किसान का प्रयोग रहा सफल, जंगली पौधों में लगे टमाटर और बैंगन

March 05 2018

भोपाल। बोया पेड़ बबूल का तो आम कहां से होय। यह कहावत काफी प्रचलन में रही है, लेकिन जंगली पौधों में बैंगन, टमाटर जैसे फल लगाने का करिश्मा राजधानी के एक प्रगतिशील किसान ने कर दिखाया है। उन्होंने कृषि वैज्ञानिकों के मार्गदर्शन में ग्राफ्टिंग तकनीक से यह सफलता हासिल की है। खास बात यह कि जैविक खाद के इस्तेमाल से हो रही सब्जी की इस खेती में पौधे आम पौधों की अपेक्षा रोग मुक्त रहते हैं। साथ ही मौसम की मार भी आसानी से झेल जाते हैं।

शहर के खजूरीकला में रहने वाले किसान मिश्रीलाल राजपूत के खेत में इन दिनों टमाटर की खेती की जा रही है, लेकिन यहां लगे पौधे आम सब्जियों के पौधों से कुछ अलग हैं। दरअसल इन पौधों की जड़ एक जंगली प्रजाति (अभी उसका नाम गोपनीय रखा गया है) के पौधे की है। जड़ के ऊपर ग्राफ्टिंग तकनीक से टमाटर का पौधा लगाया गया है। यही प्रयोग भटे और मिर्ची के पौधों के साथ किया गया है।

कैसे तैयार करते हैं पौधा

मिश्रीलाल बताते हैं कि एक ट्रे में जंगली पौधा और दूसरे में टमाटर, भटा आदि का पौधा लगाया जाता है। जब जंगली पौधा करीब 6 इंच तक लंबा हो जाता है। और टमाटर, भटा का पौधा 15 दिन का हो जाता है,तभी ग्राफ्टिंग का सबसे सही समय होता है। जंगली पौधे की जड़ के ऊपर तने में कट लगाकर संबंधित सब्जी के पौधे को ग्राफ्ट कर दिया जाता है। इस दौरान करीब 15 दिन तक पौधे को छांव में ही रहने दिया जाता है। इसके बाद वह खुले खेत में रोपने के लिए तैयार हो जाता है।

एक पौधे में कई वैरायटी भी ले सकते हैं

राजपूत बताते हैं कि एक जंगली पौधे में कई स्थानों पर ग्राफ्टिंग कर एक ही पौधे से सब्जी के कई वैरायटी की पैदावार भी की जा सकती है। इसके लिए भी वह प्रयासरत हैं। वह बताते हैं कि ग्राफ्टिंग तकनीक में टमाटर के 100 में से 60 पौधे सफलता पूर्वक लग जाते हैं। मिर्च और भटे में यह प्रयोग 80 फीसदी तक सफल रहता है।

मृदा जनित बीमारियों से निपटने की कारगर तकनीक

भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद,दिल्ली के वेजीटेबल सेक्शन हेड भोपाल सिंह ने बताया कि पूरे देश में मृदा जनित बीमारियां फैल रही हैं। उससे सब्जियों की फसल काफी प्रभावित हो रही है। उससे निपटने के लिए ग्राफ्टिंग टेक्नोलॉजी"काफी कारगर सिद्ध हो रही है। इसमें मदर प्लांट जंगली होता है,जबकि तने में सब्जी का पौधा ग्राफ्ट कर दिया जाता है। किसी भी प्रदेश में वहां की सब्जियों की फसल पर यह प्रयोग सफल है। मिश्रीलाल ने उनके संस्थान से यह तकनीक सीखकर प्रदेश में इसकी शुरूआत की है। इस तकनीक से तैयार पौधों की रोग प्रतिरोधक क्षमता जबरदस्त होती है। स्वाद और पौष्टिकता भी बेहतर रहती है।

कम पानी और विपरीत परिस्थितियों में भी बढ़ता है पौधा

केंद्रीय कृषि अभियांत्रिकी संस्थान, नबीबाग, भोपाल के वरिष्ठ कृषि वैज्ञानिक रमन राव ने बताया कि मिश्री लाल ने जो प्रयोग शुरू किया है, यह सब्जी उत्पादन में क्रांति लाने वाला है। इस तकनीक से तैयार पौधों की जड़ जंगली पौधे की रहती है। इसलिए वह कम पानी और विपरीत परिस्थितियों में भी तेजी से बढ़ते हैं। उनकी रोग प्रतिरोधक क्षमता भी अधिक होती है। खास बात यह है कि इस तकनीक से कम लागत में अधिक पैदावार का लाभ हासिल किया जा सकता है।

Source : Naiduniya