हर साल 622 करोड़ की खाद जला रहे किसान, कमजोर और बंजर हो रही मिट्टी

April 18 2018

इंदौर - जिन खेतों में सोने जैसी बालियां पैदा होती हैं, गेहूं कटाई के चंद दिन बाद ही रात में वे खेत धू-धूकर जल रहे होते हैं। सुबह तक पूरा खेत कालिख में बदल जाता है। ये कालिख है उस नरवाई की, जिसे जलाने के बाद न केवल खेत वीरान नजर आते हैं, बल्कि धरती की कोख में पल रहे सूक्ष्म पोषक तत्व और जीवाश्म भी उजाड़ दिए जाते हैं।

दुर्भाग्य की बात है कि जिस मध्यप्रदेश का गेहूं देशभर में हाथों हाथ लिया जाता है, उसे उपजाने के बाद राज्य के किसान अपने ही खेतों को दावानल में बदलकर हर साल 622 करोड़ की नैसर्गिक खाद बर्बाद कर रहे हैं। इसमें नाइट्रोजन, फास्फोरस, पोटाश जैसे तत्व शामिल हैं।

भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान (आईएआरआई) के एक शोध को आधार बनाकर नईदुनिया ने पड़ताल की तो इसमें चौंकाने वाले तथ्य सामने आए। गेहूं अनुसंधान केंद्र इंदौर के एग्रोनॉमिस्ट डॉ. केसी शर्मा का कहना है कि गेहूं के डंठलों में पोषक तत्वों का बैंक होता है। वास्तव में ये डंठल खेत में ही सड़ना चाहिए ताकि मिट्टी में सूक्ष्म पोषक तत्व बने रहें। नरवाई जलाने से बोरोन की कमी भी हो रही है। जिस जमीन में लगातार ऐसा होता रहेगा वहां गेहूं की बालियों में दाना बनना भी मुश्किल हो जाएगा।

गेहूं की फसल काटने के बाद खेत में खड़े डंठल (खापे) को मध्यप्रदेश में नरवाई कहा जाता है। प्रदेश के भोपाल,

सीहोर, विदिशा, सागर, होशंगाबाद, मालवा, निमाड़ सहित अन्य हिस्सों में किसान मजदूरों से गेहूं कटवाने के बजाय हार्वेस्टर का इस्तेमाल करते हैं। हार्वेस्टर चलाने वाले गेहूं के पौधों में ऊपर से बालियां तो काट लेते हैं, लेकिन खेतों में एक-सवा फीट के डंठल छोड़ देते हैं। बाद में खेत साफ करने के लिए किसान इन डंठलों में आग लगाते हैं। इससे हवा में भी प्रदूषण फैल रहा है। शहर और आबादी क्षेत्र के आसपास के रहवासी भी इससे हर साल परेशान होते हैं। इस समय हवा के साथ खेतों से उड़कर आया जला कचरा घर की छतों पर देखा जा रहा है।

ये है आईएआरआई की रिपोर्ट


आईएआरआई की रिपोर्ट के मुताबिक, एक हेक्टेयर खेत में नरवाई जलाने से 18.82 किलोग्राम नाइट्रोजन, 7.24

किलोग्राम फास्फोरस और 63.48 किलोग्राम पोटाश का नुकसान होता है। इंदौर के कस्तूरबा ग्राम कृषि विज्ञान

केंद्र के वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ. आलोक देशवाल बताते हैं कि गेहूं के डंठल जलाने से ये तत्व भी आग की भेंट चढ़ जाते हैं। नरवाई जलाने से प्रति हेक्टेयर 6060 किलोग्राम कार्बन डाई ऑक्साइड, 367 किलोग्राम कार्बन मोनो ऑक्साइड और 15.32 किलोग्राम नाइट्रोजन मोनो ऑक्साइड गैस निकलती है। ये गैसें प्रदूषण बढ़ाती हैं।

ये कर रही सरकार


कागजों में नियम, खेतों में उल्लंघन - नरवाई जलाने पर प्रतिबंध के लिए केंद्र और राज्य सरकार ने कुछ प्रावधान किए हैं। मध्यप्रदेश सरकार ने गजट नोटिफिकेशन के जरिये जुर्माने का प्रावधान भी किया है। इसके तहत 2 एकड़ से कम 2500 रुपए, 2 से 5 एकड़ तक 5 हजार और 5 एकड़ से अधिक की नरवाई जलाना साबित होने पर 15 हजार रुपए जुर्माना तय किया गया है। पर अब तक प्रदेश में नरवाई जलाने पर कहीं जुर्माना नहीं लगाया गया है।

नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल के दिशा-निर्देशों के तहत इस नियम के पालन की जिम्मेदारी कलेक्टरों को दी गई है लेकिन धरातल पर कोई काम नहीं हो रहा है। कृषि विभाग के अपर संचालक बीएम सहारे कहते हैं कि कार्रवाई के लिए राजस्व अधिकारियों को जिम्मेदारी दी गई है। हम प्रचार के जरिए किसानों को जागरूक कर रहे हैं कि नरवाई जलाने से क्या नुकसान है। हम सख्ती के बजाए समझाइश से काम लेना चाहते हैं।

अपनी जमीन को इस तरह बचा सकते हैं किसान

1 - कम्बाइन हार्वेस्टर से गेहूं कटवाने के बाद किसानों को उस खेत में स्ट्रॉ रिपर चलाना चाहिए। इससे गेहूं के डंठल भूसा बनकर या तो मिट्टी में मिलाए जा सकते हैं या भूसा ट्रॉली में इकट्ठा भी होता जाता है। ये भूसा जानवरों को खिलाने के काम आएगा। कृषि अभियांत्रिकी विभाग के संभागीय अधिकारी पीके पाडलीकर बताते हैं कि इसी तरह गेहूं काटने के लिए रिपर कम बाइंडर मशीन भी आती है।

2 - जो किसान नरवाई यानी गेहूं के डंठल को काटना नहीं चाहते, उनके लिए लिक्विड जैविक उत्पाद के रूप में डायजेस्टर भी आ चुका है। गेहूं कटाई के बाद डायजेस्टर का छिड़काव करने से कुछ दिन बाद डंठल और खरपतवार सब गलकर मिट्टी में मिल जाएंगे। बाद में ये खाद का काम करेगा। ये उपाय इसी साल सामने आया है। कृषि विभाग द्वारा किसानों के लिए इसे अपनाने की सिफारिश किसानों से की जा रही है।

ऐसे हो रहा नुकसान

मध्यप्रदेश में इस साल करीब 60 लाख हेक्टेयर क्षेत्र में गेहूं बोया गया था। कृषि विशेषज्ञों और अधिकारियों का मानना है कि खेतिहर मजदूरों की कमी के कारण प्रदेश में गेहूं की करीब 60 फीसदी फसल की कटाई और गहाई

हार्वेस्टर से होती है। इस तरह देखा जाए तो प्रदेश में लगभग 36 लाख हेक्टेयर एरिया में गेहूं की कटाई हार्वेस्टर से हो रही है। गेहूं कटाई के बाद खेतों में डंठल छूट जाते हैं और बाद में इसी में आग लगाई जाती है। आईएआरआई के शोध और नाइट्रोजन, फास्फोरस और पोटाश (एनपीके) खाद की वर्तमान कीमत के आधार पर हिसाब लगाया गया तो पता चला कि एक हेक्टेयर के खेत में गेहूं के डंठलों को मिट्टी में ही मिला दिया जाए तो 1727 रुपए की खाद बनती है। इस तरह 36 लाख हेक्टेयर में करीब 622 करोड़ रुपए की एनपीके खाद बन सकती है, लेकिन किसान नरवाई जलाकर प्राकृतिक रूप से मिलने वाले इन पोषक तत्वों को भी स्वाहा कर रहे हैं।

एक हेक्टेयर खेत जलाने से होने वाला नुकसान

18.82 किलोग्राम नाइट्रोजन

7.24 किलोग्राम फास्फोरस

63.48 किलोग्राम पोटाश

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Source: Nai Dunia