एक रात में 100 किमी तक उड़ने वाले कीड़े का मक्का की फसल पर अटैक

April 25 2019

छिंदवाड़ा जिले के खेतों में लगी मक्के की खड़ी फसल पर ऐसे कीड़ों की फौज ने अटैक किया है, जो चंद मिनट में कई एकड़ की फसल तबाह कर देते हैं। फॉल आर्मी वर्म नामक यह कीड़ा एक रात में तकरीबन 100 किमी तक का सफर तय करता है।

जवाहरलाल नेहरू कृषि विश्वविद्यालय कीट विशेषज्ञों की टीम की जांच में यह बात सामने आई कि इसका प्रकोप न सिर्फ मक्के पर बल्कि आने वाली खरीफ की फसलों पर भी होगा, जिसके लिए अलर्ट जारी किया गया है। सीएम कमलनाथ ने फॉल आर्मी वर्म कीट की जानकारी लगने के बाद जवाहरलाल नेहरू कृषि विश्वविद्यालय जबलपुर के वैज्ञानिकों को जांच के लिए कहा था।

जवाहरलाल नेहरू कृषि विश्वविद्यालय जबलपुर के 7 वैज्ञानिक फॉल आर्मी वर्म कीड़े के प्रकोप को देखने छिंदवाड़ा पहुंचे। वैज्ञानिकों के मुताबिक मक्के की फसल पर इन कीड़ों ने हमला करना शुरू कर दिया है। इससे यह अंदेशा लगाया जा रहा है कि खरीफ की फसल पर इस कीट का बड़ी मात्रा पर हमला हो सकता है। अमेरिकी कीट फॉल आर्मी वर्म 2019 में देश के कई प्रदेशों में समस्या बनकर उभरा है। हालांकि पहली बार मध्यप्रदेश में इसका प्रकोप देखा जा रहा है।

यहां मिले कीट के प्रमाण

कृषि विवि के कीट एक्सपर्ट डॉ.एके शर्मा ने बताया कि चौरई विकासखंड के बांकानागनपुर में किसान नवीन रघुवंशी के लगभग 10 से 12 एकड में लगी तीन किस्मों के मक्के की जांच की, जिसमें तीनों में ही यह कीट पाया गया।

वैज्ञानिकों ने कहा किसान तत्काल अपनाएं उपाए

एक्सपर्ट की टीम ने किसानों को सचेत किया है कि वह इस कीट से अपनी फसल बचाने के लिए तत्काल उपाए करें। उन्होंने सलाह दी है कि जैविक कीटनाशक के रूप में बीटी 1 किग्रा प्रति हेक्टेयर व बिवेरिया बेसियाना 1.5 लीटर प्रति हेक्टेयर का छिड़काव सुबह और शाम दोनों वक्त करें।

रासायनिक कीटनाशक के रूप में फ्लेबेंडामाइट 20 डब्ल्यू डीजी 250 ग्राम प्रति हेक्टेयर में, स्पाइनोसेड 45 ईसी, 200-250 ग्राम प्रति हेक्टेयर में, इथीफेनप्रॉक्स 10 ईसी 1 लीटर प्रति हेक्टयर में, एमिमामेक्टिन बेंजोएट 5 एस.जी. का 200 ग्राम प्रति हेक्टयर में छिंड़काव करें।

इनका कहना है

छिंदवाड़ा के खेतों पर मक्के पर फॉल आर्मी वर्म नामक कीड़े ने अटैक किया है। इसकी जांच के लिए जबलपुर से वैज्ञानिकों की टीम भेजी है। उनकी रिपोर्ट पर गंभीरता से कदम उठाते हुए किसानों को सचेत किया जा रहा है।

डॉ.प्रदीप बिसेन, कुलपति, जनेकृविवि

 

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स्रोत: नई दुनिया