तीन बड़े राज्यों के जल्द होने वाले विधानसभा चुनावों के परिप्रेक्ष्य में सरकार ने दांव मजबूत खेला है। समर्थन मूल्यों की इस बढ़ौत्री से किसान की आर्थिक सेहत पर कितना प्रभाव पड़ेगा, ये सरकार द्वारा समय पर की जाने वाली खरीदी से आकलन होगा।
हालांकि समर्थन मूल्य की इस घोषणा में रागी, बाजरा जैसी नामालूम सी फसलों ने जरूर अपनी खोई चमक दुबारा हासिल की है। कम पानी पियू और कम खाद खाऊं ये मोटे अनाज की फसलें पौष्टिक आहार के रूप में महानगरीय घरों की डाइनिंग टेबल पर इठलाती हैं। वैसे पूरे खरीफ की उपज में इनका योगदान नगण्य सा है और सरकार इन भूली-बिसरी फसलों का समर्थन मूल्य पर कैसे खरीद करेगी ये स्पष्ट नहीं है। ये अर्थशास्त्रियों और वित्त मंत्रालय के लिये चिंता का मुद्दा हो सकता है कि समर्थन मूल्य पर इस प्रकार की बढ़ौत्री से सरकार पर कितना वित्तीय भार आएगा।
बिहार, झारखंड, छत्तीसगढ़ के लघु, सीमांत, कृषकों को तो एमएसपी की एबीसीडी ही नहीं पता होगी क्योंकि उन्होंने कभी अपना धान एमएसपी पर बेचा ही नहीं। ये छोटे किसान तो अपनी फसल व्यापारियों को पहले ही समर्थन मूल्य से आधे दामों पर बेच चुके होते हैं। बाद में तो व्यापारी और सरकार मिलकर भावान्तर का भांगड़ा मना रहे होते हैं।
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Source: Krishak Jagat