वर्षा ऋतु में मछलीपालन के लिए विशेष सलाह

July 23 2018

मत्स्य पालन कम समय में अच्छी आय देने वाला कृषि-सह व्यवसाय है। इस व्यवसाय से उपयुक्त मत्स्य उत्पादन प्राप्त करने के लिए वैज्ञानिकों ने वर्षा ऋतु में मत्स्य पालकां को विशेष सावधानियां अपनाने का सुझाव दिया है। मत्स्य पालकों को बरसात के मौसम में तालाबों का प्रबंधन करना अति आवश्यक है। मत्स्य विज्ञान महाविद्यालय के सहायक प्राध्यापक,  डॉ. आशुतोष मिश्रा, ने बताया कि बरसात के मौसम में मत्स्य तालाबों की ओर अन्य मौसमों की अपेक्षा अधिक ध्यान देने की आवश्यकता होती है। उन्होंने कहा कि जागरुक मत्स्य पालकों ने बरसात आने से पूर्व तालाब के बांधों को मजबूत कर लिया होगा तथा जिसने नहीं किया है उन्हें यह कार्य जल्द कर लेना चाहिए। इसके साथ ही मत्स्य पालकों को तालाब में पानी के स्तर की निगरानी करते रहने का भी उन्होंने सुझाव दिया, क्योंकि बरसात होने पर पानी का स्तर अचानक बढ़ जाता है। ऐसे में तालाब के प्रवेश एवं निकास द्वार को सही से जांच परख कर निकास द्वार पर जाली लगा देनी चाहिए, ताकि पानी निकालते समय मछलियां बाहर ना जा पायें।

डॉ. मिश्रा ने बताया कि इस मौसम में कीड़े-मकोड़ों का प्रकोप भी उन तालाबों में अधिक दिखाई देता है, जहां मछलियां छोटी या कम वजन की होती हैं। अतः कीड़े मकोड़ों की रोकथाम के लिए 50 लीटर डीजल और 18 कि.ग्रा. डिटेरजेंट पॉउडर का घोल प्रति हैक्टेयर की दर से पानी में डालना चाहिए, इससे पानी की ऊपरी सतह पर तेल की एक परत बन जाती है, जिससे कीड़े-मकोड़ों का नियंत्रण हो जाता है। उन्होंने बताया कि वर्षा ऋतु में मत्स्य तालाब में सांप के नियंत्रण के लिए तालाब में जगह-जगह गिलनेट जाली लगानी चाहिए और यदि तालाब में मछली नहीं है तो इसमें 2000 कि.ग्रा. महुआ की खली या 200 कि.ग्रा ब्लीचिंग पाउडर प्रति हैक्टेयर की दर से प्रयोग करना चाहिए।

लेकिन इससे पूर्व तालाब में 50 कि.ग्रा. यूरिया प्रति हैक्टेयर की दर से डालना चाहिए, जिससे तालाब में स्थित सभी कीड़े-मकोड़े मर जायें। इसके 15 दिन बाद तालाब में पानी भर कर मछलियां का संचय कर सकते हैं। डॉ. मिश्रा ने बताया कि इस मौसम में मछलियों के आहार पर भी विशेष ध्यान देने की आवश्यकता है, क्योंकि बादल होने पर ऑक्सीजन की कमी हो जाती है। ऐसे में मछलियों को दिये जाने वाले भोजन की मात्रा कम कर देनी चाहिए। उन्होंने बताया कि इस समय सामान्य भोजन का लगभग एक चौथाई भोजन देना चाहिए, जिससे मछलियों को रोजमर्रा के कार्यों हेतु ऊर्जा मिल सके।

उन्होंने बताया कि बदली के मौसम में ऑक्सीजन की कमी होने पर तालाब में हानिकारक तत्व बनने लगते हैं। इसके लिए तालाब में 25 कि.ग्रा. जियोलाइट प्रति हैक्टेयर की दर से प्रयोग करने पर तालाब में हानिकारक तत्वों के स्तर को नियंत्रित किया जा सकता है। डॉ. आशुतोष मिश्रा ने कहा कि इसके साथ ही मत्स्य पालकों को समय-समय पर तालाबों की देखरेख करते रहना चाहिए और कोई भी अप्रिय घटना होने पर विशेषज्ञ से सम्पर्क करना चाहिए। यदि मत्स्य पालक इन बातों का ध्यान रखेंगे तो आने वाले महीनों में मछली पालन से अच्छी आय प्राप्त कर सकते हैं।

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Source: Krishi Jagran