उत्तराखंड कैबिनेट का फैसला: किसान अब कहीं भी बेच सकेंगे अपने उत्पाद, होगी कांट्रेक्ट फार्मिंग

March 02 2020

उत्तराखंड में त्रिवेंद्र सरकार ने किसानों की आय दोगुनी करने के लिए केंद्र के फार्मूले को अपनाया है। प्रदेश में लागू उत्तराखंड कृषि उत्पादन मंडी विकास एवं विनियमन अधिनियम को खत्म कर इसकी जगह केंद्र का मॉडल एक्ट (कृषि उपज एवं पशुधन विपणन अधिनियम) को लागू किया है। मंत्रिमंडल ने इसकी मंजूरी दे दी है। 

केंद्र ने किसानों की आय बढ़ानेे के लिए कृषि उत्पादों का व्यापार खुला करने के लिए मॉडल एक्ट को लागू किया है। अब किसानों को मंडियों में कृषि उत्पाद लाने की अनिवार्यता नहीं रहेगी। किसान अपने उत्पाद को उचित दामों पर मंडी से बाहर कहीं भी बेच सकेंगे। मंडी समिति की ओर से फल-सब्जी व अन्य कृषि उत्पादों के कारोबार पर शुल्क नहीं लिया जाएगा। 

वर्तमान में लागू उत्तराखंड कृषि उत्पादन मंडी विकास एवं विनियमन अधिनियम (एपीएमसी) में यह व्यवस्था है कि मंडी समिति के अधीन आने वाले क्षेत्रों में फल-सब्जी के कारोबार पर एक प्रतिशत मंडी शुल्क लिया जाता है। लाइसेंस के बिना कोई भी आढ़ती कृषि उत्पादों का कारोबार नहीं कर सकता है। मॉडल एक्ट में बिना लाइसेंस के भी आढ़ती किसानों का उत्पाद खरीद सकते हैं। 

शुल्क खत्म करने से मंडियों को 10 करोड़ का नुकसान

प्रदेश में 23 फल-सब्जी मंडी संचालित है। मंडी समितियों की आय का मुख्य स्रोत कृषि उत्पादों पर लिया जाने वाला मंडी शुल्क है। केंद्र का मॉडल एक्ट लागू से प्रदेश में फल व सब्जी पर शुल्क खत्म हो जाएगा। इससे मंडी समितियों को 10 करोड़ का नुकसान होगा। जिससे मंडी समितियों के माध्यम से संचालित किसान कल्याण की योजनाएं भी प्रभावित होगी।

कांट्रेक्ट फार्मिंग से बंजर होने से बचेगी कृषि भूमि

उत्तराखंड के किसान अब कांट्रेक्ट फार्मिंग (अनुबंध खेती) कर सकेंगे। मंत्रिमंडल ने कांट्रेक्ट फार्मिंग एक्ट 2018 को राज्य में लागू करने की मंजूरी दे दी है। इससे कृषि क्षेत्र में काम करने वाली कंपनियां अपनी जरूरत के अनुसार किसानों से खेती के लिए कांट्रेक्ट कर सकते हैं। 

कर्नाटक और मैसूर की तर्ज पर राज्य में कांट्रेक्ट फार्मिंग को बढ़ावा देने के लिए सरकार ने एक्ट बनाया है। इस एक्ट के आधार पर प्रदेश में अनुबंध खेती की मंजूरी दे दी है। इस एक्ट के लागू होने से जिन किसानों के काफी कृषि भूमि है और वे बुढ़ापे में खेेतीबाड़ी नहीं कर सकते हैं। ऐसे किसान अपनी कृषि भूमि को कांट्रेक्ट फार्मिंग के लिए कंपनी को लीज पर दे सकते हैं। किसान के हितों को सुरक्षित करने के लिए सरकार ने एक्ट में व्यवस्था की है। जिससे लीज पर दी जाने वाली जमीन को न तो ट्रांसफर किया जाएगा और न ही उस पर कोई कब्जा कर सकता है। 

कर्नाटक और मैसूर में संविदा खेती सबसे ज्यादा की जा रही है। जिसमें निजी कंपनियां मसाले, हल्दी व अन्य फसलों की पैदावार कर रही है। कांट्रेक्ट खेती से कृषि भूमि बंजर होने से बचेगी और किसान को भी खेती के बदले पैसे मिलेंगे। 

राज्य में तीन लाख हेक्टेयर भूमि बंजर

कृषि विभाग के आंकड़ों के अनुसार राज्य में करीब सात लाख हेक्टेयर भूमि पर खेती होती है। जिसमें रबी और खरीफ फसलें उगाई जाती है। लगभग तीन लाख हेक्टेयर कृषि भूमि बंजर हो चुकी है। जंगली जानवरों और बंदरों की समस्या, सिंचाई का अभाव से किसान खेती छोड़ रहे हैं। राज्य गठन के बाद प्रदेश में लगभग 17 प्रतिशत कृषि योग्य भूमि का क्षेत्रफल कम हुआ है।


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स्रोत: अमर उजाला