कम पानी व कम नमी में, उगाए मेथी

January 15 2018

मेथी रबी की फसल है और इसे मुख्य रूप से राजस्थान, मध्यप्रदेश, गुजरात, पंजाब और उत्तर प्रदेश में अक्टूबर से लेकर नवम्बर के मध्य तक बोया जाता है। मेथी के सही तरह से अंकुरण के लिए मृदा में पर्याप्त नमी बहुत जरूरी होती है। जल और जमीन का खेती-बाड़ी में बहुत महत्व है। जमीन में नमी का होना, फसल उत्पाद को बढ़ावा देता है और पानी को वरदान के रूप में देखा जाता है।

कृषि वैज्ञानिकों ने शुष्क भूमि या नमी की कमी वाले क्षेत्रों में आनुवांशिक परिवर्तनशीलता द्वारा मेथी की ऐसी किस्में तैयार करने का प्रयास किया है जो कम पानी में भी मेथी की उत्तम गुणवत्ता वाली अधिक उपज दे सकेगी। इस नमी सहिष्णु किस्मों से पानी की पर्याप्त मात्रा वाले स्थानों में पानी की बचत के साथ-साथ अब मेथी को देश के अन्य शुष्क भागों में भी आसानी से उगाया जा सकता है।

मेथी के पत्तों को आमतौर पर सब्जी और इसके बीजों को मसाले के तौर पर इस्तेमाल किया जाता है। मेथी के बीज में पाए जाने वाले डायोस्जेनिग नामक स्टेरॉयड के कारण दवाई बनाने वाले उद्योग में इसकी मांग बढ़ना स्वाभाविक है। इस तरह से मेथी की वैज्ञानिक तरीके से खेती करके अधिक लाभ कमाया जा सकता है। कृषि वैज्ञानिकों ने अजमेर स्थित आईसीएआर-एनआरसीएसएस के जीन बैंक से चिह्नित 13 प्रकार के जीनों टाइप बीजों को संस्थान के ही अनुसंधान खेतों में बोकर अलग-अलग वातावरणों जैसे पर्याप्त नमी और नमी की कमी में पौधों में फूलों के खिलने और फूल खिलने के बाद के चरणों पर पड़ने वाले प्रभाव को देखते हुए नमी तनाव के प्रति प्रतिरोधक दर्शाने वाले उपयुक्त जीनों टाइपों की पहचान की है।

परीक्षण किए गए विभिन्न 13 जीनों टाइपों में से एएफजी-6 को सभी परिस्थितियों में उपयुक्त पाया गया है क्योंकि इसकी बीज उपज सामान्य अवस्था में 7.5 ग्राम प्रति पौधा से लेकर फूलों के खिलते समय और उसके बाद की नमी तनाव की स्थितियों में क्रमशः 7.1 और 7.7 ग्राम प्रति पौधा आंकी गई।

इंडिया साइंस वायर में डॉ. सुब्रत मिश्रा ने अपनी रिपोर्ट में इसकी विस्तृत जानकारी दी है। एक अन्य जीनों टाइप एएम 327-3 की बीज उपज फूलों के खिलते समय नमी कम होने पर सबसे अधिक 9.5 ग्राम प्रति पौधा पाई गई जो कि सामान्य स्थिति वाली 3.3 ग्राम प्रति पौधा से कहीं अधिक है।

कृषि वैज्ञानिकों का मानना है कि वर्तमान में जनसंख्या वृद्धि की पोषण संबंधी आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए जलवायु परिवर्तन की भी दृष्टि से मेथी दानों की गुणवत्ता को प्रभावित किए बिना उपलब्ध पानी के समुचित प्रयोग द्वारा सीमित नमी में इन किस्मों को उगाया जा सकता है।

शोधकर्ताओं मे कृषि वैज्ञानिक एस.एन. सक्सेना, आर. के. कमानी, एल. के. शर्मा, डी. अग्रवाल और एस. जॉन तथा वाय. शर्मा शामिल हैं। इन कृषि वैज्ञानिकों ने कम पानी, कम नमी वाली जमीन में मेथी के जीनों टाइप में बीज की गुणवत्ता और उसमें पाए जाने वाले तेल, विभिन्न फैटी एसिड, फीनोलिक्स और एंटी ऑक्सीडेंट क्षमता को लेकर भी परीक्षण किए।

इन जीनों टाइपों में 22 किस्म के फैटी एसिड की भी पहचान की गई और इस निष्कर्ष पर पहुंचा गया कि इनके कारण नमी की कमी होने पर अलग-अलग जीनों टाइप अलग-अलग व्यवहार करते हैं। 

इस खबर को अपनी खेती के स्टाफ द्वारा सम्पादित नहीं किया गया है एवं यह कहानी अलग-अलग फीड में से प्रकाशित की गयी है|

Source: Krishi Jagran