अब कृषि विवि, उससे संबंद्ध कॉलेजों और कृषि विज्ञान केंद्रों में होगी पांच एकड़ में जैविक खेती

March 27 2019

कृषि जगत में अब जैविक खेती का दौर लौटने लगा है। कृषि वैज्ञानिक कहते हैं कि भारत में जैविक कृषि की परंपरा बहुत पुरानी है। इसे अपनाना स्वयं व परिवार के लिए बेहतर है, वहीं इसके माध्यम से पर्यावरण और मानव स्वास्थ्य के लिए भी अच्छा काम किया जा सकता है। प्रदेश में जैविक खेती से लागत करीब 80 फीसद कम हो जाती है। जैविक खेती से उत्पादन भी बढ़ा है। अब इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय, उससे संबद्ध कॉलेजों और सभी कृषि विज्ञान केंद्रों में लगभग पांच एकड़ में सिर्फ जैविक खेती की जाएगी। विभिन्ना फसलों की जैविक खेती के लिए सूची बनाई जा रही है। किसान जैविक खेती कर रहे हैं उनका उत्पादन रासायनिक उर्वरकों का इस्तेमाल करने वाले किसानों से हर मायने में बेहतर है।

किसानों को मिले लाभ

विवि में सबसे पहले साग-सब्जियों और फलों की जैविक खेती की जाएगी। अधिकारियों के अनुसार सिर्फ जैविक खेती करने की नहीं, बल्कि किसानों को कितना अधिक लाभ मिले इस पर प्रमुख रूप से ध्यान दिया जाएगा। कृषि वैज्ञानिक डॉ.जीएल शर्मा के कहना है कि आज भारत में 5.38 लाख हेक्टेयर क्षेत्र में जैविक खेती हो रही है। उम्मीद है कि साल 2021 तक जैविक खेती का रकबा 30 लाख हेक्टेयर को पार कर जाए। वर्ष 2003 में देश में सिर्फ 73 हजार हेक्टेयर क्षेत्र में जैविक खेती हो रही थी। इस तरह जैविक उत्पाद का बाजार भी अगले पांच साल में 6.7 गुना बढ़ने की उम्मीद है।

रसायन आधारित खेती कम

देश भर में एक समय रसायन पर आधारित खेती हो रही थी। इससे उत्पादन भी कम होते जा रहा है। उत्पादन की गुणवत्ता प्रभावित हो रही है और पर्यावरण प्रदूषित हो रहा है। कृषि विवि सहित रिसर्च सेंटरों में भी हरित क्रांति के नाम पर कीटनाशकों और खाद के रूप में रसायनों का जमकर प्रयोग किया गया। परिणामस्वरूप जमीन बंजर बनती चली गई और उत्पादन निम्न गुणवत्ता वाला और कम होने लगा। इस वजह से जैविक क्रांति को बढ़ावा देने का कार्य नीति निर्धारकों ने किया।

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स्रोत: Nai Dunia