इस नेक काम के लिए 1,00,000 हैक्टेयर में धान नहीं पैदा करेगा कृषि प्रधान यह राज्य

April 28 2020

हरियाणा के चरखी दादरी जिले की पैंतावास कलां पंचायत ने एक प्रस्ताव पारित कर अपने गांव में धान की फसल (paddy crop) न बोने का संकल्प लिया है. धान सबसे ज्यादा पानी की खपत वाली फसलों में शामिल है और जल संकट के लिहाज से करीब आधा हरियाणा डार्क जोन में हैं. इस संकट से उबरने के लिए हरियाणा सरकार ने इस बार 1,00,000 हैक्टेयर में धान न पैदा करने का फैसला किया है. इसके लिए किसानों को प्रोत्साहित किया जाएगा. कृषि वैज्ञानिकों के मुताबिक एक किलोग्राम चावल पैदा करने में 5000 लीटर तक पानी की जरूरत होती है. यूनाइटेड नेशंस के खाद्य एवं कृषि संगठन के मुताबिक भारत में 90 परसेंट पानी का इस्तेमाल कृषि में होता है. भारत में पानी की ज्यादातर खपत चावल और गन्ने जैसी फसलों में होती है.

हरियाणा टॉप टेन धान उत्पादकों में शामिल है. यहां का बासमती चावल (basmati rice) वर्ल्ड फेमस है. हालांकि चरखी-दादरी बेल्ट में पहले ही बहुत कम धान होता है. हरियाणा का भूजल स्तर 300 मीटर तक पहुंचने का अंदेशा है. भूजल के मामले में यहां के नौ जिले डार्क जोन में शामिल हैं. प्रदेश के 76 फीसदी हिस्से में भूजल स्तर (ground water level) बहुत तेजी से गिरा है. केंद्रीय भूजल बोर्ड के आंकड़े कुछ ऐसा ही कहते हैं.

यह पहला ऐसा राज्य है जिसने सबसे पहले जल संकट की गंभीरता को देखते हुए धान की खेती को डिस्करेज करने का निर्णय लिया है. कृषि क्षेत्र के जानकारो का कहना है जल संकट से निपटने के लिए हरियाणा का ये प्लान मॉडल बन सकता है.

मुख्यमंत्री ने क्या कहा 

मुख्यमंत्री मनोहरलाल खट्टर ने पैंतावास कलां का उदाहरण देते हुए कहा कि यह किसी भी पंचायत के लिए एक बड़ी सोच है. अत्यधिक जल दोहन हमारे लिए चुनौती बन गया है. आने वाली पीढिय़ों के लिए इन्हीं चुनौतियों का समाधान निकालने की हमने शुरूआत की है. मुख्यमंत्री ने किसान नेताओं से अपील की है कि जिन पंचायतों ने पंचायती जमीन ठेके पर दी है उन पट्टेदारों से भी अपील करें कि वे धान के स्थान पर मक्का, अरहर व अन्य फसलों की ही बुआई करें.

नीति आयोग ने जल संकट के लिए धान को बताया खलनायक

कृषि वैज्ञानिक बताते हैं कि हरियाणा में 1970 के दशक में मक्का और दलहन की प्रमुख फसलें होती थीं, जिनकी जगह अब धान ने ले लिया है. यहां पर जल संकट बढ़ने के पीछे एक बड़ी वजह ये भी है. पिछले दिनों नीति आयोग ने जल संकट के लिए धान और गन्ने की फसल को भी जिम्मेदार ठहराया था.

धान नहीं तो फिर क्या

‘फसल विविधीकरण योजना’ के लिए प्रदेश में एक वर्किंग ग्रुप बनाया गया है. इसकी मंगलवार को बैठक होनी है. इसमें धान की फसल छोड़ने वाले किसानों की प्रोत्साहन राशि बढ़ाने को लेकर सिफारिश हो सकती है. फिलहाल, धान को छोड़कर कम पानी की खपत वाली फसलें उगाने वाले किसानों को प्रति एकड़ 2000 रुपये की प्रोत्साहन राशि मिलती है.

चूंकि बासमती चावल हरियाणा की पहचान है, इससे देश को डॉलर मिलता है इसलिए गैर बासमती धान को ही डिस्करेज करने का प्लान है. धान के बदले सरकार मक्का, अरहर, ग्वार, तिल और ग्रीष्म मूंग पर जोर दे रही है.

कौन-कौन से क्षेत्र आएंगे इस स्कीम में

प्रदेश के सात जिलों के सात ब्लाकों में इसे लागू किया गया है. इनमें यमुनानगर का रादौर, सोनीपत का गन्नौर, करनाल का असंध, कुरुक्षेत्र का थानेसर, अंबाला का अंबाला-1, कैथल का पूंडरी और जींद का नरवाना ब्लॉक शामिल है. इन सात ब्लॉकों में 1,95,357 हेक्टेयर क्षेत्र में धान की फसल होती है, जिसमें से 87,900 हेक्टेयर में गैर बासमती धान होता है. कृषि विभाग हरियाणा के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा-प्रदेश में कहीं का भी किसान धान न उगाने का फैसला ले सकता है. उसे रोका नहीं जाएगा.

किसानों को ऐसे करेंगे प्रेरित

-इन सात ब्लॉकों में धान के बदले मक्का, दलहन, तिलहन के इच्छुक किसानों का कृषि विभाग के पोर्टल पर रजिस्ट्रेशन किया जाएगा. इच्छुक किसानों को मुफ्त में बीज उपलब्ध करवाया जाएगा. जिसकी कीमत 1200 से 2000 रुपये प्रति एकड़ होगी.

-प्रति एकड़ 2000 रुपये की आर्थिक मदद की जाएगी. यह पैसा दो चरणों में मिलेगा. इसमें 200 रुपए तो पोर्टल पर रजिस्ट्रेशन के समय और शेष 1800 रुपए बिजाई किए गए क्षेत्र के वेरीफिकेशन के बाद किसान के बैंक खाते डाले जाएंगे.

-धान की जगह मक्का और अरहर उगाने पर फसल बीमा करवाएंगे. 766 रुपए प्रति हेक्टेयर की दर से प्रीमियम भी हरियाणा सरकार देगी. मक्का और अरहर तैयार होने पर हैफेड व खाद्य एवं आपूर्ति विभाग उसे न्यूनतम समर्थन मूल्य की दर से खरीदेंगे.


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स्रोत: न्यूज़ 18 हिंदी