू खपत भी लगभग 270 लाख टन ही रहने की संभावना थी.

-सरकार ने इस वर्ष 60 लाख टन चीनी के निर्यात का लक्ष्य रखा था. बदली परिस्थितियों में केवल 35 से 40 लाख टन चीनी का ही निर्यात होने की संभावना है.

-मार्च से सिंतबर 2020 तक देश में चीनी की खपत अपने सामान्य स्तर से 50 से 60 लाख टन कम होने की संभावना है. इसलिए अगले पेराई सत्र की शुरुआत में ही चीनी का 150 लाख टन से ज्यादा का प्रारंभिक भंडार होगा. यह हमारी सामान्य परिस्थितियों में लगभग सात महीनों की खपत के बराबर होगा.

ये भी है वजह

-कच्चे तेल की मांग और कीमतें घट गई हैं. पेट्रोल में एथनॉल मिलाना भी लाभकारी नहीं है. इसलिए फिलहाल चीनी मिलें गन्ने से एथनॉल उत्पादन भी नहीं करेंगी.

-शराब की दुकानें भी बंद पड़ी हैं इसलिए शराब की बिक्री और खपत भी कम हो गई है. इससे चीनी मिलों को डिस्टिलरी से शराब, अल्कोहल आदि बेचकर मिलने वाली राशि भी कम हो गई है.

-चीनी मिलें गन्ने के सह-उत्पादों से बिजली बनाकर बेच देती थीं. परन्तु बिजली की खपत और मांग भी काफी घट गई है. कोल्हू और खाण्डसारी उद्योग में भी गन्ने की ज्यादा खपत नहीं हो सकती. चीनी मिलें शीरा, खोई (बगास), प्रैसमड़, बायो-फर्टीलाइजर, प्लाईवुड व अन्य उत्पाद बनाकर भी बेचती हैं. लेकिन अब इन सब उत्पादों की मांग भी कम ही रहेगी जिससे गन्ने की मांग काफी कम हो जाएगी.

-इन परिस्थितियों में अगले पेराई सत्र में चीनी मिलें ज्यादा गन्ना लेने से हाथ खड़े कर सकती हैं. अप्रैल अंत में उत्तर प्रदेश में गन्ने का बकाया लगभग 16,000 करोड़ रुपये हो गया है. 15-20% गन्ना खेतों में खड़ा है, परन्तु मिलें पर्चियां देने में आनाकानी कर रही हैं. अगले सत्र में यह परिस्थिति और गंभीर हो सकती है.

तो फिर विकल्प क्या है?

इस वक्त गन्ने की बुआई चालू है. पुष्पेंद्र सिंह कहते हैं कि इस साल गन्ना किसानों को गन्ने का रकबा कम करके खरीफ की अन्य फसलों- दलहन, तिलहन, मोटे अनाज और धान का रकबा बढ़ा देना चाहिए. अन्यथा आगामी पेराई सत्र में गन्ने को खेतों में ही नष्ट करने की नौबत आ सकती है.


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स्रोत: न्यूज़ 18 हिंदी